लोगों की राय

नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा

प्यार का चेहरा

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :102
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5135
आईएसबीएन :000

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

223 पाठक हैं

नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....

8

एक ही परिवेश में पाले-पोसे गए एक लड़की और एक लड़के के बीच गार्हस्थ्य जीवन की जानकारीका फर्क जमीन-आसमान का हुआ करता है। लड़कियां न मालूम कैसे सारा कुछ जान लेती हैं, सीख लेती हैं। लड़कों के लिए उस बोध का दरवाजा बंद ही रहता है।

खासकर इस उम्र की अवधि तक। लड़के जैसे अभी-अभी इस धरती पर आए हों और जो कुछ सुनते हैं,अवाक् हो जाते हैं। और लड़कियां सब कुछ से अवाक् होना नहीं जानतीं, सारा कुछ जानकर उस्ताद हो जाती हैं।

जिस परिस्थिति में लड़कियां कार्य-कुशल हो जाती हैं, उस परिस्थिति में लड़कों में यह समझनहीं रहती कि क्या करें और क्या न करें। सागर को यह सोचकर अचरज हुआ कि लतू सागर से सिर्फ आठ महीने बड़ी है।'' उसकी आंख, मुंह, बातचीत, भाव-भंगिमावगैरह देखकर लग रहा था, वह जैसे सागर की मां, नानी के दल की हो।

लतू एक खासी बड़ी औरत है और सागर मात्र एक बाइक है।

सागर को अभी लत पर बेहद गुस्सा आया। जैसे लतू ही सागर को बौना बनाकर, उसे लांघ,बड़ी हो गई हो।

अब सागर कठोर हो गया।

घुस ! वह दीदी क्यों कहने जाएगा !

लतू दी !

लतू ! हां, सिर्फ लतू ! और हां, 'तू ही कहना ठीक रहेगा। वह यदि अनायास ही सबको तू कहसकती है तो सागर क्यों नहीं कहेगा?

बड़े भाई ने आकर पसीने से भीगे कुरते को उतार खाट के पाये पर फैला दिया। सागर ने दोनोंअमरूंदों को बढ़ाते हुए कहा, “यह ले।"

प्रवाल ने गौर से देखा और खिलखिलाकर हंसते हुए कहा, "तू मुझे देने अश्या है? यह ले,कितने खाएगा?”

प्रवाल अपनी पैंट के दोनों पॉकेटों से उसी तरह के ताजे परिपक्व अमरूद निकाल सागर केबिस्तर के किनारे रख देता है।

अब सागर की नजर पड़ती है, भैया के पॉकेटों में दो ढूह उभर आए हैं।

सागर ने मुसकराते हुए पूछा, “कहां मिला?”

बह कौन-सा स्थान है जहां नहीं मिलेगा? चारों तरफ अमरूद के पेड़ हैं और ढेर सारे फल फलेहैं।"

"कितनी अजीब बात है ! कोई नहीं लेता है?"

"कितने सारे लेंगे? यहां के लड़के-लड़कियों के लिए यह कोई नयी बात नहीं है। अरुचि होगयी है। तुझे पैर के कारण कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

लड़के कभी अपने मन का भाव प्रकट करने के लिए 'हाय' शब्द को उच्चारण नहीं करते, इतना हीकाफी है। सागर के मन में सुखदुःख को एक लहर जगती है।।

बड़ा भाई कुरता-बनियान उतार अलगनी को उलट-पुलटकर एक दूसरी बनियान की तलाश कर रहाथा। सागर ने कहा, "लतिका सरकार ये दो अमरूद तेरे लिए रख गई है। उन लोगों के पेड़ के हैं।"

"लतिका सरकार !"

प्रवाल बोला, "वे कौन हैं?”

"वही लड़की। हम लोग जिस दिन पहुंचे थे, उसका हो-हल्ला सुन तूने कहा था-लगता है, ये हीस्वागत समिति की चेयरमैन हैं।”

"ओह ! वही लड़की, मां ने जिसे लहू-लतू कहकर संबोधित किया था? वे कब लतिको सरकार बनगईं?''

"मुझे तो बताया, उसका यही नाम है।"

भैया बोला, "वह लड़की बड़ी ही बातूनी है। उस दिन उतना बड़बड़ा रही थी। तुझे परेशान करनेआयी थी?"

सागर हंस दिया और बोला, "ठीक ही कहा है तूने।"

लतिका के प्रसंग पर यवनिका-पात कर प्रवाल ने कहा, "उस भलेमानस से आज जमकर बातें हुईं। वेरीइंटेलिजेन्ट। उनके जेहन में कितने आइडिया हैं।"

"कौन, वही साहब दादू?”

"हुँ। सुनने को मिला, सभी यही कहा करते हैं। उन्होंने बेशक जोर से ठहाका लगाते हुए कहा,साहब का कौन-सा चिह्न दिखाई पड़ा मेरे अन्दर? ताड़ के पत्ते की यह टोपी? या फिर फटे हुए बुट?...भलेमानस से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।"

"आइ० सी० एस० अफसर थे?”

"हां, थे। इसके अलावा बहुत कुछ स्टडी की है उन्होंने। सुनकर आश्चर्य होगा कि एक बारमधुमक्खियां पालकर उन्होंने दो सेर शहद तैयार किया था।”

सागर को लगा, भैया उन्हें देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ है।

उफ् ! सागर का पैर कब ठीक होगा?

अपना साज-पोशाक उतार बी० एन० मुखर्जी तेल मालिश कर रहे। थे। इसके बाद तालाब में स्नानकरेंगे।

अचानक मुखर्जी की पुकार गूंज उठती है।

"अरे चिनु, आ-आ। यही तेरा छोटा बेटा हैं? पैर ठीक हो गया है?"

चिनु खुलकर हंस पड़ी और बोली, “हां। उसी दिन से एक बार तुम्हारे पास लाने को छटपटा रहीथी।

मां का यह 'तुम' शब्द सागर के कान में खटका। सागर वगैरह तो चाचा, ताऊ, मौसा, फूफा वगैरह कोआप कहा करते हैं। इसका मतलब कि फूलझांटी में सभी एक-दूसरे से धनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं।

सागर को छुटपन से ही पता है कि बड़े-बुजुर्गों पर पहले-पहल नजर पड़ने पर प्रणाम करनाचाहिए। मां ने ऐसा आदेश भी दिया है। मगर ऐसा करने में संकोच का अनुभव हो रहा है।....बड़े-बुजुर्गों पर नजर पड़ते ही तुरन्त सिर झुकाना निहायतबचकाना जैसा लगती है। फिर भी प्रणाम न करने पर बेचैनी का अहसास होता है।

करूं या न करू, इस दुविधा के चलते अकसर ठिठककर खड़ा हो जाता है।

अचानक कद लम्बा हो जाने के कारण ऐसा महसूस करता है? या फिर सागर के हमउम्र तमाम लड़कों कीऐसी ही मानसिकता होती है?

क्या करूं, क्या न करूं जैसी हालत के रू-ब-रू होने के भय से, जहां तक बन पड़ता है, सागर घरमें किसी के आने पर उसके पास जाना नहीं चाहता है।

जानता है कि मां या तो प्रणाम करने का इशारा करेगी या फिर जोर से कहेगी, “यह क्या रे,ठिठककर खेड़ा क्यों है? प्रणाम कर।"

उस समय कितना गुस्सा आता है !

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book