विविध >> भारत में राष्ट्र भारत में राष्ट्रगुरुदत्त
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राष्ट्रवाद पर आधारित पुस्तक...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
1.जीवन पद्घति का नाम धर्म है और धर्म का सार है कि जो व्यवहार अपने साथ
किया जाना पसन्द नहीं करते वह किसी के साथ न करो।
2. विचार शैली को संस्कृति कहते हैं।
हिन्दू राष्ट्र के यही दो आधार हैं एक धर्म तथा दूसरा संस्कृति। धर्म तथा संस्कृति मूल रूप में बदली नहीं जा सकती।
कम्पोज़िट (कल्चर) एक धोखा है। कम्पोज़िट सभ्यता तो मानी जा सकती है। दो संस्कृतियों की मिलावट करने का प्रयास बड़ा भयंकर होगा।
2. विचार शैली को संस्कृति कहते हैं।
हिन्दू राष्ट्र के यही दो आधार हैं एक धर्म तथा दूसरा संस्कृति। धर्म तथा संस्कृति मूल रूप में बदली नहीं जा सकती।
कम्पोज़िट (कल्चर) एक धोखा है। कम्पोज़िट सभ्यता तो मानी जा सकती है। दो संस्कृतियों की मिलावट करने का प्रयास बड़ा भयंकर होगा।
सम्पादकीय
राष्ट्र एक अवस्था है। राष्ट्रवाद उस अवस्था की सार्थकता का सिद्धान्त है
एवं राष्ट्रीयता उक्त अवस्था की भावना है।–गुरुदत्त
1947 से जब से भारत को स्वत्रन्त्रता मिली है, कांग्रेसी नेता, तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर उनके छुटे-भय्ये तक, हिन्दू राष्ट्र की कल्पना का विरोध करते रहे हैं। हिन्दू राष्ट्र की भावना और घोषणा को देश के लिये घातक करते रहे हैं।
वास्तव में कांग्रेस की नींव ही उस विचारधारा पर रखी गई थी जो हिन्दुस्तान में हिन्दू का नाश करने के लिए अंग्रेज़ों ने विचारी थी।
देश में जाग्रति हो रही थी। अंग्रेज़ों का विरोध क्रान्तिकारी आन्दोलनों से हो रहा था। यहाँ तक की क्रांतिकारी इंग्लैण्ड में पहुँचकर आन्दोलन तथा गतिविधियां चला रहे थे और सभी क्रान्तिकारी हिन्दू विचारधारा तथा आर्य समाज के प्रभाव में थे।
इन हिन्दू आन्दोलनकारियों का प्रभाव समाप्त करने के लिये एक योजना बनाई गई। कांग्रेस संस्था की सदस्यता के लिये एक शर्त यह थी कि वह अंग्रेज़ी शिक्षित होना चाहिये। अंग्रेज़ी शिक्षा द्वारा उनमें हिन्दू विरोधी भाव भरे गये तथा ऐसे लोगों को देश की बागडोर संभालने के लिए कहा गया।
अंग्रेज जानता था कि हिन्दुस्तान में यदि कोई शत्रु है तो वह हिन्दू है। हिन्दुओं को दबाकर रखने के लिये मुसलमानों का सरपरस्त बनाया गया। उनको कहा गया कि अधिवेशनों में जितने प्रतिनिधि भेजें, उनमें प्रति दस प्रतिनिधियों के पीछे कम से कम दो मुसलमान होने आवश्यक हैं। उस समय दो राष्ट्रवादी मुसलमान मिलने भी कठिन हो गये थे। तब रिश्वत देकर भाड़े के मुसलमानों को खद्दर के कपड़े पहिनाकर साथ ले जाया जाने लगा। ऐसी थी कांग्रेस।
