बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
''मैं भी यही सोच रहा था।'' राम गंभीर हो गए, ''यदि साम्राज्य की सेना आएगी, तो न तो एक मोर्चे का युद्ध होगा, न एक दिन का। उसके लिए हमें अधिक सैनिकों की भी आवश्यकता होगी तथा अधिक शस्त्रों की भी। अंतः हमें तुरंत तैयारी आरंभ कर देनी चाहिए। अत्यन्त व्यापक धरातल पर युद्ध-प्रशिक्षण आरंभ होना चाहिए; किंतु साथ-ही-साथ इस मुक्त हुए क्षेत्र की रक्षा की व्यवस्था तथा उसके नव-निर्माण का कार्य आरंभ होना चाहिए। केवल मुक्ति तो किसी काम की नहीं होती। मनुष्य को मुक्ति चाहिए ताकि वह अपने जीवन का समता और न्याय के आधार पर स्वतंत्र रूप से विकास कर सके। निर्माणाविहीन मुक्ति थोड़े ही समय में सड़ने लगती है और उच्छृंखलता एवं अराजकता को जन्म देती है। अतः निर्माण का कार्य भी तुरंत आरंभ होना चाहिए।''
''राम ठीक कहते हैं।'' मुखर बोला, ''जब तक सामान्य जीवन सुविधा तथा सम्मान से पूर्ण नहीं होगा, तब तक सामान्य-जन को यह अनुभूति कैसे होगी कि अब राक्षसों का आतंक समाप्त हो गया है। प्रत्येक ग्राम में प्रशासकीय तथा निर्माण समितियां बन जानी चाहिए। वे समितियां योजनाएं बनायें और उन्हें कार्यान्वित करें। और हम यथासंभव उनके कार्य में सहायता करें।''
''तीन शब्द याद रखो, पुत्र!'' अगस्त्य बोले, ''सुरक्षा, उत्पादन तथा शिक्षा। आवश्यकतानुसार इनका क्रम बदल देना। पर तीनों को समान महत्त्व देना।''
''ठीक कहते हैं गुरुवर!'' लक्ष्मण पहली बार बोले, ''मेरा विचार है, पहले हम सुरक्षा संबंधी नीति और कार्यक्रम पर विचार कर लें। इस समय यहां एक जन-सेना है और प्रायः आश्रमों तथा अनेक ग्रामों के प्रतिनिधि हैं। यह जनवाहिनी यहीं बनी रहे या अपने-अपने स्थान पर लौट जाए? सैनिक स्थिति दृढ़ करने के क्या और कैसी व्यवस्था हो? यदि निकट भविष्य में रावण का आक्रमण हो-जो कि निश्चय ही होगा, हमारी युद्ध-नीति क्या हो?"
"कहो, राम!" अगस्त्य बोले?"
"तात जटायु। आपका क्या विचार है?" राम ने पूछा।
"मैं समझता हूं कि सारे जन-सैनिकों को अनिश्चित काल तक पंचवटी में रोके रखना व्यावहारिक नहीं होगा!" जटायु बोले, "पहली बात तो यह है कि इतने लोगों को अनिश्चित काल तक अपने यहां टिकाए रखने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। दूसरे, यदि उनके आश्रमों तथा ग्रामों से उनके लिए अन्य इत्यादि की व्यवस्था करनी पड़े, "और वे लोग अपने खेतों में अन्न के उत्पादन में भाग भी न ले सकें तो ग्रामौं तथा आश्रमों पर अनावश्यक बोझ पड़ेगा। युद्ध की स्थिति में तो यह उचित हो सकता है किंतु अनिश्चित प्रतीक्षा के लिए नहीं।" वे क्षण-भर रुककर चिंतनशील स्वर में बोले, "और घायल सैनिकों की देख-भाल की दृष्टि से इतने सैनिक इस आश्रम में सुविधापूर्वक नहीं रह सकेंगे। जो गंभीर रूप से आहत हैं और यात्रा के सर्वथा अयोग्य हैं, उन्हें तो यही रहना चाहिए; किंतु जो यात्रा कर सके, उन्हें अपने-अपने आश्रमों में भेज दिया जाए, तो वहां उनकी देखभाल और अच्छी प्रकार से हो सकेगी।"
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