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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

चार 

 

रथ रुका तो वह कुछ संकुचित हुई। ऐसे वेश में वह प्रासाद के भीतर कैसे जाएगी? दास-दासियों का सामना कैसे करेगी?...किंतु कोई विकल्प नहीं था। जाना तो था ही, उसे देख दासियां हतप्रभ रह गयी, किंतु पूछने का साहस किसी को नहीं हुआ। स्तब्ध खड़ी उसे देखती रहीं।

जाते ही शूर्पणखा पलंग पर गिर पड़ी और निकट आयी परिचारिका की ओर देखे बिना ही बोली, "वज्रा को बुलाने के लिए किसी को भेज दे, तत्काल!...और मदिरा!''

वज्रा ने आने में तनिक भी विलंब नहीं किया, "यह क्या, स्वामिनी?'' 

''एक हिंस्र पशु से मुठभेड हो गयी।'' सूर्पणखा मदिरा पीती रही, ''घाव धोकर कोई औषधि लगा दे और परिधान बदल दे।''

वज्रा के मन के प्रश्न मन में ही रह गए। ...वह पूछना चाह रही थी कि तुमसे भी अधिक हिंस्र कोई पशु इस वन में है, स्वामिनी? और उस हिंस्र पशु के पंजे नहीं थे क्या? वह हाथ में करवाल लेकर आया था?' वह देख रही थी-सारे शरीर पर कहीं नखों के चन्ह नहीं थे। शरीर ऐसे छिला था, जैसे कोई भूमि पर गिरे अथवा शिलाओं पर घिसटे। हां नाक तथा कानों पर खड्ग की नोंक से खींची गयी रेखाएं थीं...

शूर्पणखा मदिरा पीती रही। इन राम तथा सौमित्र से तो वह युवा माली ही अच्छा था। न सही उनकी समता का, परंतु बुरा भी क्या था। सुंदर था, पुष्ट था, और सबसे बड़ी बात-शूर्पणखा के लिए वह व्यक्ति नहीं, वस्तु था। वह उसका जो चाहती, करती; तब भी कशा हाथ में रखती थी...इनके पास गयी तो उल्टे यह उपहार ले आयी...

उनका इतना साहस ही कैसे हुआ कि वे शूर्पणखा के प्रस्तावों को ठुकराए...स्पष्टतः यह सब खर की अयोग्यता और असावधानी के कारण है...खर अपना आतंक बनाये रखता, तो किसका साहस था कि शूर्पणखा के साथ वह ऐसा व्यवहार करता, किंतु प्रश्न यह है कि शूर्पणखा अब क्या करे? खर के पास जाए? मद्यप खर! उससे पचासों प्रश्न पूछेगा। उसने पहले उसे सूचना क्यों नहीं दी? वहां गयी थी तो साथ अंगरक्षक लेकर क्यों नहीं गयी?

इन सारे प्रश्नों का उत्तर देने से क्या अच्छा नहीं है कि वह स्वयं ही उनसे निबट ले? कल अपने अंगरक्षकों की टुकड़ी क्यों न भेज दे? वे लोग वन के किसी एकांत में सौमित्र को घेरकर छलपूर्वक उसकी हत्या कर दें।...शूर्पणखा के मन में पुनः आशा का संचार हुआ-एक बार सौमित्र मारा जाए, तो किसी प्रकार वह सीता की भी हत्या करवा देगी...सीता के लिए उसे दुःख भी होता है। सीता ने उसका क्या बिगाड़ा है? और कैसी सुन्दर है वह! एक बार खर अथवा रावण उसे देख ले तो शूर्पणखा को कुछ कहने अथवा करने की आवश्यकता ही नहीं होगी-वे स्वयं ही राम और सौमित्र का वध कर उसका हरण कर ले जाएंगे। किंतु शूर्पणखा राम का वध नहीं चाहती। वह जीवित राम चाहती है...जीवित। राम का शरीर, राम का मन, राम की शक्ति, राम की धधकती वासना में वह जलना चाहती है...और यदि संभव न हो, तो उसे अपनी वासना में जलाना चाहती है। प्रातः शूर्पणखा ने लंका से आए श्रृंगार-शिल्पियों को न केवल अपने श्रृंगार के लिए बुलाए जाने का निषेध कर दिया, वरन् उन्हें बिना पुरस्कार दिए ही लंका लौट जाने का आदेश भिजवा दिया। अब शूर्पणखा को उनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।...उनकी सहायता से राम उसे नहीं मिल सकता था।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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