बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
"मैंने भी इस प्रकार की अनेक घटनाएं सुनी है।" राम उदास हो गए, "समझ में नहीं आता कि कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है। इनके मस्तिष्क में कोई विकार है, अथवा प्रकृति ने इनके कपाल में हिंस्त्र पशु का मस्तिष्क डाल दिया है, अथवा अपनी शक्ति का अबाध भोग ही इतना भयंकर मद बनकर मानव-मस्तिष्क को विकृत कर देता है, कि उसमें कोई कोमल भावना शेष नहीं रहती, विवेक नहीं रहता, मानवीय तर्क उसकी समझ में ही नहीं आता।" राम ने रुककर क्षण-भर सीता को देखा, "आदित्य ने मुखर को अपनी कथा सुनायी थी। वह किसी आजीविका की खोज में उधर भटक रहा था कि शूर्पणखा की दृष्टि उस पर जा पड़ी। उसने उसे नुला लिया। वह आया तो उससे कहा कि उसके उपयुक्त कोई कार्य उस समय नहीं था। जब तक कोई उपयुक्त कार्य नहीं मिलता, वह वाटिका में कुछ काम कर दिया करे। उपयुक्त अवसर मिलते ही उसकी नियुक्ति किसी अच्छे स्थान पर हो जाएगी। आदित्य को माली के रूप में अपनी नियुक्ति समझ में नहीं आयी, क्योंकि वह तो बुनकर था-बाटिक का उसे रंचमात्र भी ज्ञान नहीं था।...किंतु सध्या समय उसे अपनी नियुक्ति का भेद मालूम हो गया। उसका शरीर बलिष्ठ था और रूप सुंदर। उसे शूर्पणखा द्वारा अपने आमोद-प्रमोद की वस्तु के रूप में नियुक्त किया गया था। इस सूचना से वह इतना आहत हुआ कि अत्यधिक मात्रा में मदिरा पीकर लोगों से कहता फिरा कि वह प्रासाद की वाटिका का माली तेही, राजकुमारी का प्रेमी है। शूर्पणखा ने इस बात को यही रोकने के लिए अपने वैद्य से यह घोषणा करवायी कि आदित्य किसी मानसिक विकृति से पीड़ित है, अतः उपचार-स्वरूप उसे कशाओं से पीटा गया। वह वहां से भाग न आता, तो जाने उसका क्या होता...और आदित्य एकमात्र ऐसा युवक नहीं है। मुझे ज्ञात हुआ है, कि बीसियों नवयुवकों ने शूर्पणखा से इसी प्रकार की निरुक्तियां पायी हैं।
"जबकि ये नवयुवक उसके पुत्र के-से वय के हैं..." सहसा सीता की दृष्टि राम के घाव पर बंधी पट्टी की ओर चेली गयी, "बातों में यह गांठ ढीली ही बंधी है।" सीता ने गांठ खोल, पट्टी पुनः संवारकर बांधी।
"मुखर और आर्य जटायु के घावों की क्या स्थिति है?" राम ने पूछा।
"अब ठीक-से ही हैं।" सीता बोली, "तात जटायु के घाव गंभीर नहीं हैं, किंतु उनका वय अधिक होने के कारण वे निडाल हो गए हैं। मुखर को गहरा घाव लगा है, भारी शस्त्र का। वह मात्र अपनी संकल्प शक्ति और जिजीविषा के दल पर उसे झेल गया है, नहीं तो बड़ी विकट स्थिति होती।"
बाहर किसी की पग-ध्वनि हुई, "मैं आ जाऊं भैया!"
"आओ, सौमित्र!" सीता द्वार तक जा, अगवानी कर लायीं।
"क्या-क्या हो गया, सौमित्र?"
सौमित्र एक आसन पर बैठ गए, "बहुत सारा काम हो गया। जन-स्थान के प्रासाद तो सारे क्षेत्र की गतिविधि के कार्यालयों की आवश्यकता से भी बड़े हैं।"
"अच्छा है।" सीता बोली, "ध्यान का अभाव नहीं रहेगा।"
"काम क्या-क्या हुआ।" राम ने पुनः पूछा।
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