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प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5289
आईएसबीएन :81-88388-21-1

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प्रारब्ध है पूर्व जन्म के कर्मों का फल। फल तो भोगना ही पड़ता है, परन्तु पुरुषार्थ से उसकी तीव्रता को कम किया जा सकता है

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