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वर्तमान दुर्व्यवस्था का समाधान हिन्दू राष्ट्र

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 1985
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5385
आईएसबीएन :0000000

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भारत के वर्तमान दुर्व्यवस्था का समाधान पर आधारित उपन्यास

Vartman durvyavstha ka samadhan hindu rashtra

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

शाश्वत संस्कृति परिषद्

शाश्वत का अर्थ है सदा रहनेवाला, नित्य। जो नित्य है वह सबके लिए है।
ज्ञान का मूल स्रोत परमात्मा है और परमात्मा का ज्ञान वेद ज्ञान है। यह ज्ञान का प्राणीमात्र के लिये है।
जैसे एक वृक्ष, जिसका सम्बन्ध मूल से कट गया हो, शीघ्र ही सूखने तथा सड़ने लगता है, इसी प्रकार मानव समाज भी, मूल ज्ञान से विच्छिन्न हो सूख तथा सड़ रहा है। मानव-समाज मानवता-विहीन हो रहा है।
इस मानव समाज को पुनः ज्ञान के उस मूल स्रोत—वेद से जोड़ने का एक प्रयास ही इस शाश्वत संस्कृति परिषद् है।
इसी प्रयास में परिषद् पिछले लगभग बीस वर्षों से प्रकाशन कार्य कर रहा है। इस समय तक विभिन्न विषयों पर लगभग बीस छोटे-बड़े ग्रन्थ प्रकाशित किये जा चुके हैं जो अपने ढंग के अनूठे हैं।
अपने इस प्रयास में हम सभी भारतवासियों, हिन्दुत्व प्रेमियों से सहयोग की आकांक्षा रखते हैं।

 

अशोक कौशिक
मंत्री

 

भूमिका

 

 

हिन्दू तथा हिन्दुस्तान पर जो कुछ मैं लिख चुका हूं, उस सबके लिखने के उपरान्त पुनः इस विषय पर लिखने की आवश्यकता इस कारण अनुभव हुई है कि जानबूझकर, आंखें मूंदे हुओं को बलपूर्वक पकड़कर झकझोरना है। इसी दिशा में कुछ करने की इच्छा से यह मेरा प्रयास है।
बम्बई की एक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका ‘इलेस्ट्रेडिट वीकली’ ने अंक जून 15-21, सन् 1980 इस विषय में निकाला है। उसने अपने अंक का नाम रखा है—‘‘Should India be A Hindu State ?’’
इस लेख के शीर्षक में ही हेत्वाभास है। हेत्वाभास का अर्थ है कि निर्दिष्ट हेतु (उद्देश्य) का आभाष मात्र हो, परन्तु उद्देश्य कुछ अन्य हो। यह मैं इस कारण कहता हूं कि अंग्रेज़ी भाषा कोश (Webster’s English Dictionary) में अंग्रेज़ी शब्द ‘स्टेट’ के दस अर्थ दिये हैं। पत्रिका का सम्पादक उन दस में से किन-किन अर्थों पर लेख लिखाना चाहता था, यह उसने कहीं भी स्पष्ट नहीं किया।

इन दस अर्थों में सम्भवतया दो अर्थ हैं जिनके विषय में ही उसका आशय हो सकता था ऐसा प्रतीत होता है कि पाठक तथा लेख लिखने वालों के मन में इन दोनों अर्थों में से अनजाने में भ्रम उत्पन्न करने का यत्न हो गया है।
सम्पादक को अथवा पत्रिका में लेख लिखने वालों को स्वयं यह स्पष्ट करना चाहिये था कि लेखकों का यही चातुर्य है और वे अपने कथनों से किसी प्रकार का विभ्रम फैलाना अपना अधिकार समझते हैं। यहाँ तक कि राज्य नियम बनाने वाली संसद के कहे शब्दों को भी सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीश धोखे की टट्टी समझते है। यही कारण कि न्यायाधीश किसी कानून के अर्थ लगाते समय संसद में पारित कानून का जो उद्देश्य बताया जाता है, उसे प्रमाण नहीं मानता। कानून के शब्दों पर ही बहस की जाती है। कानून उपस्थित करने वाले मंत्रियों के घंटों भर दिये व्याख्यानों को व्यर्थ की बकवास माना जाता है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि या तो कानून उपस्थित करने वाले मंत्री महोदय ने सब सदस्यों को उल्लू बनाया था, अथवा न्यायालय में कानून पर विचार करने वाले न्यायाधीशों में मंत्री के व्याख्यानों को व्यर्थ समझ तिरस्कृत कर दिया है।
यही बात इस पत्रिका के सम्पादक के विषय में है और इसी कारण हमें कुछ कहने का अवसर मिला है।
जैसा कि ऊपर बताया है कोश में ‘स्टेट’ शब्द के अर्थ कई हैं। इनमें राजनीति सम्बन्धी अर्थ तीन हैं। वे तीन अर्थ हम यहां देना चाहते हैं।