मुसलमानों को फुसलाने के लिये कांग्रेस हिन्दू विचार के लोगों की निन्दा करने लगी। उनके विरोध में ढोल पीट जाने लगे। इसका प्रभाव भी होने लगा।
देश के ‘दुर्भाग्य’ से तथा जवाहर लाल नेहरू ‘अवतरित’ हुए। गांधी अपनी मानसिक स्थिति, जैन धर्म तथा अंग्रेज़ों के ‘सौभाग्य’ से ऐसे समय गांधी तथा जवाहर लाल नेहरू ‘अवतरित’ हुए। गाँधी अपनी मानसिक स्थिति, जैन धर्म तथा वैष्णव मत के प्रभाव के कारण (स्वयं कष्ट सह कर दूसरों के प्रसन्न रखना) मुसलमानों को खुश करने की प्रवृत्ति बना बैठे। यहाँ तक कि एक बार हिन्दुस्तान के हितों के विरुद्ध, जिन्ना को ब्लैंक चैक देने को तैयार हो गये थे और नेहरू कम्यूनिज्म के प्रभाव के कारण हिन्दुओं को गालियां देने लगे। हिन्दू जनता गांधी के महात्मा के प्रभाव में थी और महात्मा गांधी मोतीलाल नेहरू के प्रभाव में आये हुए थे।
गांधी जी एक असफल वकील थे और मोतीलाल नेहरू बैरिस्टरों के सरताज थे। मोतीलाल नेहरू अंग्रेज़ीयत के भक्त थे और जिस प्रकार साधारण व्यक्ति अंग्रेज़ी सरपट बोलने वाले साहब समझकर सलाम करता है यही भाव गांधी में आ जाने के कारण से मोतीलाल नेहरू के दीवाने थे। उनके लिये यह बहुत बड़ी बात थी कि मोतीलाल नेहरू की मित्र मण्डली में अंग्रेज़ स्त्री पुरुष हैं।
जवाहरलाल नेहरू राजनीति में उतरे। अपने मन में ही भाव के कारण गांधी नेहरू की किसी बात का विरोध नहीं कर सकते थे। अपितु स्थिति यहां तक थी कि नेहरू को आगे लाने लगे। इसमें एक यह कारण यह भी माना जाता है कि जवाहरलाल नेहरू का गौर वर्ण उनको अंग्रेज़ के समान ही आकर्षक बना देता था।
परिणाम यह हुआ कि जब अन्तरिम सरकार 1946 में बनाने के लिये कांग्रेस के प्रधान का निर्वाचन होने लगा तो सरदार पटेल का नाम सर्वोपारि था; परन्तु गांधी नेहरू के पक्ष में अड़ गये। नेहरू को प्रधान बनाया गया तथा अन्तरिक सरकार के वह प्रधान मन्त्री बने। नेहरू के विषय में यह कहा जाता है कि कभी हिन्दू राष्ट्र का उल्लेख होता था तो उनका क्रोध सीमा पार कर जाता था।
नेहरू के पश्चात इन्दिरा गांधी राजनीति में आई। वह पिता से भी बढकर हिन्दू विरोध सिद्ध हुई।
आज स्थिति यह हो गई कि भारतीय संस्कृति के किसी पहलु का नाम लो देश के कम्युनिस्ट नेता, समाजवादी नेता तथा बहुजन समाजवादी पार्टी, दक्षिण की पार्टियाँ चिल्लाने लगती है कि भाजपा संचालित केन्द्रीय सरकार देश का भगवाकरण कर रही है और उसके पीछे–पीछे चलने वाली सोनिया गांधी भी शोर मचाने लगती हैं कि भाजपा भगवाकरण से बाज आये। मानो ‘भगवाकरण’ कोई गाली है।
