जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
मकान के अंदर पुलिस! मकान के वाहर पुलिस! चारों तरफ पुलिस ही पुलिस। ये लोग हमारे देश की पुलिस की तरह नहीं थे। उन लोगों को देखकर कोई समझ ही नहीं सकता कि वे लोग पुलिस हैं। सभी लोग चुस्त-दुरुस्त परिधान में! साथ में जैकेट और पिस्तौल ! आपसी संपर्क के लिए कानों में तार लिपटे हुए! घड़ी में माइक्रोफोन जड़ा हुआ! रह-रहकर वे लोग आपस में बातें कर रहे थे, बातें सुन रहे थे। उन सभी लोगों के साथ मुझे बारी-बारी से हाथ मिलाना पड़ा। सारी पुलिस बारी-बारी से मुझे अपना नाम बताती रही। वे नाम मेरे दिमाग में घुसने से पहले ही हवा हो गए। सोफे पर बैठकर पुलिस के लोगों ने टेलीविजन देखना शुरू कर दिया। टेलीविजन पर हर पल मेरी ही तस्वीरें! मेरी ही ख़बर! उस वक़्त हर चैनल पर वही-वही चर्चा-आजकल मैं देश में नहीं हूँ। किसी दूर देश में, किसी गुप्त जगह रह रही हूँ। मैं बेहद थकी हुई हूँ, आराम कर रही हूँ। मैं जहाँ भी हूँ, सुरक्षित और सही-सलामत हूँ। अभी तक मैंने कहीं भी इंटरव्यू नहीं दिया है। लेकिन अनुमान है कि बहुत जल्दी ही मेरी जुबानी कुछ सुनने को मिलेगा-टेलीविजन की इस खबर से मेरे अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हई। मेरे पेट में चहे कद रहे थे। दोपहर ढलकर शाम हो आयी! वहाँ किसी ने भी खाने का जिक्र नहीं उठाया। भूख ऊ को भी लगी थी। चेहरा सूखा हुआ! मुझे झल्लाहट होने लगी। नींद ने मुझे बचा लिया। नींद के मारे तन-बदन शिथिल हो आया। देश में इस वक्त रात उतर आयी होगी, वैसे विदेश में धूप चमक रही थी। हुँः धूप का नज़ारा करे मेरी बला! मेरी पलकें मुंद आयीं!
असमय मेरी नींद तोड़कर अचानक लेना नामक एक लड़की कमरे में दाखिल हुई। मरगिल्ली-सी देह! ऊँचे-ऊँचे दाँत! स्तनहीन! लाल बालों वाली! उसने आते ही. रोबोट की तरह. मशीनी आवाज में अपना भाषण शरू कर दिया और स्वीडन देश के बारे में छोटी से छोटी जानकारियाँ देने लगी। यह देश बेहद भला है! अतुलनीय है! इस देश में जनसंख्या वृद्धि दर, अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले सर्वाधिक है।
लेना ने बताया, वह गैबी की बीवी है। उस वक़्त मैं बिस्तर पर बैठी हुई थी। वह खड़े-खड़े ही बातों की लगातार रेलगाड़ी दौड़ाती रही। अचानक उसने अपने जाने का भी ऐलान किया। उसका एक बेटा है। उसे डे-केयर से लेकर लेना को घर लौटना था। यूँ उसका घर करीब ही था! पैदल-रास्ता! लेना अपनी साइकिल से आयी थी, साइकिल से ही लौट गयी। साइकिल के पीछे बच्चों के बैठने के लिए सीट! घर-मकानों के सामने, क़तार-दर-क़तार साइकिलें खड़ी थीं।
उस वक्त घड़ी में रात के दस बज रहे थे, लेकिन बाहर चमचमाता दिन! यह भला कैसे संभव है? क्या सच हो इस वक्त रात के दस बजे हैं या दिन के दस वजे हैं? शायद मेरे अंदर ही सव कुछ गड्डमड्ड होता जा रहा है। मैंने पुलिस से ही वक्त दरयाफ्त किया। उसने भी फट् से जवाब दे दिया, 'हाँ, अभी दस बजे हैं।'
मैं इस इंतज़ार में थी कि गैबी या काई और आकर. हमें किसी रेस्तरां में ले जाएगा। लेकिन गवी आया और हम सबको 'गड नाइट' कहकर चला गया। मैंने भी मारे संकोच के न अपने भूखे होने की बात बतायी, न खान का जिक्र छेड़ा। मेहमान ही आगे बढ़कर अपने भूखे होने के बारे में बताए, कम-से-कम ऐसी शिक्षा मुझे वचपन से ही नहीं मिली थी। अस्तु, मेहमान के मुँह पर ताला! मैंने गौर किया, पुलिस के लोग किचन से कॉफी बनाकर ले आए। वे लोग कॉफी पीने लगे। आखिरकार मैं भी लाचार होकर, किचन में जा घुसी और अपने लिए चाय बनाने के सामान वगैरह खोजने लगी। नहीं, चाय कहीं नहीं थी। एक डिब्बे में कॉफी पड़ी हुई थी। अच्छा, पानी तो कहीं मिल सकता है? खोजने पर पानी की बोतल तक नहीं मिली।
मैंने मौका देखकर सवाल किया, “आप लोग सोएँगे कहाँ?"
नहीं, वे सोएँगे नहीं। वे लोग ड्यूटी पर हैं और ड्यूटी के वक़्त सोया नहीं जाता। पुलिस रात भर वगल के कमरे में बैठी-वैठी टीवी देखती रही और उठ-उठकर घर-बरामदे की निगरानी करती रही। कहीं कोई खिड़की या दरवाजे पर कोई दस्तक तो नहीं दे रहा है? मकान के बाहर भी सादे कपड़ों और पुलिस-वर्दी में पुलिस गश्त लगाती हुई! अंदर भी पुलिस बैठी हुई थी। उनकी निगाहों के सामने या तो खाली-खाली दर-दीवारें या टेलीविजन!
मैंने कमरे का दरवाजा अंदर से कसकर बंद कर लिया, खामोश बैठी रही। समूची रात वैठी रही। नींद न आने की कई-कई वजहें थीं-वक्त का हेर-फेर, भूख, ङ के बारे में दुविधा, स्वीडिश पेन क्लब की रहस्यमयता-जिसे लेकर, समूची दुनिया में इतनी हलचल मची हुई है, उसे किसी अच्छे-से होटल में ठहराने के इंतज़ाम के वार में किसी को भी ख़याल नहीं आया। उसके खाने-पीने का भी कोई इंतजाम नहीं किया गया। इस बारे में किसी ने सोचा तक नहीं। हालाँकि पूरी दुनिया में धूम मचा था कि स्वीडिश पेन क्लब मेरा अभिनंदन करने जा रहा है, समचे विश्व में चर्चा है कि मैं स्वीडन नामक उदार देश की मेहमान हूँ। मैं असमंजस में थी! लेकिन अपनी आदत की खूबी के मुताबिक मैंने अपनी तमाम दुविधाएँ झटक दी और जो कुछ सामने था, उनमें ही मैंने आंतरिकता और ईमानदारी खोजने की कोशिश की। मैंने अपने को तसल्ली दी कि स्वीडिश पेन क्लब का मतलब सिर्फ गैबी ग्लेइसमैन और उसकी बीवी ही नहीं है और अन्य लोग भी ज़रूर हैं। चूँकि यह पहला दिन है। इसलिए सब गड्डमड्ड है। कुछ दिन गुज़रते ही सब ठीक हो जाएगा।
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