अर्थ 5 ए इस प्रकार है—A body of people permanently occupying a definite territory and politically organized under a sovereign government almost entirely free from external control and possessing coercive power to maintain order within the community.
अर्थ 6 हैं—operations, activities or affairs of the government or ruling power of a country; the sphere of administration and supreme political of a government.
अर्थ 7 हैं—One of the body’s politic or components unit in a federal system that is more or less independent and sovereign over internal affairs but forms with the other units a sovereign nation. (webster’s third New International dictionary 1967)
‘स्टेट’ शब्द के दस अर्थ में ये तीन अर्थ राज्य, देश तथा प्रजा से सम्बन्ध रखते हैं। संक्षेप में इनके अर्थ हिन्दी में इस प्रकार हैं—

अर्थ 5 ए का अभिप्राय है—एक जनसमूह, जो एक भूमि खण्ड अथवा देश में स्थाई रूप से रहता हो, जो एक स्व-सत्ता सम्पन्न राज्य में राजनैतिक ढंग से शासित हो, जो विदेशी नियंत्रण से मुक्त हो और अपने में शासन की सामर्थ्य रखता हो।
अर्थ 6 का अभिप्राय है—राज्य का कार्य, गतिविधियाँ अथवा राज्य विषयक देश पर शासक पार्टी की शासन प्रणाली और शासन की अबाध सामर्थ्य।
अर्थ 7 का अभिप्राय है—एक फैडरल राज्य के अंग जो अपने भीतरी मामलों में सर्वथा स्वतंत्र हों और दूसरे राज्यों से मिल कर एक स्वतंत्र कौम बनाते हों।

निःसन्देह अंग्रेज़ी लेखक शब्द-कोष के अर्थ 5-ए और 6-ए में विभ्रम उत्पन्न कर रहे हैं। यह अंग्रेज़ी कानूनदानों का स्वभाव है, जिसमें कभी विषय को तर्क-वितर्क की कसौटी पर कसा जाये तो वे अपने कहे से मुकर सकें।
बम्बई की इस साप्ताहिक पत्रिका के लेखक भी ‘‘स्टेट’’ शब्द के अर्थ की व्याख्या किये बिना, इस विषय पर लेख लिखने बैठ गये हैं।

अतः लेखों का आह्वान करने वाला या तो कोई सर्वथा अनभिज्ञ व्यक्ति मानना पड़ेगा अथवा कोई धूर्त कहना पड़ेगा। उसने इस लेख को सजाने के लिये कुछ हिन्दू मज़हबी चित्र भी दिए हैं। उदाहरण के रूप में—पत्रिका के मुख्यपृष्ठ पर राम-सीता का एक चित्र दिया है, जिसमें मूंछ वाला हनुमान बैठा है।
फिर एक पृष्ठ पर एक मुसलमान का, कानों में उंगली दे, आजान देने का चित्र है। एक सिक्ख सभा का चित्र भी दिया है, जिसमें कोई सिक्ख सज्जन उंगली खड़ी कह कुछ कह रहे हैं। एक हठ योगी का चित्र है। एक चित्र किसी तांत्रिक का प्रतीत होता है और फिर किसी को बांसुरी बजाते हुए भी दिखाया है। कई तिलकधारी लड़के भी एक चित्र में दिखाये गये हैं।
इन चित्रों को देने के दो ही अर्थ हो सकते हैं। एक यह कि हिन्दुओं के कुछ एक मजहबों की हँसी उड़ाई जाये तथा दूसरे, इन चित्रों का एक गम्भीर विषय पर लेखों के साथ देकर हिन्दू राष्ट्र को बदनाम किया जाये।

