लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :9789352291526

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

419 पाठक हैं

औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


बहरहाल किसी बंगाली के लिए मेरी प्यास इसके बाद भी कम नहीं हुई ! लगभग हर दिन ही ढाका, कलकत्ता फोन करने के अलावा जब मैं बर्लिन में थी, एक बंगाली रेस्तरां में खाना खाने के लिए पहुँची तो मेरी मुलाकात चंद प्रवासी नौजवानों से हुई!

उनमें से कौन यहाँ क्या कर रहा है, यह जानने की मुझमें तीव्र इच्छा हो उठी! रेस्तरांओं में प्लेट-बर्तन धोने-मांजने, दफ्तरों में खिड़की के काँच साफ़ करने जैसे काम-काज के अलावा, उनमें से कुछ लड़कों ने बंगाली व्यंजनों का अपना रेस्तरां भी खोला था। उनमें से ही एक लड़के ने जर्मन-विवाह किया था। वह कसीदे हाँकता था। वह सभी लोगों में नमस्य था। जर्मन लड़कियों से विवाह करना वहद आसान है। फटाफट विवाह किया जा सकता है! जर्मन वीवी की मेहरवानी से जर्मनी में रहने के कागज आदि जुट जाते हैं और उसके बाद उस वीवी को तलाक देकर, अपने देश की कोई कमसिन ब्याहकर ले आते हैं। मैं यह सुनकर आतंकित हो उठी। हाँ, यही हो रहा है, ऐसा ही होता है। जर्मन लड़कियाँ इस जाल में फँसती ही क्यों हैं? शायद उन लोगों के लिए भी ज़रूर 'यहाँ नहीं-यहाँ नहीं' की समस्या है! पूर्व के लड़के नरम-गरम होते हैं, अच्छे प्रेमी होते हैं; पूर्व के लड़के और ये लड़के प्रेमी के प्रति वफादार भी होते हैं, बात-बात में पचास-पचास या आधा-आधा की बात नहीं करते-लेकिन स्वीडन की लड़कियों में इस किस्म की धारणा काम करती है। यहाँ बंगाली लड़कों और जर्मन लड़कियों में कुछेक प्रेम-विवाह हुआ है, कुछेक विवाह समझौते के मुताबिक होते हैं। ज़्यादातर विवाह समझौते के ही होते हैं। लड़कियाँ रुपए-पैसे लेकर, विवाह के कागज पर दस्तख़त मार देती हैं। लड़कियों की कमाई हो जाती है, लड़कों के यहाँ रहने पर कानूनी मुहर लग जाती हैं किसी बंगाली के लिए मेरी प्यास अचानक इतनी बढ़ गई कि अपनी तकदीर बदलने की उम्मीद में आए हुए इन लड़कों में से ही किसी एक को पा लेने के लिए मैं उतावली हो उठी। मेरी अपनी जिंदगी धीरे-धीरे मुझे हताशा की गहरी खाई की तरफ खींचे लिए जा रही थी कि मैं कोई प्रेम की छाँह चाहती थी, जहाँ मैं अपने को छिपा सकूँ। प्रेम वह खड्डा है, जहाँ पनाह ले ली जाए तो अपना चेहरा नज़र नहीं आता। सेक्स के लिए अकुलाहट, उस खड्डे के कीचड़ में अपने को गर्क करके, अदृश्य होने का कौशल है। उठानरहित, हृदयरहित बंगाली मर्यों से मिलकर, मेरी हताशा आग की लपटों की तरह और तीखी होकर धधक उठी, लेकिन यह मामूली-सा आना-जाना, विदेशों में बसे हुए बंगालियों के जीवनयापन के बारे में थोड़ा-बहुत मंज़र तो सामने आया, जिस जीवन शैली से मेरी हज़ारों माइल की दूरी थी। 'तसलीमा' परिचय को पीछे धकेलकर, मैंने उन्हीं की कतार में उतरकर, उन लोगों को जानने की कोशिश की। अगर मैं अपने देश में होती तो उन लोगों से मिलने-जुलने के मौके का सवाल ही नहीं उठता, लेकिन मेरी इस आंतरिकता का बिल्कुल अलग अर्थ लगाया गया। वहाँ बांग्लादेश के दो-चार बंगाली लड़कों से मेरी जान-पहचान हुई, जो दाऊद हैदर नामक किसी शख्स के बारे में अकथ्य भाषा में गाली-गलौज करते थे और ज़ोरदार लहजे में बताते रहते थे कि वह उधार लेकर कभी वापस नहीं करता; निर्लज्ज तरीके से झूठ बोल-बोलकर, अपनी जिंदगी चलाता है। उसी दाऊद हैदर ने जब मेरे खिलाफ़, शुरू से अंत तक झूठी कहानी गढ़कर, कलकत्ता के अख़बार में छपवा दी, तो इन्हीं लड़कों ने अपनी जुबान पर ताले जड़ लिए। यह वही दाऊद हैदर है, जिसने सन् सत्तर के दशक की शुरुआत में मुसलमानों के पैगंबर मुहम्मद को गालियाँ देते हुए एक कविता लिखी थी और इस जुर्म में उसे बांग्लादेश से निकाल बाहर किया गया था। मुझे उस इंसान से हमदर्दी थी। जाने कहाँ से उसने मेरा फोन नंबर पता कर लिया गया था। मुझे स्वीडन में दो बार फोन भी किया था! उस वक्त भी मैंने उसे देखा नहीं था, न कभी आमने-सामने बात हुई थी। वर्लिन में मैंने उसे पहली बार गुन्टुर ग्रास की नयी पुस्तक के पाठ के कार्यक्रम में देखा था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book