बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
"इस बकवास का परिणाम जानती हो? रावण का रोष उभर रहा था।
"तुम अपने कृत्य का परिणाम जानते हो?" सीता तीखे स्वर में बोलीं, "तुमने सारी लंका के लिए मृत्यु का प्रबंध कर दिया है। तुम्हारी सेना, सेनापतियों तथा संबंधियों के सिर पशु तक भी पैरों से ठुकराएंगे।"
"लंका की सेना जनस्थान की सेना नहीं है, कि राम उसे अपने तापस साथियों की सहायता से नष्ट कर दे। तुम्हारा पति-वह राज्य-निष्कासित अपने ही परिवार द्वारा प्रताड़ित, निर्धन, पदाति तापस यदि यहां आने का साहस करेगा तो लंका का कोई भी प्रहरी उसकी बोटियां कर पशुओं को खिला, देगा। तुम लंका की शक्ति से परिचित नहीं हो।"
"जनस्थान की सेना ने राम से युद्ध करने का साहस तो किया था।" सीता तड़पकर बोली, "लंका की सेना क्या लड़ेगी, जिसका सम्राट् पत्नी का अपहरण करने से पहले, पति के साथ द्वंद्व-युद्ध का भी साहस नहीं कर सका। तुम जैसे नीच और कायर व्यक्ति को मारना राम के गौरव के अनुकूल नहीं है, किंतु तुमने याचना की है तो तुम्हें मृत्यु अवश्य मिलेगी।"
"तुम निश्चय कर चुकी हो?"
"हां! "
"स्वेच्छा से मेरा वरण नहीं करोगी?"
"न स्वेच्छा से, न अनिच्छा से।"
"ठीक है!" रावण का क्रोध छलका, "अंतिम अवसर दे रहा हूं। तुम्हें एक वर्ष की अवधि दी जाती है। इस अवधि में जब मेरे वरण की इच्छा हो, मुझे बुला लेना, अन्यथा एक वर्ष पश्चात् तुम्हारी हत्या कर दी जाएगी। अपने जीवन की अवधि अब स्वयं निश्चित कर लो।"
रावण ने संकेत किया। अनेक सशस्त्र रक्षिकाएं कक्ष में आ गयीं।
"इसे ले जाकर अशोक वाटिका में बंदी कर दो। मेरी अनुमति के अभाव में इससे कोई नहीं मिल सकेगा-सम्राज्ञी भी नहीं। जब यह मुझे बुलाने की प्रार्थना करे, मुझे सूचना दीं जाए।...ले जाओ! और सावधान! किसी भी प्रकार का कोई शस्त्र इसके हाथ न लगे।"
शूर्पणखा की व्याकुलता किसी भी प्रकार शांत नहीं हो रही थी।...उसने क्या चाहा था और घटनाओं ने क्या मोड़ ले लिया। वह गयी थी राम और लक्ष्मण, दोनों को प्राप्त करने, और रावण को सीता मिल गयी। विद्युज्जिह से उसे पृथक् करने वाले को सीता दिलाने में वह स्वयं माध्यम बन गयी...सीता को लाने के पश्चात शूर्पणखा ने रावण को देखा था-क्या कहीं तनिक-सा भी आभास इस बात का था कि सम्राट् अपनी बहन के अपमान के प्रतिशोधस्वरूप उस स्त्री का हरण करके लाए हैं?...लगता था, सम्राट् जैसे किसी स्वप्न-लोक में जी रहे हैं। सीता की चर्चा करते ही उनकी आंखों की चमक बढ़ जाती है, और फिर जैसे वे किसी ताप में जलने लगते हैं...यदि यही स्थिति रही, तो सीता रावण के प्राणों का नियंत्रण करने लगेगी। उसकी इच्छा लंका में सर्वोपरि हो जाएगी। सीता चाहेगी तो रावण शूर्पणखा का वध वैसे ही कर देगा, जैसे उसने विद्युज्जिह का वध किया था...शूर्पणखा का मन कांप गया...कैसा भयंकर काम कर बैठी है वह! राम को पाने की लालसा में वह अपनी सबसे बड़ी शक्ति को अपने शत्रु के हाथों में सौंप बैठी है।...यह सब न भी हुआ, तो भी सीता जैसी अलौकिक सुंदरी तो रावण के हाथ लग ही गयी...शूर्पणखा जब-जब यह सोचती है, उसका मन तड़प-तड़प जाता है...जिस रावण के कारण वह जीवन-भर जलती रही, वही रावण उसके कारण सुख पाए, वह भी ऐसा सुख...शूर्पणखा को लगा, जैसे वह आग के बीच खड़ी जल रही है...भीतर-बाहर आग-ही-आग...यह अग्नि-दाह! द्वार पर किसी ने हल्की-सी थाप दी।
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