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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

"नहीं। कष्ट मत करो।" विभीषण उठकर द्वार की ओर बढ़ा, "मैं स्वयं ही जा रहा हूं।"

सरमा चुपचाप विभीषण के पीछे-पीछे द्वार से बाहर चली गयी। विभीषण के जाते ही शूर्पणखा ने दासियों के हाथ परे झटक दिए। पैर धोने वाली दासियों को पैरों के प्रहार से दूर कर दिया तथा औंधी लेटकर अपना मुख तकिये में छिपा लिया। उसकी दसों अंगुलियों के नख तकिये में गड़ गए थे और आंखों से गर्म-गर्म अश्रु बहकर तकिये की रूई में लीन होते जा रहे थे। दासियों, परिचारिकाओं तथा अंगरक्षकों की हलचल से उसने अनुमान लगाया कि सम्राट् आ रहे हैं।...वह सीधी होकर लेट गयी और आंखें पोछ डालीं।

रावण ने कक्ष में प्रवेश किया। दासियां सावधान होकर उठ खड़ी हुई। रावण ने उन्हें बाहर जाने का संकेत किया। कक्ष में एकांत हो गया।

रावण आकर शूर्पणखा के पास बैठ गया, "मैंने सब कुछ सुन लिया, शूर्पणखे! अकंपन ने विस्तार से मुझे बताया है।...देखूं तेरे नाक-कान!" रावण पास खिसक आया। उसने बड़े ध्यान से नाक और कान के औषध लगे घावों को देखा, "घाव तो गंभीर नहीं हैं।" रावण बोला,  "उन्होंने घाव करना भी नहीं चाहा होगा। यह तो अपमान करने के लिए था। पीड़ा तेरे अंगों में नहीं, मन में है।"

शूर्पणखा का मन कुछ शांत हुआ। रावण के प्रति मन का विरोध भी कुछ क्षीण हुआ। धीमे स्वर में बोली, "ठीक कह रहे हो, भैया!" 

"अब तू मुझे बता, मेरी बहना!" रावण ने अत्यन्त स्नेह से कहा, "मैं तेरे लिए क्या करूं-तपस्वियों का वध कर, तेरे प्रतिशोध की अग्नि को शांत करूं अथवा उन्हें बांधकर तुझे ला दूं, ताकि तू अपने तन का ताप शांत कर ले?"

शूर्पणखा सावधान होकर बैठ गयी, "भैया! इतना सरल नहीं है।" 

"तू अपनी बात कह।" रावण मुसकराया, "रावण के लिए कुछ भी कठिन नहीं है।...कैसे हैं तपस्वी? बहुत सुन्दर हैं?"

शूर्पणखा ने सायास अपनी मुसकान रोकी, "मैं नहीं जानती कि अकंपन ने आपको क्या-क्या बताया है। सुन्दर तो वे दोनों हैं। मैंने उनकी कामना भी की थी। किंतु अब स्थिति बदल गयी है।"

"अब क्या स्थिति है?"

"उन्होंने मेरे काम-आह्वान का तिरस्कार किया-यह ठीक है," शूर्पणखा बोली, "किंतु जब तक मैंने उन्हें अपना परिचय नहीं दिया, उन्होंने मेरा अपमान करने का साहस नहीं किया था। मेरा अपमान उन्होंने तब किया, जब मैंने उन्हें बताया कि मैं राक्षसराज रावण की बहन हूं। वस्तुतः उन्होंने राक्षसराज का ही अपमान करने के लिए मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया है।" रावण के अहंकार पर सीधी चोट पड़ी। "उन्होंने एक कामुक स्त्री को दंड नहीं दिया, रावण की बहन का अपमान किया है। उन्होंने यह जानते हुए भी कि जनस्थान की सेना रावण की सेना है, उनका नाश किया है।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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