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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान

थोड़े-से विचार-विमर्श पश्चात् वे लोग जल-संधान के लिए गुफा में प्रवेश करने को सहमत हो गए; किन्तु गुफा के भीतर सघन अंधकार था। जाने गुफा कितनी लम्बी थी और उसमें किस प्रकार के जीव-जन्तु निवास करते थे। "यदि यह गुफा किसी जलाशय तक ले जाती है।" सहसा शरगुल्म ने कहा, "तो वह जलाशय इस गुफा के उस पार होगा। क्यों न हम पर्वत के ऊपर चढ़कर दूसरी ओर उतर जाएं और वहां जलाशय को खोजें?"

हनुमान को लगा, यदि फिर इस प्रकार के विकल्पों की चर्चा होने लगी तो अनेक लोगों के मन में अनुत्साह जागने लगेगा और गुफा में प्रवेश धरा का धरा रह जाएगा।

और यदि वह जलाशय, पृथ्वी से फूटने वाले जल के किसी उत्स का परिणाम हुआ और वह उत्स गुफा के मध्य में ही हुआ तो हमें दूसरी ओर से भी इस अंधकारमय गुफा में प्रवेश तो करना ही पड़ेगा; उल्टे पर्वत लांघने का अतिरिक्त परिश्रम भी उठाना पड़ेगा। फिर, यह भी संभव है कि यह गुफा दूसरी ओर से खुली हुई न हो। ऐसी स्थिति में हम पर्वत लांघकर, दूसरी ओर तो जाएंगे ही, गुफा का दूसरा द्वार न खोज पाने की असफलता से थक-हारकर पुनः पर्वत लांघकर इस ओर वापस लौटेंगे और फिर इसी गुफा में ऐसे ही प्रवेश करेंगे।"

"तुम्हारी बात तो ठीक है हनुमान।" असंग बोला, "किन्तु गुफा सर्वथा प्रकाश-शून्य है। उसके भीतर हिंस्र अथवा घातक जंतुओं के होने की पूरी संभावना है। संभव है कि विषधर सर्प इत्यादि भी हों।"

"संभावनाएं तो सब प्रकार की हैं, भली भी बुरी भी।" हनुमान ने उत्तर दिया, "प्रवेश न करने पर अहितकर संभावनाओं से तो हम मुक्त रहेंगे ही, किन्तु हितकर संभावनाओं का कोई लाभ नहीं उठा सकेंगे। क्यों युवराज?" अंगद ने कुछ कहा नहीं, किन्तु वे हनुमान से सहमत प्रतीत हो रहे थे।

"मेरा प्रस्ताव है कि हम सब लोग एक-दूसरे का हाथ पकड़कर गुफा में प्रवेश करें।" हनुमान बोले, "यदि युवराज की अनुमति हो, तो सबसे पहले मैं प्रवेश करूंगा। इससे हम अंधकार में एक-दूसरे का सहारा भी ले सकेंगे; अपने अनुभव का लाभ भी दे सकेंगे और परस्पर निकट भी बने रहेंगे।"

"उत्तम प्रस्ताव है।" जाम्बवान् ने अपनी सहमति प्रकट कर दी। हनुमान ने अंगद की ओर देखा। स्वीकार है।" अंगद ने उत्तर दिया। सबसे पहले हनुमान ने प्रवेश किया। उनका हाथ पकड़कर उनके पीछे अंगद गए। अंगद का हाथ नील ने पकड़ा, नील का तार ने। तार के बाद जाम्बवान् आए। फिर तो एक-एक कर, सब लोग आ गए। अब खोजियों का स्वतंत्र महत्त्व समाप्त हो चुका था। यह क्षेत्र उनके लिए भी सर्वथा अपरिचित ही था। वे भी अन्य लोगों के ही समान, हाथ पकड़े-पकड़े गुफा में प्रवेश कर गए। प्रारम्भ में हल्का-हल्का दिखाई देता रहा; किन्तु कुछ आगे बढ़ने पर पूर्णतः अंधकार छा गया।

पैरों के नीचे शुष्क और कठोर धरती थी, जिसमें स्थान-स्थान पर कंकड़ भी थे। ऐसा नहीं लगता था कि इस कठोर धरती में आस-पास कहीं कोई जल-स्रोत भी होगा। थोड़ी दूर चलने पर हनुमान का सिर नीचे झुक आई किसी शिला से टकराया। वे धरती को, पैरों से टटोल-टटोलकर आगे बढ़ रहे थे, अतः गति बहुत ही धीमी थी। सिर में अधिक चोट नहीं आई।" क्या हुआ?" उन्हें रुकते देख, अंगद ने पूछा।

"यहां से गुफा या तो संकरी हो गई है।" हनुमान बोले, "या फिर उसका स्वरूप कुछ बदला है।"

"तुम्हें कैसे मालूम?"

"मेरा सिर ऊपर टकराया है युवराज!" हनुमान धीरे से बोले। वे अपने एक हाथ से ऊपर की शिला को टटोल रहे थे।

"क्या हुआ?" अनेक लोगों का जिज्ञासामय स्वर गुफा में गूंजा।

"क्या सर्प तो नहीं है?" एक स्वर आया।

"नहीं कुछ नहीं है।" हनुमान उच्च स्वर में उनकी आशंकाओं का निवारण करते हुए बोले, "यहां गुफा सीधी न रहकर कुछ आड़ी हो गई है। यहां से अपना सिर तिरछा करके निकलना।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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