विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
ध्यान का परिवेश
तुममें से जिनको सुभीता हो, वे साधना के लिए यदि एक स्वतंत्र कमरा रख सके, तो अच्छा हो। इस कमरे को सोने के काम में न लाओ। इसे पवित्र रखो। बिना स्नान किये और शरीर-मन को बिना शुद्ध किये इस कमरे में प्रवेश न करो। इस कमरे में सदा पुष्प और हृदय को आनन्द देनेवाले चित्र रखो। योगी के लिए ऐसे परिवेश अति उत्तम हैं। सुबह और शाम वहाँ धूप और चन्दनचूर्ण आदि जलाओ। उस कमरे में किसी प्रकार का क्रोध, कलह और अपवित्र चिन्तन न किया जाय। तुम्हारे साथ जिनके भाव मिलते हैं, केवल उन्हींको उस कमरे में प्रवेश करने दो। ऐसा करने पर शीघ्र ही उस कमरे में पवित्रता का वातावरण बन जायगा; यहाँ तक कि, जब तुम दुखी, कष्टपूर्ण, अनिश्चय की स्थिति में हो या तुम्हारा मन चंचल हो, तो उस समय उस कमरे में प्रवेश करते ही तुम्हारा मन शान्त हो जायगा। मन्दिर, गिरजाघर आदि के निर्माण का सच्चा उद्देश यही था। अब भी बहुत से मन्दिरों और गिरजाघरों में तुम्हें यह भाव देखने को मिलता है, परन्तु अधिकतर स्थलों में यह भाव ही नष्ट हो चुका है। इसमें आदर्श यह है कि चारों ओर पवित्र चिन्तन की तरहें सदा स्पन्दित होते रहने के कारण वह स्थान आत्मिक प्रकाश से प्रदीप्त रहता है। जो इस प्रकार के स्वतन्त्र कमरे की व्यवस्था नहीं कर सकते, वे जहाँ इच्छा हो, वहीं बैठकर साधना कर सकते हैं। (१.५६-५७)
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