बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
विभीषण की किसको चिंता है। रावण ने अपने कंधे झटक दिए। उसके मन का द्वन्द्व मिट गया। वह निर्णय कर चुका था। और रावण के निर्णय को कोई नहीं हिला सकता ...मंदोदरी का विचार विलीन हो गया ...प्रतिरावण भी मौन हो गया। रावण के मस्तिष्क ने अजाने ही हरण की पद्धति पर विचार करना आरंभ कर दिया। ...उसने सोच तो लिया कि किसी प्रकार राम और लक्ष्मण को आश्रम से दूर हटा ले जाया जाए, किंतु कौन हटायेगा उनको? कैसे हटाएगा? संभव है, वे दोनों एक-साथ आश्रम कभी न छोड़ते हों ...तो फिर कौन है ऐसा व्यक्ति, जो यह कार्य कर सके! जिसमें साहस हो, वाक्-चातुर्य हो, प्रत्युत्पन्नमतित्व हो और वह व्यक्ति राम का घोर शत्रु हो...?
कौन जाएगा हरण करने? साम्राज्य के स्वामी स्वयं रावण को जाने की क्या आवश्यकता है-किसी अन्य व्यक्ति को भी तो भेजा जा सकता है...किंतु दूसरे ही क्षण रावण ने स्वयं ही यह विचार त्याग दिया। चौदह सहज सैनिकों को तो राम ने बिना बात के ही समाप्त कर दिया। अब दो-चार व्यक्तियों को भेजा तो हरण तो वे क्या करेंगे, अपनी मूर्खता के कारण अपने प्राण भी खोएगे और सीता-हरण की योजना का भी भंडाफोड़ कर आएंगे। यदि राम को संदेह हो गया तो वह सीता की सुरक्षा का कदाचित् कोई और प्रबंध कर लेगा...नही! नहीं!! सुंदरियों के अपहरण के संदर्भ में रावण किसी अन्य व्यक्ति पर विश्वास नहीं कर सकता।...उसे स्वयं ही जाना होगा...किंतु सहायक? साथ कौन होगा-जिसमें साहस हो, वाक्-चातुर्य हो, प्रत्युत्पन्नमतित्व हो और...और...राम का शत्रु भी हो...?
सहसा रावण को मारीच याद आया- मामा मारीच। रावण की मां का चचेरा भाई। वह करेगा यह सब। यद्यपि उसने सिद्धाश्रम से भागकर पर्याप्त कायरता दिखाई है, किंतु उसमें साहस की कमी नहीं है। उससे पूर्व ताड़का वन और उसके आस-पास उसने अनेक पराक्रम दिखाए हैं। सिद्धाश्रम से पलायन के पूर्व वह अपने प्रकार का एक ही दुस्साहसी व्यक्ति माना जाता था। तभी तो सिद्धाश्रम पर आक्रमण के समय सुबाहु उसे अपने साथ ले गया था। ...फिर मारीच के मन में राम के प्रति शत्रुता, विरोध तथा वैर भी पर्याप्त होना चाहिए। राम के कारण ही मारीच को सिद्धाश्रम से भागना पडा; और वह मारीच जो किसी समय ताड़का वन में स्थापित राक्षसी के राज्य का राजा अथवा सेनापति हो सकता था, आज तक समुद्र तट पर एक छोटी-सी कुटिया बनाकर संन्यासी का वेश बनाए, इधर-उधर आने-जाने वाले यात्रियों से छोटी-मोटी ठगी करता हुआ, अपना जीवन व्यतीत कर रहा है।
मारीच के प्रति रावण के मन में भी पर्याप्त क्रोध था-उसने न केवल सिद्धाश्रम से भागकर कायरता दिखाई थी-रावण से न मिलकर उसने राक्षसों के प्रति घोर अपराध भी किया था। नहीं तो महाराजाधिराज रावण का एक भूतपूर्व सेनाधिकारी इस प्रकार छोटी-मोटी ठगी कर जीवन व्यतीत करता। सिद्धाश्रम से भागा ही था, तो कोई बात नहीं। यदि वह रावण के पास आता और राम के विरुद्ध सैनिक अभियान के लिए सहायता मांगता, तो रावण सहर्ष उसकी सहायता करता और उसके सुख का पूरा ध्यान रखता; किंतु वह रावण के पास आया ही नहीं...।
...पर क्या अकेले मारीच का राम और लक्ष्मण के पास जाना जोखिम का काम नहीं होगा? वे लोग उसे पहचान भी सकते हैं। उसे पहचानते ही वे उसका वध कर देंगे। यदि न भी पहचानें, तो भी तनिक-से संदेह पर वे उसके प्राण ले लेंगे। जिन लोगों ने जनस्थान की सारी राक्षसी सेना का संहार कर डाला, उनके लिए मारीच का नाश क्या कठिन होगा...रावण को लगा, उसके मन में मारीच के लिए रंच मात्र भी करुणा नहीं है। जिस कायरता का काम मारीच ने किया है, वह राक्षसों के लिए कलंक है। सीता-हरण में सहायता देकर या तो मारीच को उस कलंक को धोना होगा, अथवा राम के हाथों मरकर अपने अपराध का प्रायश्चित करना होगा...।
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