बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान राम कथा - अभियाननरेन्द्र कोहली
|
5 पाठकों को प्रिय 34 पाठक हैं |
राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान
ये सैनिक जो उन्हें घेर रहे थे, कदाचित् अशोक-वाटिका के रक्षक थे। वे उन्हें घेर तो रहे थे पर लगता था कि पास आने से घबरा भी रहे थे...या सम्भव है कि इन्होंने और सहायता मंगवाई हो और उसके आने की प्रतीक्षा कर रहे हों...पर ये लोग संख्या में बहुत अधिक थे। इतने लोगों को निहत्थे व्यक्ति को पकड़ने के लिए यदि सैनिक कुमुक की आवश्यकता पड़े, तो इन लोगों को बहुत वीर नहीं समझा जा सकता। हनुमान की इच्छा हुई कि जोर की एक किलकारी मारें और इन लोगों पर झपट पड़े। ये डरे हुए तो हैं ही; उन्हें और भी डरा दें...
सहसा उनके मन में कौंधा कि वे खुले स्थान में खड़े हैं और चारों ओर से घिरे हुए हैं। शत्रुओं को भयभीत करने की योजना बनाने के लिए यह गलत स्थान और रीति है।
वे झपटते हुए-से तत्काल उसी अशोक वृक्ष पर चढ़ गए, थोड़ी देर पहले जिसकी वे शाखा तोड़ रहे थे...इस रूप में तो वह 'अशोक' हो ही सकता था। यहां वे शाखाओं के बीच सुरक्षित भी रहेंगे, और ऊपर से यह भी देख सकेंगे कि उनके आसपास कितने और कैसे लोग हैं। फिर पूरी तरह उजाला होने से पहले ही निकल जाएं, तो अच्छा है...
वृक्ष पर चढ़ते हुए उन्होंने देखा, उसी वृक्ष के तने से लगे, छिपे कुछ लोग छिटककर इधर-उधर भाग गए थे। निश्चित रूप से उन लोगों ने हनुमान को घेर रखा था; किन्तु, जाने क्यों वे लोग न तो उन पर प्रहार कर रहे थे, और न ही उन्हें बन्दी करने का प्रयत्न कर रहे थे...
तभी उन्होंने एक और व्यक्ति को अपनी ओर आते देखा। वह बहुत वेग से चलकर, उन्हीं की ओर आ रहा था, और अनेक सशस्त्र सैनिक उसे घेरकर चल रहे थे। वह आकर उस वृक्ष से कुछ दूर ही रुक गया : "कौन हो तुम? यहां क्या कर रहे हो?''
तो इस 'प्रश्नवाचक' मनुष्य के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे, ये लोग।-हनुमान ने सोचा-यह प्रश्न तो कोई भी पूछ सकता था, इसके लिए इसीका आना क्यों आवश्यक था?...लंका के लोग, कदाचित् पदों और अधिकारों-दोनों के ही प्रति बहुत सजग हैं। एक जरा-सा प्रश्न पूछने के लिए, इस 'प्रश्नाधिकारी' को सोते से जगाकर लाए होंगे...
किन्तु, उनके विनोद की मुद्रा अधिक देर तक टिक नहीं सकी : वह हनुमान से उनका परिचय पूछ रहा था। बताएं? या न बताएं? यदि बता देते हैं तो रावण और भी अधिक सतर्क और सावधान हो जाएगा। देवी वैदेही के लिए परिस्थितियां और भी जटिल और कठोर हो सकती हैं। लंका की सुरक्षा-व्यवस्था को और भी सशक्त बनाया जा सकता है...और यदि वे अपने विषय में नहीं बताते, तो वे लोग उन्हें एक साधारण वानर-युवक मानकर, न तो उससे भयभीत होंगे और न ही उचित व्यवहार करेंगे।...हनुमान सर्वथा अकेले थे और शत्रुओं की नगरी में घिरे हुए थे। ऐसे में यदि युद्ध हो तो शत्रुओं को भयभीत करना हनुमान के लिए लाभकारी होगा। उसके लिए उन्हें आत्मपरिचय देना होगा...
"कौन हो तुम?"उस अधिकारी ने पुनः पूछा, "यहां क्या कर रहे हो? और यहां तुम पहुंचे कैसे?''
"तीन में से कितने प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है?" हनुमान ने किलकारी मारी।
"क्या अभिप्राय है तुम्हारा?" वह व्यक्ति उपेक्षा से कुद्ध हो उठा, "सम्राट की वाटिका में अनधिकृत प्रवेश किया, वृक्षों का ध्वंस किया, अब वृक्ष पर चढ़ा पूछता है, कितने प्रश्नों के उत्तर अनिवार्य हैं! अरे, तू पेड़ की शाखा पर बैठा है या किसी परीक्षा-भवन में?''
"कुद्ध क्यों होते हो प्रश्नाधिकारी!" हनुमान का मस्तिष्क बड़ी क्षिप्रता से अपने निकलने का कोई मार्ग खोज रहा था, "यदि तुम्हें मेरा यहां आना अच्छा नहीं लगा तो मैं चला जाता हूं।" हनुमान ने उसकी प्रतिक्रिया जानने के लिए, वृक्ष से नीचे उतरने का-सा अभिनय किया।
"जाता कहां है तू!" वह अधिकारी चिल्लाया, "पहले बता कि तू कौन है और तूने सम्राट की वाटिका में अनधिकृत प्रवेश क्यों किया? बताता क्यों नहीं तू?''
तो इसका अर्थ यह हुआ कि ये लोग हनुमान को यूं ही जाने नहीं देंगे। पहले तो उनका परिचय जानने का प्रयत्न करेंगे; परिचय न भी मालूम हुआ तो कदाचित् बंदी तो कर लेंगे। इस सर्वथा संरक्षित स्थान में किसी का भी प्रवेश कदाचित् सामान्य बात नहीं मानी जाएगी।...वे इसका कोई-न-कोई गंभीर अर्थ ढूंढ़ने का प्रयत्न अवश्य करेंगे...
''धैर्य रखकर, एक-एक कर प्रश्न पूछे, तो तुझे उत्तर भी दूं।'' वे बोले, ''बाणों की झड़ी के समान प्रश्न पूछेगा तो व्यक्ति उनसे आहत होगा, या उनके उत्तर देगा?''
''तू कौन है?'' अधिकारी ने किसी प्रकार स्वयं को संयत किया।
|