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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

भोजन करा, औषधि की सहायता से वज्रा ने शूर्पणखा को सुला दिया। उसकी निद्रा के प्रति पूर्णतः आश्वस्त हो, वज्रा आज दिन-भर की घटनाओं की सूचना के लिए, खर के प्रासाद की ओर चल पड़ी।

प्रातः नींद टूटते ही शूर्पणखा ने परिचारिका से पहला प्रश्न किया, ''लंका से श्रृंगार-वैद्य आए?''

''स्वामिनी अनुमति दें तो वज्रा को बुला लाऊं?'' परिचारिका बोली, ''उसी को सूचना होगी।'' परिचारिका चली गयी। शूर्पणखा के मन में पुनः पीड़ा और रोष का उदय हुआ...यदि श्रृंगार-वैद्य नहीं भी आए, तो शूर्पणखा अब और नहीं रुक सकती।

वज्रा आयी, ''स्वामिनी! लंका से श्रृंगार-वैद्य और श्रृंगार-कर्मी-कलाकार आधी रात को आ पहुंचे हैं। प्रसाधनों तथा रत्नाभूषणों से भरा एक पूरा रथ आया है।''

शूर्पणखा का मन कुछ शांत हुआ। उसे अनाकर्षक रूप में राम और सौमित्र के सम्मुख नहीं जाना होगा और अब प्रतीक्षा कीं भी आवश्यकता नहीं है, ''उन्हें बुला ला।'' वह उठकर बैठ गयी।

''स्वामिनी, थोड़ा धैर्य रखें।'' वज्रा बहुत कोमल ढंग से मुस्कराई, ''मुझे अपयश न दिलाएं। लंका के श्रृंगार-कर्मियों के सम्मुख जाने से पूर्व अपनी कला दिखाने का मुझे भी अवसर दें।''

बज्रा ने शूर्पणखा के रात के वस्त्र परिवर्तित करवाए। गुनगुने जल से शरीर को स्वच्छ किया और पिछले दिन के प्रसाधान के सारे अवशेष मिटा दिए। सारे आभूषण उतार लिए और वेणी को खोल, केशों को गीला कर उन्हें एकदम सीधा कर दिया।

तब लंका के श्रृंगार-कर्मी आए। उनके तीन दल थे। पहला दल श्रृंगार-वैद्यों का था। उन्होंने शूर्पणखा के शरीर का निरीक्षण किया। उसके चेहरे का वर्ण परखा, आंखों के कोए. पलकों की लालिमा देखी। नाड़ी का परीक्षण किया। जिह्वा का रंग देखा। नखों की लालिमा देखी, शरीर के विभिन्न अंगों के मांस की सुडौलता देखी और त्वचा की मसृणता का गहन परीक्षण किया। सारे निरीक्षण-परीक्षण के पश्चात उन्होंने परस्पर विचार-विमर्श किया और तब अनेक औषधियों को आवश्यक घोषित किया। वैद्यों के सहायकों ने तत्काल वे औषधियां प्रस्तुत कीं और उसी क्षण उनका शूर्पणखा को सेवन कराया गया।

दूसरा दल श्रृंगार-कलाकारों का था। उन्होंने शूर्पणखा के रंग, रूप आकार इत्यादि को देख, उसके अनुरूप केश-सज्जा, वस्त्रों तथा आभूषणों का प्रस्ताव किया। तीसरा दल प्रसाधन-कर्मियों का था। उन्होंने वैद्यों ओर कलाकारों से संपूर्ण स्थिति समझ, उनके निर्देशों के अनुसार कार्य आरंभ किया। उन्होंने शूर्पणखा को आधी घड़ी तक शुद्ध वाष्प-स्नान कराया। उसके पश्चात विभिन्न सुगंधियों से पूरित जल से स्नान कराया। प्रसाधन औषधियों के मर्दन के पश्चात् चंदन इत्यादि का लेप हुआ। और चूर्णों इत्यादि के प्रयोग के पश्चात् उनका वास्तविक कार्य आरंभ हुआ। पैर के नखों से लेकर, सिर के केशों तक प्रत्येक अंग का, रंग तथा सुगंध से श्रृंगार हुआ। चेहरे के श्रृंगार का विशेष ध्यान रखा गया। अधरों का आकार, भौहों, पलकों, बरौनियों की बनावट तथा कपोलों की चिकनाहट पर प्रसाधन-कर्मियों ने सबसे अधिक समय लगाया। केश-विन्यास से पहले केशों को धो-पोंछ-सुखाकर, कलाकारों के आयोजन के अनुसार वेणी का श्रृंगार किया गया और उसे पुष्पों से सुशोभित किया गया। तब वस्त्रों और आभूषणों की बारी आयी। और जब तैयार हो, शूर्पणखा दर्पण के सम्मुख खड़ी हुई, तो वह स्वयं ही अपने-आपको पहचान नहीं पायी। उसका वय किसी भी प्रकार तीस वर्षों से अधिक का नहीं लग रहा था, और ऐसा सौंदर्य सारी लंका में ढूंढ़ने पर भी नहीं मिल सकता था।

उसने श्रृंगार-कर्मियों को प्रशंसा की दृष्टि से देखा, ''तुम लोग अपना कार्य दक्षता से कर लेते हो। ...अच्छा, अब विश्राम करो।'' वह वज्रा की ओर मुड़ी, ''इनके लिए अच्छी व्यवस्था कर देना। देखना, इन्हें कोई कष्ट न हो। और सारथी को रथ लाने के लिए कह दे।''

एक-एक कर, सब लोग बाहर चले गए। शूर्पणखा कक्ष में अकेली रह गयी। दर्पण के सामने खड़ी, बड़ी देर तक वह स्वयं को निहारती रही। यह वय, यह रूप और यह आकर्षण, उसे एक बार फिर से मिल जाता तो संसार का ऐसा कौन-सा पुरुष था, जिसका मन जीतने में उसे तनिक भी कठिनाई होती-चाहे वह पुरुष राम ही क्यों न हो...।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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