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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

सौमित्र तथा मुखर की टोली वन में गोदावरी के तट पर बढ़ती जा रही थी। कदाचित् वे लोग किसी स्थल-विशेष की ओर जा रहे थे। जहां वे रुके, वहां गोदावरी में शिलाएं नहीं थीं और जल कुछ गहरा था। जो शिलाएं थीं भी, वे तट पर थी और प्राकृतिक प्राचीर का कार्य कर रही थीं। ...शूर्पणखा ने कभी इस स्थान की ओर ध्यान नहीं दिया था। स्नान के लिए यह घाट किसी सरोवर के समान सुविधाजनक था। ...शूर्पणखा ने आज तक यही समझा था कि उसी ने गोदावरी को गुप्त रूप से पार करने के लिए सुविधाजनक स्थान खोज निकाला है...।

सौमित्र ने तट पर पड़ी एक नाव सीधी की।...तो जल-परिवहन का ज्ञान इन्हें भी है।-शूर्पणखा ने सोचा...। नाव को उठाकर उन्होंने जल में उतारा और चप्पू लेकर उसमें जा बैठे। सौमित्र उन्हें काफी देर तक कुछ समझाता रहा, कदाचित् नौका-परिचालन के ही विषय में। कभी वह चप्पू की ओर संकेत करता, कभी नाव और कभी जल की ओर।...अंत में वह स्वयं चप्पू लेकर बैठ गया और नाव चल पडी।

शूर्पणखा नाव को दूर तक जाते हुए देखती रही।...अब? सौमित्र तो जाने कहां चला गया था, और जाने कब लौटेगा। तब तक शूर्पणखा क्या करेगी?...सहसा उसे स्मरण आया, वह वहां राम के लिए आयी थी, सौमित्र के लिए नहीं। किंतु कैसी विचित्र बात थी कि जब तक सौमित्र सामने रहा-शूर्पणखा को राम की याद तक नहीं आयी। वह पिछले तीन दिनों से राम से इतनी अभिभूत रही है कि उसे संसार की किसी अन्य वस्तु की चेतना तक नहीं थी-और सौमित्र ने आते ही राम को ऐसे भुला दिया। तो वह दोनों में से किसका वरण करेगी?

सौमित्र का रंग-रूप, बल-पौरुष, तेजस्विता-उग्रता, चंचलता...वह तरुणाई, जिसे देखते ही शूर्पणखा का मन कटकटाकर टूट पड़ना चाहता है। और राम की आंखें, राम की मोहक मुस्कान...सौमित्र में तरुणाई थी, तो राम में गंभीरता। स्थैर्य।...शूर्पणखा के लिए चुनाव बहुत कठिन था...उन दोनों में से एक को चुनना हो, तो शूर्पणखा किसे चुने?...एक को ही चुनना हो, तो कदाचित् राम को ही चुनेगी किंतु चुनना अनिवार्य क्यों है? शूर्पणखा ने तो कभी एक-पतिव्रत जैसी कोई प्रतिज्ञा नहीं की...उसे तो दोनों की आवश्यकता है...दोनों की...।

उसका मन लम्बे समय तक उल्लसित रहा-यदि वह आज प्रातः न आयी होती, तो सौमित्र को न देख पाती। वह तो एक पर ही मुग्ध थी-क्या जानती थी कि मुग्ध होने के लिए और पुरुष भी हैं...।

सहसा उसे लगा, उसका उल्लास छीज रहा है। सौमित्र को गए बहुत समय हो गया था, और राम आश्रम से बाहर नहीं आया था। पता नहीं वह बाहर आएगा भी या नहीं, और शूर्पणखा प्रतीक्षा में यहां टंगी बैठी रहेगी-कब तक बैठी रहेगी?

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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