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विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ

ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : रामकृष्ण मठ प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5917
आईएसबीएन :9789383751914

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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।

कार्यशक्ति का रूपान्तरण

कामुक कल्पना उतनी ही बुरी है, जितनी कामुक क्रिया। कामेच्छा का दमन करने पर उससे उच्चतम फल लाभ होता है। काम-शक्ति को आध्यात्मिक शक्ति में परिणत करो, किन्तु अपने को पुरुषत्वहीन मत बनाओ, क्योंकि उससे शक्ति का क्षय होगा। यह शक्ति जितनी प्रबल होगी, इसके द्वारा उतना ही अधिक कार्य हो सकेगा। प्रबल जलधारा मिलने पर ही उसकी सहायता से खान खोदने का कार्य किया जा सकता है। (७.८२)

प्रबुद्ध कैसे हों?

वे प्रबुद्ध, वे महान् आत्माएँ, जो समय समय पर पृथ्वी पर आती रहती हैं, उनमें हमारे प्रति ईश्वरीय दर्शन का उद्घाटन करा देने की शक्ति रहती है। (३.१९८) वे पहले से मुक्त होती है; उन्हें अपनी मुक्ति की चिंता नहीं होती, वे दूसरों की सहायता करना चाहती हैं। (३.१९६)

मानव जाति की आध्यात्मिक प्रगति इन मुक्त आत्माओं पर निर्भर है वे उन प्रथम दीपों के समान हैं, जिनसे अन्य दीप जलाये जाते है। यह है सही है कि प्रकाश सबमें हैं, पर अधिकतर लोगों में वह छिपा हुआ महात्मा आरम्भ से ही देदीप्यमान ज्योति होते हैं। उनके सम्पर्क में आनेवाले मानो उनसे अपने दीप जला लेते हैं। इससे प्रथम दीप की कोई हानि नहीं होती; फिर भी वह अपना प्रकाश दूसरे दीपों को पहुँचाता है। करोड़ों दीप जल जाते हैं; पर प्रथम दीप अमंद ज्योति से जगमगाता रहता है। प्रथम दीप गुरु है और जो दीप उससे जलाया जाता है, वह शिष्य है। (३.१९६)

 

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