जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
यूरोपियनवासियों में जाति का अहंकार जबर्दस्त है, लेकिन अगर सूक्ष्म भाव से देखा जाए, तो भारतीय उपमहादेश में जो वर्णवाद है, उसकी वीभत्सता की कहीं, कोई तुलना नहीं है। वहाँ का वर्णवाद, मूलतः रंगवाद है। समाज में कौन ऊँचा है, कौन नीचा, यह फर्क आज भी किया जाता है। यह सच है, लेकिन जाति के नाम पर कोई भी विषमता कानूनी तौर पर अवैध है। निम्न जाति के लोग भी वहाँ जाकर राष्ट्रपति बन सकते हैं, लेकिन समाज के चप्पे-चप्पे में जो और एक किस्म का वर्णवाद या रंगवाद प्रचलित है, वह सिर्फ औरत को ही अपनी ही जाति की औरतों का अपमान है। उस लड़की का सब कुछ ठीक था, लेकिन वह काली है। काली लड़कियों को वहाँ सुंदर नहीं माना जाता। रंग अगर काला है तो जुबान की भाषा में उसे 'मैला रंग' कहा जाता है। मैले का एक अर्थ है-कूड़ा-करकट! वहाँ कोई बदसूरत से बदसूरत मर्द भी किसी काली लड़की के इश्क में नहीं पड़ता। कोई भी मर्द काली लड़की से विवाह नहीं करना चाहता। अगर करता भी है, तो उसे काली कहकर उस पर हर पल अत्याचार बरसाए जाते हैं। काली लड़कियाँ लाँछन, तिरस्कार, अपमान और उपेक्षा की मार सहते-सहते आखिरकार आत्महत्या के लिए लाचार हो जाती हैं। मेक-अप प्रसाधन बेचने वाली कंपनियाँ रंग गोरा करने के लिए तरह-तरह के तेल, साबुन, क्रीम का आविष्कार करती रहती हैं और उनकी बिक्री भी तेज रफ्तार से बढ़ती जा रही है। औरतें अपना रंग बदलकर, समाज की आँखों में सुंदर बनना चाहती हैं। इसके बिना वहाँ औरत के लिए कहीं, कोई जगह नहीं है। भारतवर्ष में सड़कों पर आते-जाते राहगीर, जिस किसी भी गोरी चमड़ी वाले विदेशी को, भले ही वह चोर-डाकू ही क्यों न हो, उन्हें मान-सम्मान देगा और काली औरत को, भले ही वह कितनी भी गुणवती हो, उस पर व्यंग्य-ताने कसेगा। इसकी वजह शायद दो सौ सालों की गुलामी है। गुलामी करते-करते, अपने मालिक के रंग के प्रति जो श्रद्धा भाव जाग चुका है, वह श्रद्धा, अंग्रेजों के विदा हो जाने और उनकी हज़ारों करतूतों का भंडाफोड़ होने के बाद भी दिल से नहीं गई।
दुनिया के दो छोरों पर, दो-दो किस्म के वर्णवाद के बीच में खड़ी हूँ! अकेली साँवले रंग की औरत! अचानक मेरी आँखों में सपने तैरने लगते हैं। काश, पूरब और पश्चिम प्यार से एक-दूसरे को गले लगा लेते! काश, जाति और वर्ण में कोई फर्क न रहता! काश, जातिवाद जैसी खौफनाक प्रथा, दुनिया से मिट जाती! तव कैसा होगा वह भविष्य? तब देश-देश के बीच फर्क करने वाला काँटा-तार नहीं रहेगा। श्वेत-श्याम मिलकर एकाकार हो जाएँगे और भविष्य में न गोरे रहेंगे, न काले, सब वादामी या श्यामल रंग में घुल-मिल जाएँगे। हमारे भविष्य में श्याम और समता का चंदोवा छा जाएगा।
मेरी स्वप्न-बेचैन आँखें बार-बार नम हो जाती हैं।
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