विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
अपने जीवन का अनुसन्धान करो
मन का संयम करो, इन्द्रियों का निरोध करो, तभी तुम योगी हो पाओगे; तभी शेष सब कुछ प्राप्त हो जायगा। सुनना, देखना, सूँघना और स्वाद लेना अस्वीकार कर दो; बहिरिन्द्रियों से मनःशक्ति को खींच लो। जब तुम्हारा मन किसी विषय में मग्न रहता है, तब तुम अचेतन रूप से यह क्रिया सर्वदा करते ही रहते हो, अतएव चेतन रूप से भी तुम इसका अभ्यास कर सकते हो। मन अपनी इच्छा के अनुसार कहीं भी इन्द्रियों का प्रयोग कर सकता। इस मूल कुसंस्कार को बिल्कुल निकाल दो कि हम देह की सहायता से ही काम करने के लिए विवश हैं। हम विवश नहीं है। अपने कमरे में जाकर बैठो और अपनी अन्तरात्मा के भीतर से उपनिषदों को प्राप्त करो। तुम भूत-भविष्यत् सभी ग्रन्थों में श्रेष्ठ ग्रन्थ हो और जो कुछ है, उस सब के आलय हो। जब तक उस अन्तर्यामी गुरु का प्रकाश नहीं होता, तब तक बाहर के सभी उपदेश व्यर्थ हैं। (७.८४-८५)
जब तक हमारा हृदय रूपी शास्त्र नहीं खुला है, तब तक शास्त्र-पाठ वृथा है। फिर इन सब शास्त्रों का हमारे हृदय-शास्त्र के साथ जहाँ तक सामंजस्य है, वहीं तक उनकी सार्थकता है। बल क्या है, यह बलवान व्यक्ति ही समझ सकता है, हाथी ही सिंह को समझ सकता है, चूहा नहीं। हम जब तक ईसा के समान नहीं हुए हैं, तब तक उन्हें किस प्रकार समझ सकेंगे? महत्ता ही केवल महत्ता का आदर कर सकती है, ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्धि कर सकता है। (७.१०४-१०५)
हमीं लोग जीवन्त शास्त्र हैं, हम जो बातें करते है, वे ही सब 'शास्त्र' शब्द से परिचित हैं। सभी जीवन्त ईश्वर, जीवन्त ईसा हैं - इस भाव से सबको देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत् में जितने बाइबिल, ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान है। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जायँगे। (७.१०५)
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