हिन्दू मानता है कि वेद ज्ञान के भण्डार हैं। वेद का नाम लो तो यह भगवाकरण है। संस्कृत तथा हिन्दी भाषा अथवा वैदिक शिक्षा का नाम लो तो ‘भगवाकरण’। यहां तक कि भारतीय संस्कृति के किसी पहलु का नाम लो तो ‘भगवाकरण’ की गाली दी जाने लगती है।
यह कहा जाता है कि देश के बीस करोड़ से अधिक मुसलमानों को मुख्य धारा में लाया जाना चाहिये। ठीक है। कौन मना करता है ? परन्तु जब तक मुसलमान जेहादी के प्रभाव में है, वे मुख्य धारा में आयेंगे क्या ? यदि आये भी तो अपनी शर्तों पर आयेंगे। हां, सरकार यदि बीस करोड़ मुसलमानों को राष्ट्रीय शिक्षा देकर उनकी कट्टरता समाप्त कर सके तो बात दूसरी है। यदि ऐसा कर सके तो ठीक है अन्यथा वह स्वयं भी धोखा खायेगी, हिन्दू जनता को भी धोखे में रखेगी और सरल चित्त हिन्दू तो बारह सौ वर्षों से धोखा खाते आ रहे हैं।
शिक्षा को बदले बिना तथा मुल्लाओं का प्रभाव कम किये बिना, कम से कम राजनीतिक क्षेत्र में तथा जेहादी परम्परा के विषय में, मुसलमानों की समस्या हल नहीं हो सकेगी। इसके बिना कोई मार्ग नहीं है। न अन्य पंथः।
यहां 11 सितम्बर 2001 के दिन जो दुर्घटना अमरीका के न्युयार्क शहर में हुई है, इसका उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा। यात्रियों सहित हवाई जहाज का अपरहण करके विश्व केन्द्र के भवनों से टक्कर मारकर उनको गिराना तथा सात हजार से भी अधिक का संहार नीचतापूर्ण हरकत कही जा सकती है।
इसमें भी अधिक नीचतापूर्ण हरकत यह है कि ऐसी घटना पर विश्व भर के मुसलमानों ने (अपवाद छोड़कर इस पर प्रसन्नता प्रकट की। कइयों ने तो मिठाई बांटी। जब-जब अमरीका इसका प्रतिकार करने की घोषणा कर रहा है तो दुनिया भर के मुसलमान उनके विरुद्ध रोष प्रकट के लिए सड़कों पर उतर आये हैं। कई मस्जिदों में जा कर लादेन की लम्बी आयु के लिये तथा तालिबान के पक्ष में दुआएं मांगने लगे हैं।
प्रश्न यह है कि यदि आतंवादियों की घटना घृणित कार्य है तो ऐसा करने वालों के साथ सहानुभूति प्रकट करना तथा उनकी सलामती की दुआएं करना कैसे दोषरहित माना जा सकता है ? हत्यारों की प्रशंसा करना, उनकी रक्षा करना क्या जुर्म नहीं है ? यदि है तो वह कौम कैसे निर्दोष कही जा सकती है ?
यह उस कौम की मानसिकता दर्शाता है ? जब तक ऐसी मानसिकता इस कौम में बनी रहेगी, कैसे इन पर विश्वास किया जा सकता है ?
कितनी विचित्र बात है कि एक हिन्दू इस्लाम धर्म स्वीकार करते ही इतना पतित हो जाता है कि सगे बहिन भाइयों तथा माता पिता को भी मारने के लिये तैयार हो जाता है। ऐसे भाव उसके मन में भरे जाते हैं कि अपने खून के रिश्ते को भी वह स्वीकार नहीं करता, तब दूसरे धर्म को मानने वालों को कैसे सहन करेगा ?
