विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
मन कितना अशान्त है !
मन को संयत करना कितना कठिन है! इसकी एक सुसंगत उपमा उन्मत्त वानर से दी गयी है। एक वानर था। वह स्वभावतः चंचल था, जैसे कि वानर होते हैं। लेकिन उतना ही पर्याप्त न था, किसी ने उसे तृप्त करने जितनी शराब पिला दी। इससे वह और भी चंचल हो गया। इसके बाद उसे एक बिच्छू ने डंक मार दिया। तुम जानते हो कि बिच्छू द्वारा डसा व्यक्ति दिन भर इधर उधर कितना तड़पता रहता है। अतः उस बेचारे बन्दर ने स्वयं को अभूतपूर्व दुर्दशा में पाया। तत्पश्चात् मानो उसके दुःख की मात्रा को पूरी करने के लिए एक दानव उस पर सवार हो गया। कौन-सी भाषा उस बन्दर की अनियन्त्रणीय चंचलता का वर्णन कर सकती है? बस, मनुष्य का मन उस वानर के सदृश है। मन तो स्वभावतः ही सतत चंचल है, फिर वह कामनारूपी मदिरा से मत्त है, इससे उसकी अस्थिरता बढ़ जाती है। जब कामना आकर मन पर अधिकार कर लेती है, तब लोगों को सफल देखने पर ईर्ष्यारूप बिच्छू उसे डंक मारता रहता है। उसके भी ऊपर जब अहंकाररूप दानव उसके भीतर प्रवेश करता है, तब तो वह अपने आगे किसीको नहीं गिनता। ऐसी तो हमारे मन की अवस्था है! सोचो तो, ऐसे मन का संयम करना कितना कठिन है! (१.८६)
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