बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
रक्षिका को बुलाकर उसने अंगरक्षकों के नायक को अपनी पूरी क्षमता के साथ तत्काल अभियान के लिए प्रस्तुत होने की आज्ञा दी।
और जब वज्रा उसका श्रृंगार करने आयी तो शूर्पणखा से। रत्नाभरणों तथा सुगंधित द्रव्यों को परे हटा दिया, ''युद्ध-वेश सजा, वज्रा! आज अभियान पर जा रही हूं।''
''कोई कटाक्षों से ही मर जाये तो उसे खड्ग से क्यों मारती हैं स्वामिनी?'' वज्रा हंसकर बोली।
''इस बार शिला-वक्ष से पाला पड़ा है, वज्रा! उस पर न कटाक्षों का प्रभाव होता है, न मुस्कानों का। उसे तो खुला और स्पष्ट रति-निमंत्रण भी नहीं रिझा पाया।'' शूर्पणखा का उदास स्वर रोषपूर्ण हो उठा, ''अब उसे मैं खड्ग से ही हस्तगत करूंगी।'' वज्रा ने स्वामिनी को और कुरेदना उचित नहीं समझा। कहना कठिन था कि कब वह भड़क उठे और अपना रोष यही प्रकट करना आरंभ कर दे।
शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर सूर्पणखा अपने अंगरक्षकों के साथ चली। आरंभ में उसका रथ सबके आगे चल रहा था, किंतु जैसे-जैसे गोदावरी का तट निकट आता जा रहा था, शूर्पणखा के मन के आवेग के साथ-साथ उसके रथ का वेग भी कम होता जा रहा था...उसकी कल्पना में हाथ में करवाल लिए क्रुद्ध सौमित्र खड़ा था। उसकी आंखों की उग्रता शूर्पणखा से सही नहीं गयी। यदि वह फिर उसी सौमित्र से युद्ध करने जा रही है, तो उसे क्या उपलब्ध होगा? उसे लगा, उसके मन में कहीं गहरे सौमित्र का भय उसके समुख प्रकट होता जा रहा था...और जब साथ ही राम भी अपना धनुष तानकर खड़े हो गए, तो शूर्पणखा के प्राण भी नहीं बचेंगे...।
गोदावरी के तट पर पहुंचकर उसने अपना रथ एक ओर हटाकर खड़ा कर लिया। ''मैं यहां खड़ी हूं।'' वह नायक से बोली, ''तुम लोग जाओ। सौमित्र तथा सीता का बध करो। राम को जीवित पकड़ने का प्रयत्न करो और सारा आश्रम अग्निसात् कर दो।'' सहसा उसका स्वर अत्यन्त क्रूर हो उठा, ''असफल होकर मत लौटना, अन्यथा तुम मेरी प्रकृति से परिचित हो।''
नायक ने आश्चर्य से शूर्पणखा को देखा-यह वह शूर्पणखा थी, जो प्रत्येक अभियान में, रक्तपात और अग्निदाह में सबसे आगे होती थी, जिसका खड्ग किसी भी अन्य सैनिक के खड्ग से अधिक क्रूर होता था, और जो युद्ध में भयंकर कृत्या के समान नाश की लपट के समान चलती थी। किंतु आज वह एक किनारे खड़ी हो गयी थी...शूर्पणखा राम और लक्ष्मण से भयभीत थी, अथवा अपने हृदय से बाध्य?...
प्रश्न करना नायक के अधिकार में नहीं था। उसने खड्ग उठाकर माथे से लगाया, स्वामिनी की आज्ञा का पालन किया जाएगा।''
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