इस प्रकार मुसलमानों का, आतंकवादियों के पक्ष में प्रदर्शन करना एक बात को प्रकट करता है कि इस्लाम आतंकवाद साथ-साथ चलते हैं। आतंक फैलाना मुसलमान अपना धर्म मानते हैं। उन्होंने स्वयं को आतंकवाद के साथ-साथ जोड़ लिया है। यह अत्यन्त भयावह स्थिति है।
इस छोटी-सी पुस्तक में लेखक ने हिन्दू भारती तथा आर्य शब्दों की व्याख्या की है तथा राष्ट्र, राज्य, संस्कृति, धर्म का परस्पर सम्बन्ध स्पष्ट किया है। लेखक का युक्तियुक्त मत है कि जब तक देश को कम्युनिस्टों, समाजवादियों और उनके पिछलग्गू कांग्रेसियों के दुष्प्रभाव से मुक्त नहीं किया जायेगा, देश के कल्याण की आशा नहीं करनी चाहिये। इस समय प्रगति के नाम पर देश में विकास हो रहा है; परन्तु किस मूल्य पर ? यह प्रश्न है।
अरबों रुपये के घोटाले हो रहे हैं। देश का कोई भाग आतंकवादियों से सुरक्षित नहीं रहा। जनता का नैतिक पतन होता जा रहा है। भोग-विलास, चरस तथा मादक द्रव्यों का सेवन बढ़ता जा रहा है।
देश को महान् बनाने के लिये देश के मूल निवासी हिन्दू को बलवान बनाना होगा। बारह सौ वर्षों तक वही देश के शत्रुओं से लड़ता आया है और भविष्य में भी उसी से आशा है, यदि नास्तिक भौतिकवाद सरकार ने उसे कुछ करने लायक रखा।
1947 से जब से भारत को स्वत्रन्त्रता मिली है, कांग्रेसी नेता, तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर उनके छुटे-भय्ये तक, हिन्दू राष्ट्र की कल्पना का विरोध करते रहे हैं। हिन्दू राष्ट्र की भावना और घोषणा को देश के लिये घातक करते रहे हैं।
वास्तव में कांग्रेस की नींव ही उस विचारधारा पर रखी गई थी जो हिन्दुस्तान में हिन्दू का नाश करने के लिए अंग्रेज़ों ने विचारी थी।
देश में जाग्रति हो रही थी। अंग्रेज़ों का विरोध क्रान्तिकारी आन्दोलनों से हो रहा था। यहाँ तक की क्रांतिकारी इंग्लैण्ड में पहुँचकर आन्दोलन तथा गतिविधियां चला रहे थे और सभी क्रान्तिकारी हिन्दू विचारधारा तथा आर्य समाज के प्रभाव में थे।
इन हिन्दू आन्दोलनकारियों का प्रभाव समाप्त करने के लिये एक योजना बनाई गई। कांग्रेस संस्था की सदस्यता के लिये एक शर्त यह थी कि वह अंग्रेज़ी शिक्षित होना चाहिये। अंग्रेज़ी शिक्षा द्वारा उनमें हिन्दू विरोधी भाव भरे गये तथा ऐसे लोगों को देश की बागडोर संभालने के लिए कहा गया।
अंग्रेज जानता था कि हिन्दुस्तान में यदि कोई शत्रु है तो वह हिन्दू है। हिन्दुओं को दबाकर रखने के लिये मुसलमानों का सरपरस्त बनाया गया। उनको कहा गया कि अधिवेशनों में जितने प्रतिनिधि भेजें, उनमें प्रति दस प्रतिनिधियों के पीछे कम से कम दो मुसलमान होने आवश्यक हैं। उस समय दो राष्ट्रवादी मुसलमान मिलने भी कठिन हो गये थे। तब रिश्वत देकर भाड़े के मुसलमानों को खद्दर के कपड़े पहिनाकर साथ ले जाया जाने लगा। ऐसी थी कांग्रेस।
मुसलमानों को फुसलाने के लिये कांग्रेस हिन्दू विचार के लोगों की निन्दा करने लगी। उनके विरोध में ढोल पीट जाने लगे। इसका प्रभाव भी होने लगा।