सम्भवतः पत्रिका का सम्पादक हिन्दू समुदाय के विषय में बहुत ही सीमित ज्ञान रखता है। अथवा यह भी सम्भव है कि हिन्दू राष्ट्र का मजाक उड़ाने के लिये उसने कुछ हिन्दू समुदायों के मजहबी चित्र दे दिये हैं।
कदाचित सम्पादक यह भूल गया है कि महात्मा गांधी अपने को राम-भक्त कहते हुए भी राम कथा को एक अध्यात्म की कथा मात्र मानते थे और राम, लक्ष्मण, सीता इत्यादि को ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं मानते थे।
हिन्दुओं में एक आर्यसमाज सम्प्रदाय भी है। वह देवी-देवताओं को नहीं मानता। यहां तक कि अपने प्रवर्तक स्वामी दयानन्द के चित्र की ओर पीठ कर इसके नेता व्याख्यान दे देते हैं। वेदान्त भी हिन्दू सम्प्रदायों में से एक सम्प्रदाय है और वह तो ईंट-पत्थर को भी वैसा ही ब्रह्म मानता है, जैसे राम, कृष्ण को।

हिन्दुओं के अनेक मजहब अवश्य हैं, परन्तु ये हिन्दू राष्ट्र के प्रतीक नहीं हैं। हिन्दू समुदाय इन सबसे ऊपर और प्रथक एक विचार है जो राष्ट्र के नाम से अस्तित्व रखता था और फिर रखने के यत्न में है।
जब हम हिन्दू राष्ट्र (Hindu State) की कल्पना करते हैं तो शब्द कोश के अर्थ 5-ए वाले ‘स्टेट’ से हमारा अभिप्राय है।
जहां तक अर्थ 6 का सम्बन्ध है, वैसा ‘स्टेट’ न तो हिन्दू हो सकता है, न मुसलमान। वह न प्रजातन्त्र है, न ही अधिनायकवाद। उसमें शासन मुख्य है। शासन का अभिप्राय है—लॉ ऐंड आर्डर अर्थात् न्याययुक्त शान्ति-व्यवस्था। शासक राजा हो अथवा प्रजा, यदि शान्ति-व्यवस्था न्याययुक्त नहीं तो वह शासक, शासक नहीं।

तनिक विचार करिये। देश के पीनल कोड का आशय इन मुख्य धर्मों के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है—सत्य, चोरी न करना, धैर्य, अक्रोध, मन और इन्द्रियों पर काबू रखना, बुद्धि से विचार कर बात करना। ये पांच-छः बातें ही तो हैं जो किसी भी सभ्य शासन क्षेत्र में हो सकती हैं। जो शासन धर्म के इन अंगों को विकृत करता है, वह शासन नहीं है। वह इन अर्थों में स्टेट नहीं है।

हमारा अभिप्राय यह है कि धर्म के इन अंगों में, जिसे चलाने के लिये शासन निर्माण किया जाता है, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी कहां से आ गये ?
शासन-व्यवस्था तो शुद्ध, पवित्र, प्राकृतिक नियमों (natural laws) के अनुसार होना चाहिए। सुलेमान, यहूदी, शैव अथवा वैष्णव मत का शासन-प्रणाली (administration) में उल्लेख नहीं आता। जहां आता है, वह शासन नहीं। अतः जब कोई व्यक्ति कहता है कि भारत में हिन्दू स्टेट हो तो उसके अभिप्राय अर्थ 5-ए से ही होता है।
हमें खेद है कि पत्रिका के लेखकों में भी यह स्पष्ट नहीं किया। इसका अर्थ है कि जानबूझकर अथवा अज्ञानता के कारण उन्हें भ्रम फैलाने का यत्न किया है।

इस आरोप से पत्रिका का सम्पादक भी मुक्त नहीं समझा जा सकता। उसने कहा नहीं कि स्टेट से वह क्या अभिप्राय ले रहा है और लेखक भी दोषमुक्त नहीं कहे जा सकते, क्योंकि उन्होंने भी बताया नहीं कि वे ‘स्टेट’ के क्या अर्थ ले रहे हैं।
वास्तव में भारत की पूर्ण-दुर्व्यवस्था इन अंग्रेजी पढ़े-लिखों ने ही उत्पन्न की हुई है जो बिना जाने कि उनके कथन का क्या अर्थ है, दूसरों की निन्दा करने लगते हैं।




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