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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

"चार से छह मास, कुछ भी लगे। उससे पहले वर्षा आरंभ हो जाएगी, नदियों में बाढ़ आ जाएगी, मार्ग में कीचड़ हो जाएगा। सैनिक प्रयाण-विशेष रूप से एक साम्राज्य की सेना का प्रयाण वर्षा-ऋतु में नहीं होगा।" भीखन बोला, "हमारी बात और है। हम अपने अस्तित्व और सम्मान लिए लड़ते है। इसलिए लंगोटी "बांधे, नंगे पैर, वर्षा में भीगते हुए, कीचड़-लादों में भी चल पड़ेंगे। पर वे लोग तो साम्राज्य के सैनिक है। रावण और उसके संबंधियों के विलास के लिए अन्य लोगों का शोषण करने हेतु लड़ते हैं। ये तब तक नहीं चलेंगे, जब तक आकाश मेघों से शून्य नहीं हो जाएगा, मार्ग स्पष्ट और स्वच्छ नहीं हो जाएंगे। उनकी मदिरा के भांड डोने के लिए रथों का निर्माण नहीं हो जाएगा।"

भीखन ठीक कहता है।" अगस्त्य बोले, "रावण की सेना किसी भी रूप में वर्षा ऋतु की समाप्ति से पहले नहीं ही चलेगी।"

"तब तो हम बरखा होते ही खेत जोत-बो लेंगे।" कृतसंकल्प ने अपना मत दिया, "युद्ध के समय न हमें अन्न की कमी रहेगी, न पीछे घर पर बच्चों को कठिनाई होगी।"

"तुम कुछ नहीं बोल रहे, धर्मभृत्य!" राम बोले, "हम भी तो कुछ सोचते होगे।"

"ऋषिवर अगस्त्य को देखकर इन्हें अपनी अधूरी लिखी अगस्त्यकथा का स्मरण हो आया है", लक्ष्मण मुस्कराए, "सोच रहे होंगे, इस वर्षाऋतु में यह कार्य संपन्न हो जाना चाहिए।"

"सौमित्र ने ठीक याद दिलाया।" धर्मभृत्य मुस्कराया, "मुझे यही कार्य पूर्ण कर ही लेना चाहिए। ऐसी कुछ बातें, जिनका मुझे ज्ञान नहीं है-गरुदेव से पूछ भी लूंगा।"

"अवश्य! अवश्य!!" अगस्त्य मुसकराए, "मैं स्वयं सुनने को उत्सुक हूं कि तुमने मेरे विषय में क्या लिखा है। कई बार साहित्यकार अपने पात्रों को उनके वास्तविक अस्तित्व से बहुत ऊंचा बना देता है।" 

"मेरे विषय में मी कुछ लिखा है या नहीं?" लोपामुद्रा मुसकराई, "अगृहस्थ संन्यासी हो, कहीं पत्नी का महत्त्व क्षीण मत कर देना।" 

"नही! नहीं!!" धर्मभृत्य कुछ संकुचित हो गया, "मैं किसी दिन आपको सुनाऊंगा।"

अगस्त्य हंसे, "हां, राम। अपने विषय की ओर लौटो।"

"हां। हम लोग सहमत हैं कि रावण यदि मूर्ख नहीं है तो पहले वह लंका की सुरक्षा का प्रबंध करेगा और तब कम-से-कम छप्पन सहस्र सैनिकों की सेना लेकर वह वर्षाऋतु के पश्चात् प्रस्थान करेगा। इसलिए हम जन, सैनिकों को पंचवटी रोके नहीं रखना चाहिए। उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में लौट जाना चाहिए। वहां सैनिक अभ्यास तथा प्रशिक्षण का कार्य करना चाहिए, अन्न उत्पादन तथा शस्त्र-निर्माण करना चाहिए तथा अन्य क्षेत्रों में निर्माण और सामान्य शिक्षा का कार्यक्रम चलाना चाहिए।"

"ठीक है।"

"यदि यह निश्चित है कि जन-सैनिक अपनी-अपनी सुविधानुसार यथाशीघ्र अपने क्षेत्रों की ओर प्रस्थान करेंगे, "लक्ष्मण बोले, "तो आपको यही सूचित कर दूं कि राक्षस-सेना के जितने शस्त्र हमने प्राप्त किए हैं, वे सब वर्गीकृत होकर वितरण के लिए प्रस्तुत हैं। जाने से पूर्व सभी नायक अपनी टुकड़ियों की आवश्यकतानुसार शस्त्र ले जाए और उनका अभ्यास अपने क्षेत्रों में कराएं।"

"एक बात और," राम बोले, "ये शस्त्र अधिकांशतः प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए हैं-अपने-अपने क्षेत्रों में आप जन-क्रांति के लिए उनका उपयोग भी कर सकते हैं; किंतु रावण की सेना के साथ होने वाले युद्ध के लिए हमारा शस्त्र धनुष-बाण ही है।" सबने अपनी सहमति दी।

"जब सब लोग कह ही रहे हैं, तो एक बात मैं भी कह दूं।" लोपामुद्रा मुसकराई, "तुम लोग बड़े-बड़े युद्धो की तैयारियां कर रहे हो तो प्रत्येक नायक अपनी टुकड़ी में एक चिकित्सक तथा शल्य-चिकित्सक भी तैयार करे। मेरी बेटियां बड़े युद्धों के सहस्रों आहतों का उपचार नहीं कर सकेंगी।"

अगस्त्य हंसे, "प्रभा और सीता को अपनी जान खपाते देख, लोपामुद्रा को बहुत कष्ट होता है; फिर भी बात वे ठीक कह रही हैं। सैनिक के साथ उसके प्राण बचाने वाले शल्य-चिकित्सक का महत्त्व भी हमें ध्यान में रखना चाहिए।"

"तो "मित्र! आज की बात यहीं तक।" राम मुसकराए।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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