विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
नीरवता में ध्यान
भगवान् को अपने से बाहर प्राप्त करना हमारे लिए असम्भव है।
बाहर जो ईश्वर-तत्त्व की उपलब्धि होती है, वह हमारी आत्मा का ही प्रकाश मात्र है। हम ही हैं भगवान् का सर्वश्रेष्ठ मन्दिर। बाहर जो कुछ उपलब्धि होती है, वह हमारे आभ्यन्तरिक ज्ञान का ही अति सामान्य अनुकरण या प्रतिबिम्ब मात्र है।
हमारे मन की शक्तियों की एकाग्रता ही हमारे लिए ईश्वर-दर्शन का एकमात्र साधन है। यदि तुम एक आत्मा को (अपनी आत्मा को) जान सको, तो तुम भूत, भविष्यत्, वर्तमान सभी आत्माओं को जान सकोगे। एकाग्र मन मानो एक प्रदीप है जिसके द्वारा आत्मा का स्वरूप स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। (७.७२)
सत्य कभी पक्षपात नहीं करता, उससे सभी का कल्याण होगा। अन्त में, स्थिर भाव और शान्त चित्त से उसका निदिध्यासन करो - उसका ध्यान करो, तुम अपने मन को उसके ऊपर एकाग्र करो, इस आत्मा के साथ अपने को एकभावापन्न कर डालो। तब फिर शब्दों का कोई प्रयोजन नहीं रहेगा, तुम्हारा मौन ही सत्य का संचार करेगा। बोलने में शक्ति का ह्रास मत करो, शान्त होकर ध्यान करो। बहिर्जगत् की गतिविधि से अपने को विचलित न होने दो। जब तुम्हारा मन सर्वोच्च अवस्था में पहुँचता है, तब उसकी चेतना तुम्हें नहीं रहती। शान्त रहकर संचय करो और आध्यात्मिकता के शक्ति केन्द्र (डाइनेमो) बन जाओ। (७.७३)
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