बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
हनुमान का उत्साह जाग उठा और मुख उल्लासित हो गया। उन्होंने कृतज्ञता-भरी दृष्टि से जाम्बवान की और देखा और बोले, "हम लोग दो-दो व्यक्तियों की टोलियों में आस-पास के क्षेत्र का निरीक्षण करें। जिसे भी खाद्य पदार्थ अथवा जल का आभास मिले, वह टोली यहीं आकर, इस वृक्ष के नीचे अन्य लोगों को पुकारें। दो-दो व्यक्तियों की दस टोलियां बन गईं और वे लोग अपने पांव घसीटते हुए इधर-उधर बिखर गए। कुछ के मन में सचमुच आशा जाग उठी थी कि यहां यदि कोई भी जीव है तो खाद्य मिले न मिले, जल तो मिलेगा ही; किन्तु शेष लोग इसे अब भी हनुमान के उत्साह का अतिरेक ही मान रहे थे। फिर भी, इतना तो निश्चित था कि व्यक्ति के अनुत्साह से शेष लोगों में भी अनुत्साह ही जागता था-और अनुत्साह से कोई लाभ नहीं था।
उस पर्वत के विभिन्न भागों में घूमते-घूमते जब प्रहर-भर बीतने को आया और फिर प्यास से थक-हारकर उनके बैठ जाने की संभावना जागने लगी, तभी उन्हें जाम्बवान के पुकारने का-सा स्वर सुनाई पड़ा। किन्तु उनका स्वर उस वृक्ष की दिशा में से नहीं आ रहा था, जहां से खोज आरम्भ
हुई थी और कुछ मिल जाने पर जहां से पुकारना निश्चित हुआ था। अन्य किसी स्थान से पुकारने का क्या अर्थ।-हनुमान ने सोचा-क्या वृद्ध जाम्बवान किसी कठिनाई में फंस गए हैं? किन्तु उस आह्वान में संकटग्रस्त होकर, असहायता में पुकारने के स्थान पर कुछ उपलब्धि का-सा ही भाव था।
"मुझे लगता है कि जाम्बवान् ने कुछ पा लिया है। "हनुमान बोले।
"मेरा भी अनुमान है।" अंगद ने सहमति प्रकट की।
वे झपटते हुए-से उसी दिशा में चले। जाम्बवान् और तार एक बड़ी-सी गुफा के सम्मुख खड़े थे। उनकी आंखों में विस्मय और उपलब्धि का भाव था। थोड़ी-थोड़ी देर में वे अन्य साथियों को पुकार लेते थे, फिर उसी प्रकार चकित भाव से उस गुफा की ओर देखने लगते थे। दल के अन्य लोग भी आकर उनके निकट उसी मुद्रा में खड़े थे।
"क्या बात है तात जाम्बवान्!" अंगद ने आगे बढ़कर पूछा।
"वह गुफा, युवराज। "जाम्बवान् ने बिना अंगद की ओर देखे ही, तर्जनी से उस गुफा की ओर इंगित कर दिया।
"गुफाएं तो इस पर्वत में भरी पड़ी हैं।" अंगद कुछ रोष से बोले, "आप हम लोगों को गुफा देखने के लिए बुला रहे हैं क्या?"
जाम्बवान् कुछ सचेत हुए। उन्होंने आंखें झपकाकर अंगद को देखा, जैसे स्वयं को संतुलित न कर पा रहे हों।
किन्तु उनके कुछ बोलने से पूर्व ही तार ने कहा, "नहीं युवराज, तुम्हें गुफा देखने के लिए नहीं बुला रहे हैं। हमने इस गुफा में से, अनेक पक्षी उड़कर बाहर आते देखे हैं। उनमें चक्रवाकों का एक जोड़ा ऐसा भी था, जिनके पंख जल से भीगे हुए थे। और हमारा तो विचार है कि उनके पंखों पर कमल का पराग भी अवश्य छिटका हुआ था।" अंगद ने हनुमान की ओर देखा। "आप लोगों ने ठीक-ठीक देखा है तात?" हनुमान गंभीरता और विनोद की मध्य स्थिति में थे, "ऐसा तो नहीं कि अपनी प्यास की पीड़ा, आपको पक्षियों के पंख भी भीगे हुए दिखा रही हो।"
"नहीं हनुमान, हमने ठीक-ठीक देखा है।" जाम्बवन अब पर्याप्त स्थिर लग रहे थे, "मेरे साथ आओ।"
जाम्बवान् के पीछे-पीछे वे लोग गुफा के मुख के निकट आ गए। जाम्बवान् झुककर, मिट्टी में खोज रहे थे। उन्हें अधिक खोजना नहीं पड़ा थोड़ी देर में ही वे तनकर सीधे खड़े हो गए और तर्जनी से उन्होंने एक विशिष्ट स्थान की ओर संकेत किया, "यह देखो।"
हनुमान और अंगद ने झुककर देखा, निश्चित रूप से वहां पानी की दों-चार बूंदें टपकी थीं जिन्हें मिट्टी ने सोख लिया था किन्तु बूंदों के चिन्ह अभी मिटे नहीं थे। अब तक उनके दल की दसों टोलियां वहां एकत्रित हो चुकी थीं और प्रायः सभी सहमत थे कि धरती पर चिन्ह पानी की बूदों के ही चिन्ह थे; अतः जाम्बवान् और तार ने ठीक ही देखा था कि उस गुफा में से भीगे पंखों वाले चक्रवाक अवश्य निकले होंगे। ऐसी स्थिति में गुफा के भीतर कहीं जलाशय भी होना चाहिए।
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