देश के ‘दुर्भाग्य’ से तथा जवाहर लाल नेहरू ‘अवतरित’ हुए। गांधी अपनी मानसिक स्थिति, जैन धर्म तथा अंग्रेज़ों के ‘सौभाग्य’ से ऐसे समय गांधी तथा जवाहर लाल नेहरू ‘अवतरित’ हुए। गाँधी अपनी मानसिक स्थिति, जैन धर्म तथा वैष्णव मत के प्रभाव के कारण (स्वयं कष्ट सह कर दूसरों के प्रसन्न रखना) मुसलमानों को खुश करने की प्रवृत्ति बना बैठे। यहाँ तक कि एक बार हिन्दुस्तान के हितों के विरुद्ध, जिन्ना को ब्लैंक चैक देने को तैयार हो गये थे और नेहरू कम्यूनिज्म के प्रभाव के कारण हिन्दुओं को गालियां देने लगे। हिन्दू जनता गांधी के महात्मा के प्रभाव में थी और महात्मा गांधी मोतीलाल नेहरू के प्रभाव में आये हुए थे।
गांधी जी एक असफल वकील थे और मोतीलाल नेहरू बैरिस्टरों के सरताज थे। मोतीलाल नेहरू अंग्रेज़ीयत के भक्त थे और जिस प्रकार साधारण व्यक्ति अंग्रेज़ी सरपट बोलने वाले साहब समझकर सलाम करता है यही भाव गांधी में आ जाने के कारण से मोतीलाल नेहरू के दीवाने थे। उनके लिये यह बहुत बड़ी बात थी कि मोतीलाल नेहरू की मित्र मण्डली में अंग्रेज़ स्त्री पुरुष हैं।
जवाहरलाल नेहरू राजनीति में उतरे। अपने मन में ही भाव के कारण गांधी नेहरू की किसी बात का विरोध नहीं कर सकते थे। अपितु स्थिति यहां तक थी कि नेहरू को आगे लाने लगे। इसमें एक यह कारण यह भी माना जाता है कि जवाहरलाल नेहरू का गौर वर्ण उनको अंग्रेज़ के समान ही आकर्षक बना देता था।
परिणाम यह हुआ कि जब अन्तरिम सरकार 1946 में बनाने के लिये कांग्रेस के प्रधान का निर्वाचन होने लगा तो सरदार पटेल का नाम सर्वोपारि था; परन्तु गांधी नेहरू के पक्ष में अड़ गये। नेहरू को प्रधान बनाया गया तथा अन्तरिक सरकार के वह प्रधान मन्त्री बने। नेहरू के विषय में यह कहा जाता है कि कभी हिन्दू राष्ट्र का उल्लेख होता था तो उनका क्रोध सीमा पार कर जाता था।
नेहरू के पश्चात इन्दिरा गांधी राजनीति में आई। वह पिता से भी बढकर हिन्दू विरोध सिद्ध हुई।
आज स्थिति यह हो गई कि भारतीय संस्कृति के किसी पहलु का नाम लो देश के कम्युनिस्ट नेता, समाजवादी नेता तथा बहुजन समाजवादी पार्टी, दक्षिण की पार्टियाँ चिल्लाने लगती है कि भाजपा संचालित केन्द्रीय सरकार देश का भगवाकरण कर रही है और उसके पीछे–पीछे चलने वाली सोनिया गांधी भी शोर मचाने लगती हैं कि भाजपा भगवाकरण से बाज आये। मानो ‘भगवाकरण’ कोई गाली है।
हिन्दू मानता है कि वेद ज्ञान के भण्डार हैं। वेद का नाम लो तो यह भगवाकरण है। संस्कृत तथा हिन्दी भाषा अथवा वैदिक शिक्षा का नाम लो तो ‘भगवाकरण’। यहां तक कि भारतीय संस्कृति के किसी पहलु का नाम लो तो ‘भगवाकरण’ की गाली दी जाने लगती है।
यह कहा जाता है कि देश के बीस करोड़ से अधिक मुसलमानों को मुख्य धारा में लाया जाना चाहिये। ठीक है। कौन मना करता है ? परन्तु जब तक मुसलमान जेहादी के प्रभाव में है, वे मुख्य धारा में आयेंगे क्या ? यदि आये भी तो अपनी शर्तों पर आयेंगे। हां, सरकार यदि बीस करोड़ मुसलमानों को राष्ट्रीय शिक्षा देकर उनकी कट्टरता समाप्त कर सके तो बात दूसरी है। यदि ऐसा कर सके तो ठीक है अन्यथा वह स्वयं भी धोखा खायेगी, हिन्दू जनता को भी धोखे में रखेगी और सरल चित्त हिन्दू तो बारह सौ वर्षों से धोखा खाते आ रहे हैं।
