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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

राम को इस युद्ध में उन्नीस घाव लगे थे; जिनमें कुछ गंभीर भी थे। रक्त भी बहुत बहा था। किंतु न तो वे दुर्बलता का अनुभव कर रहे थे और न उन्होंने कार्य करना ही छोड़ा था। पट्टियां बंधवा, वे बैठे हुए कोई-न-कोई व्यवस्था करते ही रहा रहे थे।-मुखर के कंधे का घाव भी गंभीर था; उसकी पट्टी कर सीता ने उससे कम-से-कम पूरा एक दिन शैया पर पड़े रहने का अनुरोध किया था। 'दीदी' के अनुरोध की रक्षा के लिए वह मान भी गया था, अन्यथा वह अब भी लक्ष्मण के साथ कार्य करने का आग्रह कर रहा था। वृद्ध जटायु के शरीर पर भी तीन घाव आए थे जिनसे वह निढाल हो गए थे। भूलर, शुभबुद्धि, भीका, कृतसंकल्प, धर्मभृत्य, आनन्द सागर-सभी को कोई-न-कोई घाव लगा ही था। युद्ध का चिह्न प्रायः सबने ही अपने शरीर पर सगर्व वहन किया था।

राक्षसों की पराजय तथा खर के वध की सूचना जहां-जहां पहुंचती थी-वहीं से झुंड-के-झुंड लोग राम से मिलने के लिए आ रहे थे। आश्रमों की वाहिनिया पहले ही आयी हुई थी। जैसे-जैसे उन्हें समाचार मिल रहे थे, युद्धोत्तर सहयोग के रूप में वे सामग्री तथा प्रतिनिधि भेजते जा रहे थे। आश्रम में मेल का-सा वातावरण बना हुआ था।

संध्या समय राम की कुटिया के सम्मुख प्रायः सभी प्रमुख लोग एकत्र हुए। प्रभा, सीता तथा उनके साथ कार्य करने वाले स्त्री-पुरुष चिकित्सा-कुटीर छोड़कर नहीं आ सकते थे, अतः वे नहीं आए।

''साधु, राम!'' अगस्त्य बोले, ''मैं तुम्हारा अभिनन्दन करता हूं। तुमने वह कार्य कर दिखाया है, जिसे करने का स्वप्न हम वर्षों से देख रहे थे। मैं यह जानता हूं कि तुम्हें सब लोगों का सहयोग मिला है-मैं किसी का भी श्रेय नहीं छीनना चाहता; पर फिर भी कहता हूं कि यह युद्ध तुमने अकेले ही जीता है।''

उपस्थित लोगों ने हर्ष-ध्वनि की, ''ऋषि ठीक कहते हैं। हम सब मानते हैं कि युद्ध अकेले राम ने जीता है।''

''युद्ध तो जीत लिया, पुत्र! क्षेत्र अत्याचार से मुक्त हुआ, किंतु भविष्य के लिए क्या सोचा है? क्या तुम्हारा लक्ष्य पूरा हो गया?'' राम हंसे, ''यह तो आरंभ है, ऋषिवर! वास्तविक युद्ध तो अभी होना है।''

''राम ठीक कहते हैं।'' जटायु बोले, ''मैं स्वयं यही कहना चाह रहा था-इसे अंतिम युद्ध न समझा जाए। आप लोग-यदि अपना संघर्ष आगे न भी चलाना चाहे, तो भी युद्ध होगा ही। यहां की पराजय की सूचना रावण तक पहुंचेगी। संभव है कि अब तक पहुंच भी गयी हो। इसका प्रतिशोध लेने के लिए रावण स्वयं आएगा। इस बार साम्राज्य की सेना आएगी-लंका से। हमें उस युद्ध के लिए भी तैयारी करनी है, अन्यथा प्रतिशोध की ज्वाला में जलती लंका की सेना इस सारे क्षेत्र को श्मशान बना देगी। उसके प्रतिशोध के लिए तैयारी, हमें बिना एक भी दिन खोए आरंभ कर देनी चाहिए।''

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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