बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
"मैं विवश, अक्षम संन्यासी उनके विरुद्ध कुछ नहीं कर सका। अपने शिष्यों के भाग्य पर दुखपूर्वक विचार करता हुआ दिन व्यतीत करता रहा। सहसा एक दिन उन ब्रह्मचारियों में से एक मेरे पास आया। उसने मुझे बताया कि यह किसी प्रकार राक्षसों के चंगुल से छूट भागा है। शेष ब्रह्मचारी पशुओं के समान शारीरिक और मानसिक क्लेश तथा यातना भुगतते हुए भूखे-प्यासे नौकाएं चलाने का कार्य करते हैं। जिस दिन उनमें से कोई कार्य करने में अक्षम हो जाता है, उस दिन उसे मारकर राक्षस खा जाते हैं। आधे से अधिक खाए जा चुके हैं, और शेष खाए जाने की प्रतीक्षा में हैं। यह सूचना पाकर मैं कितना पीड़ित हुआ हूंगा, आप कल्पना कर सकते हैं।...तभी वे राक्षस जल-सेनाधिकारी फिर से आ धमके। मेरे आश्रम को जन-शून्य पाकर वे बहुत क्रुद्ध हुए। उन्होंने मुझे विशेष शारीरिक पीड़ा तो नहीं दी, किंतु यह आदेश दे गए हैं कि मैं ग्राम-ग्राम घूमकर, अपने आश्रम के लिए विद्यार्थी इकट्ठे करूं। वे लोग अगली बार आकर उन विद्यार्थियों को भी अपनी नौकाओं के लिए ले जाएंगे।
"उस गुरु के मन की स्थिति की कल्पना करो, राम, जो राक्षसों के भय से अपने आश्रम को बलि-पशुओं का बाड़ा बनाने को बाध्य हो। वह विद्यार्थियों का पालन-पोषण इसलिए करे कि राक्षस आएं और उसके प्राणों से भी प्रिय विद्यार्थियों को पशुओं के समान हांककर ले जाएं। उन्हंा मारें, पीटें और अन्त में उन्हें चीर-फाड़कर खा जाएं।
"मैं विद्यार्थी इकट्ठे करने के बहाने से भागकर तुम्हारे पास आया हूं राम! अब मुझे बताओ, मैं क्या करूं।" मारीच मौन हो गया।
"राक्षसों के अत्याचारों की विभिन्न कथाएं हमें सुनने को मिल रही हैं, और जितना ही लंका की दिशा में बढ़ते जाएं, उतनी ही मात्रा में उनके अत्याचार भी बढ़ते जाते हैं।" राम बोले, "हम लोगों ने प्रत्येक अत्याचार के प्रतिरोध का संकल्प किया है। इस अत्याचार का विरोध भी किया जाएगा, इसका मैं आपको वचन देता हूं। किंतु कब और कैसे, इस पर हमें मिलकर विचार करना होगा।" मुखर आकर उन लोगों के पास खड़ा हो गया। उसकी आंखें मारीच के आसन पर पड़ गयीं। सीता की दृष्टि, मुखर के इस प्रकार देखने से प्रोत्साहित होकर, फिर उस मृग-चर्म पर रुक गयी। उन दोनों के इस प्रकार देखने से लक्ष्मण को भी बल मिला। उनका स्वर आवेश भरा था, "आर्य संन्यासी। आपने जो कुछ बताया, वह अत्यंत कष्टप्रद है। आपकी बात सुनकर अपने आक्रोश में कोई भी क्षत्रिय, शस्त्र उठाकर राक्षसों से युद्ध करने के लिए आपके साथ चल पड़ सकता है। किंतु मेरी एक जिज्ञासा है..."
"क्या?" मारीच ने सशंक दृष्टि से लक्ष्मण को देखा।
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