बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
''क्या बात है?''
''सम्राट!'' कोटपाल अपराधी मुद्रा में खड़ा था, ''यह जन, भूतपूर्व यूथपति असिगुल्म को बन्दी करने में असफल रहा।''
''क्यों?'' सुग्रीव की भृकुटियां तन गईं।
''मैं कह नहीं सकता सम्राट ! कि मेरे पहुंचने से पूर्व ही उन तक, उनके बन्दी किए जाने के आदेश की सूचना कैसे पहुंच गई। वे अपना प्रासाद छोड़कर भाग गए हैं। उनके परिवार के सदस्यों को भी उनके विषय में कोई सूचना नहीं है।''
सुग्रीव थोड़ी देर तक सोचते रहे, ''जाओ। उसके राज्यनिष्कासित किए जाने के आदेश को प्रसारित करवा दो। समस्त सीमा-चौकियों को यह सूचना भिजवा दो। राज्य के भीतर जहां कहीं असिगुल्म देखा जाए उसे बन्दी किया जाए। स्वयं खेती कर भरण-पोषण के लिए पर्याप्त भूमि उसके परिवार के लिए छोड़कर, शेष सारी चल और अचल सम्पत्ति राज्य द्वारा अधिकृत कर ली जाए।'' कोटपाल प्रणाम कर लौट गया।
सुग्रीव ने अन्य उपस्थित यूथपतियों को राम के निकट प्रस्तुत होने का संकेत किया, ''राम! ये हनुमान के पिता कपिश्रेष्ठ केसरी हैं। ये भयंकर पराक्रमी महाराज गजाक्ष हैं। ये अत्यन्त वेगशाली धूम्र हैं : ये यूथपति पनस हैं। ये यूथपति सवय हैं। ये वानरों के बलवान् यूथपति दरीमुख हैं। ये तेजस्वी और बलवान् रुमण्वान हैं। ये वीर यूथपति इन्द्रजानु हैं। ये रम्भ हैं। ये यूथपति दुर्मुख हैं। ये महापराक्रमी नल हैं-इन्हें आप जानते ही हैं। ये दधिमुख हैं। ये शरभ, कुमुद, वह्नि और रंह हैं। ये लोग अपनी सशस्त्र वाहिनियों के साथ उपस्थित हैं। किष्किंधा में केवल राजकीय सेना है। इनकी वाहिनिया किष्किंधा के निकट के वन-पर्वत में अपने स्कन्धावार डाले पड़ी हैं। हम सब आपकी सेवा में तत्पर हैं। आप आदेश दें और जिस प्रकार चाहें हमारा उपयोग करें।''
"बैठो मित्रों!' राम ने सबको बैठने का संकेत किया और सुग्रीव की ओर देखकर मुस्कराए, "इस सहायता के लिए कृतज्ञ हूं। पहले मेरे मन में जो कुछ भी रहा हो, किन्तु आज स्पष्ट देख रहा हूं कि तुमने मेरे कार्य को समझा है।" राम कुछ रुके और फिर सबसे सम्बोधित होकर बोले, "आज सम्पूर्ण जम्बूद्वीप उस राक्षस-शक्ति द्वारा पीड़ित और शोषित है, जिसका केन्द्र लंका में हैं, और जिसका नायक रावण है। आर्यवर्त मैं वह शक्ति बहुत प्रबल नहीं हो पाई है; किन्तु विंध्य के नीचे-नीचे उनके अत्याचार अपनी चरम सीमा पर थे। यहां आकर मुझे मालूम हुआ कि यद्यपि वानरों का इतना बड़ा और विस्तृत अपना राज्य है, जन-बल तथा साहस एवं शौर्य की आपमें कोई कमी नहीं है-फिर भी यह वानर ही नहीं, ऋक्ष, गरुड़ गृध तथा अन्य जातियां राक्षसों की पशु शक्ति के कारण सदा अपने सम्मान, धन सम्पत्ति तथा जन की हानि सहती आ रही हैं क्योंकि उनके पास संगठित युद्ध-तंत्र नहीं है। जनस्थान में जन सामान्य तथा आश्रमवासी मिलकर संगठित हो गए थे, अतः राक्षसी सेना पराजित हुई। अब भी जैसे ही सीता विषयक कोई समाचार मिलेगा, हमारा सैनिक अभियान आरंभ हो जाएगा। यह युद्ध लंका में भी हो सकता है और राक्षसों के किसी अन्य राज्य अथवा स्थान में भी। इस बार हमें एक अद्भुत युद्ध करना है। इसमें हमें जनस्थान के उस समस्त क्षेत्र की भी रक्षा करनी है, जो राक्षस-शून्य हो चुका है; किष्किधा राज्य तथा नगर की भी रक्षा करनी है कि कहीं अपने बचाव के लिए राक्षस हम पर पीछे से आक्रयण न कर दें; और हमें राक्षसों के राज्य में घुसकर आक्रामक युद्ध भी करना है।''
राम ने रुककर अपने सामने बैठे लोगों के चेहरों की ओर देखा, वहां एक प्रकार की निस्तब्धता छाई हुई थी, जैसे वह राम की योजना की थाह न पा सकने के कारण शून्य में टंक-से गए हों "वस्तुतः आज तक हमने राक्षसों से जो छोटे-बड़े युद्ध किए हैं, वे प्रायः प्रतिरक्षात्मक युद्ध थे। वे हमने अपनी भूमि, अपनी जनसंख्या तथा अपने व्यूह के अनुसार किए हैं। किन्तु, अब जिस युद्ध की संभावना है, वह आक्रामक युद्ध होगा; राक्षसों की धरती पर, उनकी पक्ष-समर्थक जनसंख्या के बीच होगा। सम्भवतः हम अपनी इच्छानुसार समय और व्यूह भी नहीं चुन पाएंगे और सबसे बड़ी बात यह है कि जिस युद्ध की हम तैयारी कर रहे हैं, वह युद्ध उस सेना और सैनिक नेतृत्व से है, जो अपने युद्ध-कौशल तथा प्रहारक शक्ति के लिए विश्व-विख्यात है। अतः हमें बहुत सोच-समझकर चलना है। किसी प्रकार का कोई संकोच हो तो अभी बता दें।''
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