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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

''अच्छा, भाभी की रक्षा का दायित्व तुम्हारे लिए पीड़ा है!'' सीता ने धमकाया, ''बड़े दुष्ट हो तुम, सौमित्र!''

''क्षमा, भाभी! क्षमा!'' लक्ष्मण ने दोनों कानों को हाथ लगा दिए।

लंका में रावण के महामहालय के एक सुसज्जित कक्ष में शूर्पणखा पलंग पर लेटी हुई थी। अनेक दासियां उसकी सेवा में नियुक्त थी। दो दासियां मिलकर उसके पैरों को गुनगुने पानी में धो-धोकर उसे आराम पहुंचाने का प्रयत्न कर रही थीं। दो दासियां, उसके कपाल और केशों पर, शीतल जल में भिगो-भिगोकर वस्त्र फिरा रही थीं। चंदन तथा अन्य प्रकार की औषधियां लेकर अनेक दासियां खड़ी थी। दो दासियां उसके शरीर को हल्के-हल्के हाथों से चाप रही थी।

...किंतु न तो शूर्पणखा के शरीर की थकान उतर रही थी, न मन का ताप। जनस्थान से एक बार चलकर वह मार्ग में कहीं नहीं रुकी थी। मार्ग में स्थान-स्थान पर स्थापित अश्वशालाओं में अश्व अवश्य बदले गए थे। सारथी ने कई बार कहा भी कि वे लोग संकट-क्षेत्र पार कर चुके हैं और राम की सेना अब उन्हें नहीं पकड़ सकती-किंतु शूर्पणखा ने न थमने का नाम लिया, न ठहरने का। अश्वों की गति धीमी होती तो वह सारथी को अपने कशा से कोचने लगती। रथ के घोड़े तो कई स्थानों पर बदले गए थे, किंतु उन अश्वशालाओं में इतने घोड़े नहीं होते थे कि सारे अंगरक्षक भी नया वाहन प्राप्त कर सकते। अंगरक्षक और उनके घोड़े बहुत थक गए थे। मार्ग में अनेक घोड़े संज्ञाशून्य होकर गिर भी पड़े, किंतु शूर्पणखा ने पलटकर उनकी ओर न तो स्वयं देखा और न किसी को देखने दिया।

लंका के द्वार पर उसकी अगवानी के लिए अनेक लोग उपस्थित थे। अकंपन के पहले आ जाने से, शूर्पणखा के लंका में किसी भी क्षण पहुंचने की प्रतीक्षा थी। अगवानी के लिए आने वाले लोगों में स्वयं नाना सुमाली तथा भाभी मंदोदरी भी थी। किंतु उसका कोई भाई वहां उपस्थित नहीं था।

नये रथ में बैठाकर भाभी मंदोदरी उसे अपने साथ महामहालय में ले आयी थीं। उन्होंने मार्ग में ही बता दिया था कि अकंपन से उन लोगों को जनस्थान में होने वाली सारी घटनाओं की सूचनाएं मिल गयी थीं। यद्यपि वह खर के वध से पहले हीं जनस्थान से चल पड़ा था, किंतु उसके चरों के माध्यम से खर के वध तथा राक्षसों की अंतिम पराजय की सूचनाएं भी लंका में पहुंच चुकी थी। इस समय शूर्पणखा के तीनों भाई राज-सभा में उपस्थित थे। उसके भैया रावण ने ही अपने मंत्री नाना सुमाली को यह संदेश देकर भेजा था कि वे लोग जाकर शूर्पणखा की अगवानी करें। अपना कार्य समाप्त कर सम्राट् भी यथाशीघ्र आ जाएंगे। तब से अब तक मंदोदरी, शूर्पणखा की क्लांति दूर करने का भरसक प्रयत्न कर रही थीं; किंतु शूर्पणखा के मन में जाने कैसी उथल-पुथल मची हुई थी कि उसे न नींद आ रही थी, न चैन पड़ता था। थोड़ी-थोड़ी देर में उसकी आंखें क्रोध से रक्तिम हो उठती थी और थोड़ी-थोड़ी देर में उसका मन रोने-रोने को हो उठता था।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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