विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
परम आनन्द का द्वार
ध्यान के द्वार से हम उस परम आनन्द तक पहुँचते हैं। प्रार्थनाएँ, अनुष्ठान और पूजा के अन्य रूप ध्यान की शिशुशाला मात्र हैं। तुम प्रार्थना करते हो, तुम कुछ अर्पित करते हो। एक सिद्धांत था कि सभी बातों से मनुष्य का आध्यात्मिक बल बढ़ता है। कुछ विशेष शब्दों, पुष्पों, प्रतिमाओं, मन्दिरों, ज्योतियों को घुमाने के समान अनुष्ठानों - आरतियों - का उपयोग मन को उस अभिवृत्ति में लाता है, पर वह अभिवृत्ति तो सदा मनुष्य की आत्मा में है, कहीं बाहर नहीं। लोग यह सब कर रहे हैं; पर वे जो अनजाने कर रहे हैं, उसे तुम जान-बूझकर करो। यही ध्यान की शक्ति है।
हमें धीरे धीरे, क्रम से, अपने को प्रशिक्षित करना है। यह मजाक नहीं है - यह प्रश्न एक दिन का, या वर्षों का, और हो सकता है कि, जन्मों का नहीं है। चिंता मत करो! अभ्यास जारी रहना चाहिए! इच्छापूर्वक, जान-बूझकर, अभ्यास जारी रखना चाहिए। इंच इंच करके हम आगे बढ़ेंगे। हम उस वास्तविक सम्पदाओं को अनुभव करने लगेंगे, प्राप्त करने लगेंगे, जिसे हमसे कोई नहीं ले सकता वह सम्पत्ति, जिसे कोई मनुष्य नहीं छीन सकता; वह सम्पत्ति, जिसे कोई नष्ट नहीं कर सकता; वह आनन्द, जिसे कोई दुःख छू नहीं सकता। (३.१८१)
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