बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
विभीषण की हंसी वक्र हो गयी, "मैंने असत्य तो नहीं कहा था, कि अभी मेरी बहन में लंका की सेना को भी कटवा डालने का उत्साह है।" सहसा उसका स्वर तीखा हो गया, "जनस्थान की सेना का नाश करवाया? तुम्हारे अत्याचारों और क्रूरताओं की प्रतिध्वनियों से लंका की प्राचीर भी कांप रही है, बहन! आततायी तो अपने ही पाप से मारा जाता है। अकेला बेचारा राम क्या कर सकता था, यदि तुमने और खर ने अपने कृत्यों से जनस्थान का एक-एक ढेला अपना शत्रु न बना लिया होता।"
"राम अकेला नहीं है।" शूर्पणखा भी तीखे स्वर में बोली, "उसकी ओर से लड़ने वाले अनेक लोग हैं।"
"लोग हैं। सेना तो नहीं है। विभीषण ने उत्तर दिया, बताओ, उनमें से किसी ने भी ढंग से सैनिक प्रशिक्षण पाया हो, किसी ने पहले कोई युद्ध किया हो। वहां तो राम का भाई लक्ष्मण तक नहीं लड़ा कि हम कह सकें कि दो योद्धा तो थे...।"
"क्यों! जटायु भी उनकी ओर से लड़ा।"
"हां! हां! जटायु भी।" विभीषण बोलता गया, "कल तक तो यही जटायु तुम्हारे लिए एक बूढ़ा गिद्ध मात्र था, जो छिपकर घायल और मृत सैनिकों को खा सकता था। आज वह भी योद्धा हो गया। आदिम जातियों के अबोध-अज्ञानी नवयुवक प्रशिक्षित सेना में कैसे बदल गए? उन्हें राम ने सैनिक बनाया अथवा तुम्हारे अत्याचारों ने?" विभीषण निमिष भर रुका, "तुमने उन्हें इतना पीड़ित न किया होता, तो वे जातियां सौ वर्षों तक यह भी न जान पातीं कि धनुष किसे कहते हैं। इसीलिए कह रहा हूं कि अब भी चेत जाओ।"
शूर्पणखा ने धधकती आंखों से बिभीषण को देखा, "जे बहन शत्रुओं के हाथों नाक-कान कटवाकर आयी है, जिनकी सेना नष्ट हो गयी है, स्कंधवार छिन गया है, तुम उसके प्रति सहानुभूति जता रहे हो?"
"हां! सहानुभूति न होती तो तुम्हारे पास न आता।"
"क्यों आए हो? तुम्हें कोई बुलाने गया था?"
"अपने सगे-संबंधियों का प्रेम बुलाने गया था।" विभीषण का स्वर शांत था, "इसीलिए कहने आया हूं-अपने नाक-कान कटा आयी हो, अब अपने भाइयों पर कृपा करो; उनके नाक-कान मत कटवाओ। जनस्थान तो उजड़ गया, अब लंका को श्मशान मत बनाओ। यदि अब भी तुमने स्वयं को नहीं संभाला, तो तुम देखोगी कि शोषित जातियां जब उठ खड़ी होती हैं, तो उनका प्रतिशोध कितना भयंकर होता है...।"
"देख रही हूं, तुम्हें अपनी बहन से अधिक तो उन लोगों के साथ सहानुभूति है, जिन लोगों ने तुम्हारी बहन के नाक-कान काटे हैं।" शूर्पणखा क्रोध में धधकती हुई बोली, "यदि संसार में सब भाई तुम्हारी जाति के हो जाएं, तो किसी स्त्री के चेहरे पर नाक-कान बचेंगे?"
"बहन हो, इसलिए सहानुभूति तो तुम्हारे ही प्रति है।" विभीषण अपने संतुलित स्वर में बोला, "किंतु उसके प्रति सम्मान की भावना है, जिसकी पत्नी की तुम हत्या करने गयी थी। उसने तुम्हारे नाक और कान को केवल शस्त्रचिह्नित किया है। निश्चित रूप से वह बहुत न्यायप्रिय और उदार व्यक्ति है।"
"तुम जाओगे या मैं तुम्हारा मुंह नोचने के लिए उठूं?" शूर्पणखा सचमुच उठने को हुई।
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