विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
मित्र और शत्रु
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।
अपने द्वारा अपना उद्धार करे; अपने को अध:पतित न करे; क्योंकि (मनुष्य) आप ही अपना मित्र है तथा आप ही अपना शत्रु है।
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बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।
जिस आत्मा (अर्थात् जीव) के द्वारा आत्मा (अर्थात् शरीर-मन) जीत लिया गया है उस आत्मा (अर्थात् जीव) का आत्मा मित्र है। किन्तु अनात्मा का (अर्थात् जिसके द्वारा आत्मा नहीं जीता गया उस जीव का) आत्मा ही शत्रु की भाँति शत्रुता का व्यवहार करता है।
(भगवद्गीता, ६-५, ६)
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