विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
मन और उसके आयाम
अन्तरिन्द्रिय या मन के चार आयाम हैं :
प्रथम - मनस् अर्थात् मनन अथवा चिन्तन-शक्ति। इसको संयत न करने पर प्रायः इसकी समस्त शक्ति नष्ट हो जाती है। उचित संयम किये जाने पर यह अद्भुत शक्ति बन जाती है।
द्वितीय - बुद्धि अर्थात् इच्छा-शक्ति (इसको बोध-शक्ति भी कहा जाता है)।
तृतीय - अहंकार अर्थात् आत्मचेतन अहंबुद्धि।
चतुर्थ - चित्त अर्थात् वह तत्त्व, जिसके आधार और माध्यम से समस्त शक्तियाँ क्रियाशील होती हैं, मानो यह मन का धरातल है अथवा वह समुद्र है, जिसमें समस्त क्रिया-शक्तियाँ तरंगों का रूप धारण किये हुए हैं।
योग वह विज्ञान है, जिसके द्वारा हम चित्त को अनेक क्रिया-शक्तियों का रूप धारण करने अथवा उनमें रूपान्तरित होने से रोकते हैं। समुद्र में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जिस प्रकार तरंगों के कारण अस्पष्ट अथवा विच्छिन्न हो जाता है, उसी प्रकार आत्मा अर्थात् स्वरूप का प्रतिबिम्ब भी मन की तरंगों से विच्छिन्न हो जाता है। केवल जब समुद्र दर्पण की भाँति तरंगशून्य होकर शान्त हो जाता है, तभी चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिखायी पड़ता है। उसी प्रकार जब चित्त अर्थात् मनस् संयम के द्वारा सम्पूर्ण रूप से शान्त हो जाता है, तभी स्वरूप का साक्षात्कार होता है। (४.८२-८३)
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