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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान

"भद्र राम!" यूथपति दरीमुख बोला, "जन-बल और वीरता की हमारे पास कमी नहीं है। यह आपने भी स्वीकार किया है। आज तक हम राक्षसों से सदा पीड़ित और अपमानित हुए हैं, यह भी ठीक है। फिर भी आज तक हमने राक्षसों से कभी कोई छोटा-मोटा युद्ध भी नहीं जीता है-वीरवर बाली के द्वन्द्व-युद्धों की बात अलग है। ऐसी स्थिति में लंका पर आक्रमण करना...।''

"दरीमुख!" सुग्रीव का कुद्ध स्वर गूंजा।

राम ने सुग्रीव के कंधे पर हाथ रख उन्हें शांत किया, "सम्राट, यह युद्ध-परिषद् है, अतः अपना विचार प्रकट करने की सबको पूरी स्वतंत्रता है।...आप रुष्ट न हों। यह दरीमुख की कायरता नहीं, एक युद्धवीर की सावधानी है-''

दरीमुख ने सहमति में सिर हिला दिया।

"यह असिगुल्म का प्रभाव-शेष भी हो सकता है।" सुग्रीव के स्वर में अब भी फुफकार थी।

"यह बात आज सदा के लिए स्पष्ट हो जानी चाहिए सम्राट!" दरीमुख विनीत किन्तु दृढ़ स्वर में बोला, "यदि आप अनुमति दें तो अपने सभी

साथियों की ओर से निवेदन कर दूं कि आप अपने मन में हमारे प्रति संशय न रखें। असिगुल्म का प्रभाव असिगुल्म के साथ गया। अब आप हमें अपने प्रिय साथियों के समान ही विश्वसनीय समझें तो युद्ध में सम्मिलित करें, अन्यथा परस्पर का यह संदेह किसी भी समय अनर्थ कर सकता है।"

"तुम्हारा कहना ठीक है दरीमुख!" सुग्रीव से पहले राम बोले, "परस्पर का संदेह अनर्थ कर सकता है; अतः सम्राट से निवेदन है कि वे अपने संदेह का शमन करें और यूथपति दरीमुख के वचन को एक वीर का वचन मानकर उसका विश्वास करें..." किन्तु, राम का स्वर कुछ कठोर हो गया, "यह भी स्पष्ट रूप से समझ लिया जाए कि विश्वासघाती को कभी क्षमा नहीं किया जाएगा।" सुग्रीव ने सहमति में सिर हिला दिया।

राम का स्वर पुनः सहज हो गया, "वस्तुतः हमें बात यहीं से आरम्भ करनी चाहिए कि अब तक वानर राक्षसों से पराजित क्यों होते रहे हैं-क्या इसलिए कि उनमें वीरता अथवा शौर्य की कमी थी?"

"नहीं।" सबने एक स्वर में कहा।

"क्या उनके पास जनबल नहीं था?''

"नहीं।"

"क्या वे अपनी विरोधी जनसंख्या के मध्य लड़ रहे थे?''

"नहीं।"

"क्या युद्ध-क्षेत्र की प्रकृति और भूगोल उनके विरुद्ध था?''

"नहीं।"

"तो फिर क्या कारण था?" राम बोले, "वस्तुतः युद्ध तो जन-बल से ही जीते जाते हैं; किन्तु कुछ अन्य उपकरण भी होते हैं, जिनसे जय-पराजय का निर्णय होता है। उनमें से एक है-शस्त्र-बल; शस्त्रों की जानकारी, शस्त्र-परिचालन का कौशल। उसके लिए आवश्यक है शस्त्र- उद्योग।...युद्ध एक विद्या है; अतः व्यूहों की योजना भी अत्यन्त महत्वपूर्ण पक्ष है। सैनिक नेतृत्व की क्षमता भी युद्धों की जय-पराजय का निर्णय करती है। इसके साथ आवश्यक है-खाद्य सामग्री तथा यातायात के साधन।" राम निमिष-भर रुककर बोले, "आपके साधारण सैनिकों के पास कौन-से शस्त्र हैं-दंड तथा गदा। आपके सैनिकों के पास असि, परशु तथा धनुष-बाण तक नहीं है-जबकि राक्षसों के पास इन साधारण शस्त्रास्त्रों के साथ-साथ भयंकर दिव्यास्त्र भी हैं। उनके पास अश्व तथा रथ हैं।"

"तो क्या, हम इनके बिना लड़ ही नहीं सकते?" सुग्रीव के मुख से अनायास निकला।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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