बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
''मैंने सब कुछ सुन लिया, दूषण!'' शूर्पणखा शुष्क स्वर में बोली, ''मैंने पहली बार जाना कि सैनिकों के प्राण तुम्हारे लिये इतने महत्त्वपूर्ण हैं। उनके प्राण बचाने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, किंतु मेरी आज्ञा वही है। तीव्रगामी रथों को तत्काल लंका भेजा जाए। उनमें जो व्यक्ति और सामान मैंने कहा है, मंगाया जाए। इसके पश्चात अपनी इच्छानुसार तुम उन रथों को जहां चाहो, भेज देना और जो इच्छा हो मंगवाना, या लंका से अन्य तीव्रगामी रथ प्राप्त कर, उनमें अपनी आकांक्ष्य वस्तुएं मंगवा लो-किंतु मेरे काम में विलंब न हो।'' शूर्पणखा के दांत भिंच गए, ''मेरी दी हुई समय-सीमा का अतिक्रमण न हो। जाओ!''
दूषण भौंचक-सा बैठा हुआ शूर्पणखा को देखता रहा, किंतु उसकी भंगिमा देख, कुछ और कहने का साहस उसे नहीं हुआ। उठा और अभिवादन कर, चुपचाप चला गया।
शूर्पणखा पुनः अपनी उलझनों में लौट आयी। अगले दिन की संध्या तक...न सही संध्या...रात्रि तक यदि लंका से श्रृंगार-कर्मी कलाकार और प्रसाधन का सामान आ जाए, तो वह परसों प्रातः से ही श्रृंगार करवाना आरंभ कर देगी। अपराह तक वह अपनी इच्छानुसार सज्जित होकर राम से मिलने जा सकेगी। लंका के श्रृंगार-कर्मियों की सहायता के पश्चात् उसे राम के सम्मुख जाने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। और राम कैसा भी गर्विष्ठ पुरुष क्यों न हो, शूर्पणखा की अवहेलना वह कर नहीं पाएगा।
किंतु अभी तो दो दिन और हैं। इन दो दिनों में उसका क्या होगा? ये दो दिन वह बिना राम के कैसे बिताएगी? अभी तो पिछली
सारी रात उसने बार-बार ऐंठते हुए अपने शरीर से लड़ते-लड़ते बिताई है। रात को भोजन भी नहीं किया...वह दो दिनों की लम्बी अवधि तक बिना राम के नहीं रह सकती...उसे राम को देखने जाना ही होगा, चाहे वह स्वयं को राम के सम्मुख प्रकट न करे...''द्वार पर कौन है?'' रक्षिका भीतर आयी, ''स्वामिनी!''
''वज्रा को भेज। उससे कह, कोई दक्ष केश-सज्जक उसकी दृष्टि में हो तो उसे भी बुला ले।''
वज्रा को आने में अधिक समय नहीं लगा। वह अपनी सहयोगिनियों के साथ आयी थी। उसने विभिन्न तापमानों के, विभिन्न सुगंधियों से पूरित जलों से शूर्पणखा को स्नान करवाया। शरीर पर अनेक प्रकर के द्रव्यों का लेप कर, उन्हें घर्षण से शरीर में खपाने का प्रयत्न किया; और शूर्पणखा जब उसके प्रयत्नों से संतुष्ट दिखी तो वज्रा धीरे से बोली, ''स्वामिनी असंतुष्ट न हों तो निवेदन करूं कि शारीरिक सौंदर्य को बनाए रखने के लिए पौष्टिक भोजन भी अनिवार्य होता है। आपने कल रात भी भोजन नहीं किया और प्रातः से भी...''
शूर्पणखा प्रसन्नतापूर्वक हंसी, ''बहुत चतुर हो, वज्रा! मणि कार्य-कुशल अवश्य थी, किंतु चतुर नर्ही थी।...अच्छा, किसी को भेजकर खाने के लिए कुछ मंगवा ले। क्या मंगवाएगी? फलों का मद्य और थोड़ा-सा भुना हुआ मांस मंगवा ले।''
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