बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
युद्ध वेश में सज्जित राम अपनी कुटिया के सम्मुख खड़े थे। उन्होंने वक्ष पर कवच धारण कर रखा था और हाथों की हथेलियों में गोह के चमड़े के दस्ताने थे। कटि में खड्ग बंधा था। कंधों पर तूणीर थे और हाथों में धनुष। चेहरे पर चिंता की एक भी रेखा नहीं थी, जैसे जो चिंतन-मनन, सोच-विचार होना था, वह हो चुका, अब केवल कर्म था-संशय-रहित शुद्ध कर्म। खर की सेना आकर राम के आश्रम के सम्मुख खड़ी हो गयी। खर ने गर्वपूर्वक अपनी सेना के विशल विस्तार को देखा और तब आश्चर्य से दूर टीले पर खड़े रथविहीन एकाकी राम को देखा। उसे शूर्पणखा की बात याद आ गयी-राम को जीवित बांधकर शूर्पणखा के लिए ले जाना था...किंतु सीता और सौमित्र कहीं दिख नहीं रहे थे। कहां गये वे? भाग गए क्या? वह वध किसका करेगा और रावण के लिए उपहार स्वरूप किसे भेजेगा? वनवासी और ग्रामीण कहां गए? छिप गए?...और सहसा उसे लगा, अकेले व्यक्ति से-चाहे वह कितना ही वीर क्यों न हो-युद्ध करने के लिए, चौदह सहज सैनिकों को लेकर आना, उसेके लिए कोई गौरव की बात नहीं थी।...किंतु शूर्पणखा ने इतना डरा दिया था कि वह इससे कम तैयारी के साथ आना ही नहीं चाहता था।
राम ने देखा-खर एक ही मोर्चे पर लड़ने की तैयारी कर रहा था, कदाचित् राम के आश्रम को घेरने की योजना उसके मन में नहीं थी। राम ने संकेत दिया-ढूहों के पीछे छिपे जन-सैनिकों ने गुप्त रूप से अपने स्थान बदले। भीखन धर्मभृत्य तथा आनन्द सागर-उनके साथ ढूहों के पीछे अपने सैनिकों के साथ व्यूह बांधकर बैठ गए। मुखर उनकी दाहिनी ओर का क्षेत्र संभाल रहा था और जटायु उनकी बायीं ओर थे। युद्धारंभ की घोषणा खर ने की। उसने अपने आगे के सैनिकों को आगे बढ़ने का संकेत करते हुए आदेश दिया, "राम को घेरकर जीवित पकड़ना है।"
राक्षस आगे बड़े ही थे कि राम ने संकेत किया और भीखन धर्मभृत्य तथा आनन्द सागर के जन-सैनिकों ने बाणों की बौछार आरंभ कर दी। खर को स्थिति समझने में अधिक समय नहीं लगा। निश्चित रूप से राम सर्वथा अकेला नहीं था-किंतु उसके साथियों की न तो संख्या ज्ञात हो सकती थी और न उनकी गतिविधि का पता लग सकता था। राक्षस सैनिक अपनी संख्या के दंभ में अंधाधुंध आगे बढ़ रहे थे और बाणों की पहली ही बौछार में आधे से अधिक खेत रहे थे। जो खेत नहीं रहे थे, वे राम के सैनिकों की पंक्तियों के बीच आ फंसे थे और दोहरी मार झेलकर धराशायी हो रहे थे...।
खर के लिए यह स्थिति अप्रत्याशित भी थी और असह्य भी। उसने अपने सारथी को आगे बढ़ने का संकेत किया। रथ के आगे बढ़ते ही खर ने अपने धनुष से दक्षतापूर्वक भल्ल, नालीक नाराच तथा विकर्णी बाणों की वर्षा आरंभ की।
राम मुस्कराए। निश्चित रूप से खर अच्छा धनुर्धारी था। राम ने भी अपना धनुष संभाला। कानों तक धनुष की प्रत्यंचा खींची और बाण छोड़ दिया। उसके पश्चात् खर के लिए यह देखना कठिन हो गया कि राम कब तूणीर से बाण खीचता है, कब प्रत्यंचा पर रखता है, कब प्रत्यंचा खींचता है और कब बाण छोड़ देता है...ऐसी स्फूर्ति खर ने आज तक किसी धनुर्धारी में नहीं देखी थी। जिस क्षण राम की ओर देखो-राम बाण छोड़ता हुआ ही दिखाई पड़ता था।
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