बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
वज्रा के सिर का बोझ हट गया, ''स्वामिनी की अनुकंपा है कि दासी की प्रार्थना स्वीकार की।''
शूर्पणखा का श्रृंगार चल रहा था और बीच-बीच में दासियां उसके सम्मुख मांस के छोटे-छोटे खंड और मद्यपात्र प्रस्तुत कर रही थीं कि रक्षिका ने खर के आने का समाचार दिया।
दासियां संभ्रम से उठ खड़ी हुई, किंतु शूर्पणखा अपने स्थान से तनिक भी नहीं हिली। उसने दासियों को भी बैठने का संकेत किया, ''तुम लोग अपना काम करती रहो।'' वह रक्षिका की ओर मुड़ी, ''भेज दो।'' खर आया तो उसने यह अद्भुत दृश्य देखा-शूर्पणखा ने न पूरे वस्त्र पहन रखे थे, न केश-विन्यास ही पूरा हुआ था, न प्रसाधन। अनेक दासियां अपने-अपने भाग का कार्य कर रही थी और शूर्पणखा बीच-बीच में प्रस्तुत खाद्य और पेय स्वीकार करती हुई श्रृंगार करवा रही थी।
''कोई विशेष आयोजन है?'' खर मुस्कराया।
''शूर्पणखा का प्रत्येक आयोजन विशेष ही होता है।'' शूर्पणखा पूर्णतः सहज थी, ''आने का प्रयोजन कहो।''
खर को जैसे शूर्पणखा के शब्दों ने झंझोड़कर सजग किया। बोला, ''अभी-अभी सेनापति दूषण ने सूचना दी है कि तुम जनस्थान के सर्वश्रेष्ठ रथों को लंका भेजकर अपने लिए कुछ मंगवाना चाहती हो।''
''हां। इसमें कुछ असाधारण है क्या? क्या मैं अपने अधिकार का अतिक्रमण कर रही हूं?''
''नहीं, शूर्पणखा!'' खर शांत स्वर में बोला, ''हमारे सामने कुछ असाधारण सैनिक परिस्थितियां आ गयी हैं। हम केवल यह निवेदन करना चाहते हैं कि तुम दो-तीन दिन का समय हमें दो।''
''स्थितियां मेरे सामने भी बड़ी असाधारण हैं।'' शूर्पणखा तिक्त मुस्कान के साथ बोली, ''मैं एक क्षण भी नहीं खो सकती।'' और सहसा उसका स्वर रुक्ष और रुष्ट हो गया, ''मुझे बताया जाए कि अब तक मेरे आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ? अब तक रथों को लंका क्यों नहीं भेजा गया? क्या बुद्धिमान खर को भी स्मरण कराना होगा कि शूर्पणखा की आज्ञा का अर्थ क्या होता है?''
''नहीं, बहन। अवज्ञा की बात नहीं है।'' खर शूर्पणखा के स्वर में निहित संकेतों से सिहर उठा, ''तुम कदाचित् इस तथ्य से अवगत नहीं हो कि जटायु ने इस बार एक भयंकर व्यक्ति को अपने पास टिका लिया है। आरंभ में हमने उसे कोई महत्व नहीं दिया, किंतु उसका अस्तित्व क्रमशः हमारे लिए संकटपूर्ण होता जा रहा है। पंचवटी और जनस्थान के ढेले और कंकड़ भी सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमारे लिए अपने सैनिकों का जीवन बहुत मूल्यवान हो गया है; अन्यथा तुम्हारे मुख से शब्द उच्चरित होते ही उसका पालन आरंभ हो जाता है-तुम जानती ही हो।''
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