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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान


''जैसी तुम्हारी इच्छा।'' राम ने सहमति प्रकट की, ''मेरे विचार से भी दक्षिण दिशा की ही अच्छी प्रकार खोज होनी चाहिए; और उसमें भी विशेष रूप से लंका की। जनस्थान से भागकर शूर्पणखा भी वहीं गई थी। रावण भी सीता का हरण कर किष्किंधा के निकट से होकर गया है, तो संभवतः लंका ही गया होगा। लंका की भली प्रकार खोज हो मित्र। किन्तु इस दल में तुमने अपने अनेक प्रिय जन रखे हैं। विचार कर लो, इन्हें शत्रुओं के घर में घुसकर जानकी की खोज करनी है। यह न हो कि ये लोग किसी कठिनाई में फंस जाएं।''

''वह मैंने सोच लिया है।'' सुग्रीव बोले, ''मुझे चिन्ता उस बात की नहीं है।'' चिन्ता इस बात की है यदि सब लोग खोज के लिए चले गए, तो पीछे से राक्षस-युद्ध के लिए सेना-निर्माण का कार्य कौन करेगा?

''सैनिक-प्रशिक्षण का कार्य मेरा, सौमित्र का और मेरे जन-सैनिक, अब तक सैन्य-प्रशिक्षण में इतने अनुभवी हो चुके हैं कि उनसे श्रेष्ठ प्रशिक्षण कदाचित् ही कहीं मिलें।''

''तो फिर यही हो। देवी जानकी की खोज का दायित्व मुझपर रहा और राक्षसों को सम्मुख-युद्ध में पराजित करने में समर्थ वानर-सेना के निर्माण और प्रशिक्षण का कार्य आपका।'' सुग्रीव बोले और प्रधान चर की ओर मुड़े, ''नीचे जाकर मुख्य यूथपतियों तथा समस्त पार्षद को आश्रम में बुला लाओ।''

राम का आश्रम सुग्रीव के यूथपतियों और पार्षदों से भर गया। राम को ऐसा आभास नहीं था कि सुग्रीव इस प्रकार पूर्ण तैयारी के साथ आए हैं।

''अंगद!'' सुग्रीव बोले, ''मेरे पुत्र और युवराज होने के नाते, मेरे दायित्वों के निर्वाह का सर्वाधिक बोझ तुम्हारे ऊपर है, इसलिए देवी जानकी की खोज मे मैं सबसे अधिक दायित्व का कार्य तुम्हें सौंप रहा हूं। मैं और आर्य राम प्रायः सहमत हैं कि रावण सीता को लंका में ही ले गया होगा। अतः तुम लंका की ही दिशा में जाओ। तुम्हारे साथ हनुमान, जाम्बवान् तार, नील, सुहोत्र, शरारि, शरगुल्म, गज, गवाक्ष, गवय, वृषभ, मेंद, द्विविध, गंधमादन, उल्कामुख तथा असंग होंगे। खोजियों की एक पूरी टोली तुम्हारे साथ जाएगी, और तुम्हें मार्ग खोजने, मार्ग के वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं इत्यादि के विषय में सूचनाएं देने, मार्ग में रुकने की व्यवस्था करने तथा अन्य प्रकार की कठिनाइयों में सहायता पहुंचाएगी। यदि चाहो तो अपने साथ सशस्त्र वाहिनियां भी ले जा सकते हो।'' सुग्रीव रुके, ''राक्षस लोग बलवान् और मायावी हैं और मार्ग तुम्हारे लिए अनजाना है, इसलिए सावधान होकर जाना। हनुमान जाम्बवान् तार तथा नील तुमसे अधिक अनुभवी हैं अतः उनके परामर्श का पूरा लाभ उठाना; किन्तु युवराज होने के नाते, दल के नायक तुम्हीं रहोगे। निर्णय का अधिकार तथा खोज का दायित्व तुम्हारा ही होगा।'' अंगद ने हाथ जोड़ दिए, ''आपकी आज्ञा का अक्षरशः पालन होगा सम्राट!''

''और पुत्र!'' एक बात का ध्यान रखना।'' सुग्रीव का स्वर कुछ आर्द्र हो उठा, ''तुम इकलौते पुत्र हो मेरे। और वानर-राज्य के युवराज को अपने प्राणों की रक्षा पूर्ण चतुराई से करनी होगी। लंका में प्रवेश करने के लिए समुद्र पार मत करना, जहां से राक्षसों का आवागमन होता हो, अथवा जहां निकट ही उनका जलपत्तन हो। उनकी दृष्टि तुम लोगों पर पड़ गई तो हमारे लिए संकट हो जाएगा।...सारी खोज गोपन रीति से हो और एक मास के भीतर वापस लौटकर अपनी खोज की सूचना दो। एक मास की अवधि के पश्चात् असफल लौटने वाले दल के लिए मैं मृत्यु-दंड प्रस्तावित कर रहा हूं...समझ रहे हो न?''

''सम्राट की आज्ञा पूरी होगी।''

''जाओ पुत्र, अपने साथियों को सूचना दे दो और आर्य राम से आवश्यक निर्देश लेकर यथाशीघ्र प्रस्थान करो।''

अंगद के पश्चात् सुग्रीव ने तारा के पिता सुषेण को बुलाया, ''आर्य! पश्चिम दिशा में देवी जानकी की खोज का दायित्व आप ग्रहण करें। आप अपने साथ, अपने मंत्रियों को ले लें। खोजियों का एक दल आपके साथ भी जाएगा। आवश्यक समझें तो अपनी इच्छानुसार सशस्त्र-वाहिनियों को भी साथ ले लें। एक मास के भीतर आकर अपनी खोज की सूचना दे।''

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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