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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान


"क्यों मित्रों, क्या विचार है?" अंगद ने हताश-से-स्वर में पूछा। 

"युवराज अब तो चलना कठिन है।" असंग ने कहा, "या तो भोजन और जल का कोई प्रबन्ध हो अथवा अपने खड्ग से हमारा वध कर दो।" अंगद को लगा जितनी दूर तक समझ रहे थे निराशा उससे भी आगे बढ़ चुकी थी। हनुमान की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।

हनुमान की आंखों में रुद्र क्रोध और विवशता के भाव थे पर देखते-ही-देखते वे जैसे अपने क्रोध को गटक गए और अपने चेहरे पर बलात् मुस्कान लाकर बोले, "निष्फल वृक्ष के तने से लगकर बैठ जाने से तो मुख में खाद्य पदार्थ नहीं आ पड़ेगा। न ही अभी कोई वर्षा होने वाली है कि बैठे-बैठे आपके मुंह में मेघ जल टपका जाएंगे। खाने-पीने को कुछ चाहिए तो उठो, कुछ उद्यम करो।"

"उद्यम से क्या होगा?" मेंद खीझ-भरे स्वर में बोला, "यह वृक्ष अपना रूप बदलकर छल का वृक्ष बन जाएगा अथवा यह शिला जलाशय में परिणत

हो जाएगी? उद्यम कोई वहां करता है जहां उसे आशा दीखे। तुम्हारे समान धैर्य हम कहां से लायें भाई। तुम तो कहोगे कि शिलाएं तोड़कर हम यहां खेत बनाएंगे और उसमें अन्न बोएगे। वह उगेगा, फलेगा, पकेगा तो हम खाएंगे। यहां तो इतना ही पर्याप्त है कि उस खेत के लिए कुछ बीज ले आओ; हमें वे बीज ही खिला दो।"

हनुमान के जी में आया कि मेंद की भुजा पकड़ घसोटकर उसे खड़ा कर दें और धकेलते हुए ले चलें। किन्तु उसके सूखे हुए होंठ, जल्दी-जल्दी उठता-गिरता वक्ष, तेजी से चलती सांस बता रही थी कि वह सचमुच बहुत पीड़ित और निढ़ाल है। उस समय तनिक-सी असावधानी से शेष लोग भी उसके पक्ष में हो जाएंगे। तब समस्या और भी जटिल हो जाएगी।

कुछ क्षणों के लिए हनुमान असहाय-से खड़े रह गए; फिर सोचकर बोले, "यहां अन्न उपजाने की स्थिति तो नहीं है; किन्तु इस प्रकार बैठ जाने या लेट जाने से क्या होगा। आस-पास कुछ पक्षियों के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं। मेरा विचार है कि हम खोज करें तो कोई-न-कोई उपयोगी वस्तु अवश्य मिल जाएगी।"

"क्या! उन पक्षियों का अन्न भंडार?" हनुमान गम्भीर स्वर में बोले, "आखिर वे पक्षी भी तो कुछ-न-कुछ खाते ही होंगे। संभव है कि आसपास फलों के वृक्ष भी हों।"

"पक्षी खाते हैं कीड़े-मकोड़े।" असंग ने उत्तर दिया, "हनुमान चाहेंगे कि हम लोग पहले उन पक्षियों को खोजें। फिर देखें कि वे लोग अपना भोजन पाने के लिए कहां चोंच मारते हैं; और फिर वहीं से उन कीड़ों को चुन-चुनकर हम भी खाएं।"

न चाहते हुए भी हनुमान कुछ खीझ उठे, "बुद्धि तो तुम लोगों की चंचल हरिण के समान कुलांचे भर रही है; और शरीर तनिक नहीं हिलता। उठकर सब लोग थोड़ा इधर-उधर घूमो। पास के थोड़े-से क्षेत्र में भी फैलकर ढूंढों-और कुछ नहीं तो कोई जलाशय तो होगा ही। पक्षी जल तो पीते ही हैं।"

"हनुमान ठीक ही कह रहा है। "जाम्बवान उठकर खड़े हुए, "इस तरह बैठे-बैठे तो भूख मिटेगी नहीं। "सहसा वे असंग और मेंद की ओर घूमे, "मैं तो वृद्ध हूं, इन्द्रियों में उतनी सहनशीलता नहीं रही। इसलिए थककर बैठ गया। तुम लोगों को क्या हुआ है युवको। सराहो अपने मित्र हनुमान को, जो तुम लोगों का साहस बनाए रखता है; नहीं तो तुम लोग कहीं भी समाधि लगाकर बैठ जाओगे।"

जाम्बवान् ने आगे बढ़कर तार की भुजा पकड़कर झटका दिया, "उठो! तुम भी बच्चा बनकर बैठ गए। तुमको सम्राट ने इसलिए साथ भेजा था कि युवराज का उत्साह बनाए रखो, या इसलिए भेजा था कि उनके साहस और धैर्य की परीक्षा लेते रहो ओर उनका रहा-सहा उत्साह भी नष्ट कर दो। जाम्बवान की फटकार का सब लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ा। एक-एक कर, जैसे-तैसे सब उठकर खड़े हो गए।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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