बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
अंधकार घिर आने पर जब शूर्पणखा अपने प्रासाद में लौटी, तो बहुत हताश थी। प्रातः थोड़ी देर के लिए सौमित्र को देख पाने के सिवाय, उसका दिन-भर निरर्थक गया था और लौटते हुए वह एक के स्थान पर दो-दो पुरुषों के विरह से पीड़ित थी। विरह की यातना के कारण दिन-भर की थकान ने मिलकर, उसे पूरी तरह हताश कर दिया था...आज उसने पहली बार अनुभव किया था, कि अब उसकी वह वय नहीं रही कि वह दिन-भर बिना कुछ खाए-पिए वन के किसी वृक्ष के नीचे, अथवा समुद्र-तट की किसी शिला पर बैठी, अपने प्रेमी की प्रतीक्षा करती रहे। अब उसका शरीर हारने लगा था। वज्रा ने उसे देखा तो स्थिति समझ गयी। उसने अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं समझी। अपनी सहकर्मिणियों को संकेत किया। शूर्पणखा को संभाल उन्होंने पलंग पर लिटा दिया। एक बड़े पात्र में ठंडा जल ले, उसके पैर उसमें डुबो दिये। सिर को ऊंचा कर, तकिये के नीचे पात्र रख, केशों को भी जल में भिगो दिया। माथे पर औषधियों का लेप किया और हथेलियों की मालिश की। शूर्पणखा का मन कुछ शांत हुआ, तो वज्रा ने उसे एक पात्र में दूध दिया, उसे वज्रा के उपचार से इतना लाभ हो रहा था कि उसने दूध का तिरस्कार नहीं किया। दूध पीकर, शरीर में कुछ बल आया तो उसने पूछा, ''लंका के श्रृंगार-वैद्यों के आने का कोई समाचार?''
''नहीं स्वामिनी! अभी तक कोई समाचार...नहीं है।''
शूर्पणखा ने मुंह फेर लिया। उसे लगा-उसकी आंखों की कोरों से अजाने ही अश्रु बहते जा रहे हैं।
''क्या बात है, स्वामिनी?''
शूर्पणखा ने उसे कुछ इस भाव से देखा जैसे वह या तो उसकी बात समझ ही नहीं रही, या उसका उत्तर देना अनावश्यक है।
''स्वामिनी बहुत परेशान हैं?''
''मैं इस साम्राज्य में आग लगा दूंगी।'' शूर्पणखा ने रोष और निराशा में अपने दांतों से होंठ काट लिये।
''दुखी न हों।'' वज्रा ने स्नेह से उसके माथे पर हाथ फेरा, ''यह आपकी भूख तथा थकान के कारण है। आप थोड़ा भोजन अवश्य कर लें।''
शूर्पणखा कुछ नहीं बोली। वज्रा ने मौन को सहमति मान, एक परिचारिका को भोजन लाने के लिए भेज दिया। वह स्वयं पास बैठी सांत्वना देती रही और बीच-बीच में उसका सिर चांपती और केश सहलाती रही; किंतु वह उसके अश्रुओं को रोक नहीं सकी।
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