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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान

हनुमान ने नील, सुहोत्र तथा जाम्बवान् की ओर देखा। वे लोग उनसे सहमत प्रतीत हो रहे थे।

अंगद ने कोई उत्तर नहीं दिया। वे कुछ सोचते हुए मौन बैठे रहे। हनुमान की बात सुनकर तार भी कुछ चिंतित दिखाई पड़ने लग गए थे।

हनुमान को यह अवसर उपयुक्त जंचा। लोहा गर्म था, यदि दो-एक घन और पीट दिए जाएं, तो बात बन जाएगी। ''और युवराज, सफल या असफल-हम जब किष्किंधा पहुंचेंगे, तो मैं नहीं समझता कि आपको वानरराज से भयभीत होने का कोई कारण है। आपके अतिरिक्त उनका कोई पुत्र नहीं है। वे आपसे कितना स्नेह करते हैं! आपकी माता सम्राज्ञी तारा कहा करती थीं कि आप सम्राट बाली के इतने निकट कभी नहीं रहे, जितने तब युवराज सुग्रीव के निकट थे। वानरराज आपकी माता का प्रत्येक प्रिय करने को सदा तत्पर रहते हैं। मैं तो समझ ही नहीं पा रहा कि आपके मन में ये आशंकाएं ही क्यों हैं?''

''हनुमान ठीक कहते हैं!'' अंगद का स्वर सामान्य नहीं था, ''यदि मैं किष्किंधा लौटा तो क्रूर राजा सुग्रीव के हाथों मारा जाऊंगा; और यदि मय दानव के उस परित्यक्त प्रासाद में शरण लेने गया, तो राम और लक्ष्मण के बाणों से अपने पिता के समान मारा जाऊंगा। मैं इन दोनों को अपने लिए अपमानजनक समझता हूं।'' सहसा अंगद के स्वर में आवेश की मात्रा बढ़ गई, जैसे वे अपने आपे में नहीं रहे, ''मैं प्रतिज्ञापूर्वक आप लोगों को कह रहा हूं कि दल के नायक के रूप में मैं आप लोगों को आपके कर्तव्य से मुक्त कर रहा हूं...तथा स्वयं मरणांत उपवास  आरम्भ कर रहा हूं...।''

इससे पूर्व कि कोई कुछ कहता, अंगद अपने स्थान से उठ खड़े हुए। वे द्रुत गति से चलकर कुछ दूर तक जल के भीतर चले गए। समुद्र का जल अंजलि में लेकर आचमन किया और  लौटकर दक्षिणाभिमुख होकर अपने प्राण देने के लिए पद्मासन लगाकर बैठ गए।

सब ओर निस्तब्धता छा गई, जैसे सबके मन में मृत्यु का आतंक प्रत्यक्ष होकर आ बैठा हो। सबसे पहले तार ने मौन तोड़ा, ''मैं भी युवराज के साथ प्रायोपवेशन कर रहा हूं। आमरण उपवास!''

देखते-देखते अनेक वानर उसी प्रकार शिला पर बैठते चले गए। हनुमान को लगा, यदि यही क्रम चला तो उनका धैर्य भी डोल जाएगा।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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