बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
|
8 पाठकों को प्रिय 37 पाठक हैं |
राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
रावण का मन क्रमशः कठोर होता गया। निश्चय दृढ़ होता गया। रावण अपनी उद्धतता के लिए प्रसिद्ध था। निर्णय कर लेने के पश्चात् न तो उसमें परिवर्तन हो सकता था, न पुनर्विचार।
"मारीच को यह करना ही होगा।" रावण ने अपने ही सम्मुख, अपने निर्णय की घोषणा की।
राम के आश्रम की सीमा दिखाई पड़ते ही रावण रुक गया। उसे रुकते देख मारीच के भी पैर ठिठक गए। क्षण-भर में उसके मस्तिष्क में सारी योजना जीवन्त हो उठी और उसके रोम भय से सिहर गए। रावण उसे चारा बनाकर, सिंह से भी भयंकर तथा शक्तिशाली राम एवं लक्ष्मण का आखेट खेलने आया था। संभव था, वह सिंह का आखेट कर भी ले, किंतु उतनी देर में चारा तो नष्ट हो ही जाएगा। रावण ने मारीच के चेहरे पर उभर आए उसके मन के भय को पढ़ लिया। उसकी आंखें क्रोध से लाल हो गयीं, "देखना! विश्वासघात किया अथवा कायरता दिखाई तो जिस यातना से तुम मारे जाओगे, वह मृत्यु से भी भयंकर होगी।"
रावण न भी कहता, तो भी मारीच यह जानता था। उसे या तो रावण का काम करते हुए प्राण देने होंगे अथवा रावण के हाथों मरना होगा। मृत्यु से बचने का एक ही मार्ग था कि वह सफलतापूर्वक रावण का कार्य कर दे और पुरस्कार में रावण से प्राण-दान पाये।...या फिर दूसरा मार्ग राम की शरण जाने का था। हां, यह भी एक मार्ग था। वह जाकर रावण की योजना के संबंध में सब कुछ राम को बता दे और बदले में राम से अपनी रक्षा का वचन ले।...पर राम उसकी रक्षा क्यों करेंगे? वह राक्षस है। रावण का संवंधी है। किसी समय उसने राम तथा विश्वामित्र की हत्या के लिए सिद्धाश्रम पर किए गए अभियान का नेतृत्व किया था। क्या राम उस घटना का प्रतिशोध नहीं लेंगे? अथवा उसकी मैत्रीपूर्ण बातों को उसका छल नहीं मानेंगे? किस आधार पर वे उसका विश्वास करेंगे? वह था मारीच। छल-छद्म और ठग-विद्या के लिए प्रसिद्ध राक्षस!...और यदि किसी प्रकार राम उसका विश्वास कर भी लें, उसकी रक्षा का वचन दे भी दें तो अपनी समस्त शक्ति और युद्ध-कौशल के रहते हुए भी वे मारीच की रक्षा कर पाएंगे। पग-पग पर राक्षस-बस्तियां शिविर तथा चौकियां हैं। स्थान-स्थान पर रावण के अनुचर है। राम कहां-कहां उसकी रक्षा करेंगे? राक्षस उसे कहीं भी पकड़कर चीरफाड़ खाएंगे। यदि मरना ही है तो राम के हाथों उसकी मृत्यु कम यातनापूर्ण होगी...नहीं! उसके पास कोई विकल्प नहीं है। उसे रावण की बात माननी ही होगी। उसके सामने एक ही मार्ग है। रावण को इच्छा के अनुसार-राम से छल! असफल होने पर राम के हाथों मृत्यु और सफल होने पर रावण के द्वारा क्षमा और पुरस्कार!
मारीच ने अपने वेश पर दृष्टि डाली। वे दोनों हीं-वह और रावण-संन्यासियों का वेश बनाकर आए थे। राम ने मारीच को जब सिद्धाश्रम में देखा था, तब संभ्रांत राक्षसों के समान उसके केश सुंदर ढंग से कटे हुए थे, दाढ़ी नहीं थी और यत्न से बढ़ाई हुई हल्की मूंछें थी। यहां से भागकर इन पिछले वर्षों में संन्यासी-रूप में जीवन-यापन करने के कारण उसके केश तो बढ़ चुके थे, किंन्तु प्रकृति की प्रतिकूलता के कारणा दाढी-मूंछ मं कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई थी। इसीलिए आज उसे कृत्रिम दाढ़ी की सहायता लेनी पड़ी थी। यदि किसी समय राम अथवा लक्ष्मण को उसकी दाढ़ी की कृत्रिमता पर संदेह हो गया तो अवश्य ही उसके प्राण जाएंगे।
|