शिक्षा को बदले बिना तथा मुल्लाओं का प्रभाव कम किये बिना, कम से कम राजनीतिक क्षेत्र में तथा जेहादी परम्परा के विषय में, मुसलमानों की समस्या हल नहीं हो सकेगी। इसके बिना कोई मार्ग नहीं है। न अन्य पंथः।
यहां 11 सितम्बर 2001 के दिन जो दुर्घटना अमरीका के न्युयार्क शहर में हुई है, इसका उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा। यात्रियों सहित हवाई जहाज का अपरहण करके विश्व केन्द्र के भवनों से टक्कर मारकर उनको गिराना तथा सात हजार से भी अधिक का संहार नीचतापूर्ण हरकत कही जा सकती है।
इसमें भी अधिक नीचतापूर्ण हरकत यह है कि ऐसी घटना पर विश्व भर के मुसलमानों ने (अपवाद छोड़कर इस पर प्रसन्नता प्रकट की। कइयों ने तो मिठाई बांटी। जब-जब अमरीका इसका प्रतिकार करने की घोषणा कर रहा है तो दुनिया भर के मुसलमान उनके विरुद्ध रोष प्रकट के लिए सड़कों पर उतर आये हैं। कई मस्जिदों में जा कर लादेन की लम्बी आयु के लिये तथा तालिबान के पक्ष में दुआएं मांगने लगे हैं।
प्रश्न यह है कि यदि आतंवादियों की घटना घृणित कार्य है तो ऐसा करने वालों के साथ सहानुभूति प्रकट करना तथा उनकी सलामती की दुआएं करना कैसे दोषरहित माना जा सकता है ? हत्यारों की प्रशंसा करना, उनकी रक्षा करना क्या जुर्म नहीं है ? यदि है तो वह कौम कैसे निर्दोष कही जा सकती है ?
यह उस कौम की मानसिकता दर्शाता है ? जब तक ऐसी मानसिकता इस कौम में बनी रहेगी, कैसे इन पर विश्वास किया जा सकता है ?
कितनी विचित्र बात है कि एक हिन्दू इस्लाम धर्म स्वीकार करते ही इतना पतित हो जाता है कि सगे बहिन भाइयों तथा माता पिता को भी मारने के लिये तैयार हो जाता है। ऐसे भाव उसके मन में भरे जाते हैं कि अपने खून के रिश्ते को भी वह स्वीकार नहीं करता, तब दूसरे धर्म को मानने वालों को कैसे सहन करेगा ?
इस प्रकार मुसलमानों का, आतंकवादियों के पक्ष में प्रदर्शन करना एक बात को प्रकट करता है कि इस्लाम आतंकवाद साथ-साथ चलते हैं। आतंक फैलाना मुसलमान अपना धर्म मानते हैं। उन्होंने स्वयं को आतंकवाद के साथ-साथ जोड़ लिया है। यह अत्यन्त भयावह स्थिति है।
इस छोटी-सी पुस्तक में लेखक ने हिन्दू भारती तथा आर्य शब्दों की व्याख्या की है तथा राष्ट्र, राज्य, संस्कृति, धर्म का परस्पर सम्बन्ध स्पष्ट किया है। लेखक का युक्तियुक्त मत है कि जब तक देश को कम्युनिस्टों, समाजवादियों और उनके पिछलग्गू कांग्रेसियों के दुष्प्रभाव से मुक्त नहीं किया जायेगा, देश के कल्याण की आशा नहीं करनी चाहिये। इस समय प्रगति के नाम पर देश में विकास हो रहा है; परन्तु किस मूल्य पर ? यह प्रश्न है।
अरबों रुपये के घोटाले हो रहे हैं। देश का कोई भाग आतंकवादियों से सुरक्षित नहीं रहा। जनता का नैतिक पतन होता जा रहा है। भोग-विलास, चरस तथा मादक द्रव्यों का सेवन बढ़ता जा रहा है।
देश को महान् बनाने के लिये देश के मूल निवासी हिन्दू को बलवान बनाना होगा। बारह सौ वर्षों तक वही देश के शत्रुओं से लड़ता आया है और भविष्य में भी उसी से आशा है, यदि नास्तिक भौतिकवाद सरकार ने उसे कुछ करने लायक रखा।
-सम्पादक
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