विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
एकनिष्ठ रहो
भिन्न भिन्न धर्मों के भिन्न भिन्न सम्प्रदाय मनुष्य-जाति के सम्मुख केवल एक एक आदर्श रखते हैं, परन्तु सनातन वेदान्त धर्म ने तो भगवान् के मन्दिर में प्रवेश करने के लिए अनेकानेक मार्ग खोल दिये हैं और जाति के सम्मुख असंख्य आदर्श उपस्थित कर दिये हैं। इन आदर्शों में मनुष्य- से प्रत्येक उस अनन्तस्वरूप ईश्वर की एक एक अभिव्यक्ति है।
फिर भी, जब तक पौधा छोटा रहे, जब तक वह बढ़कर एक बड़ा पेड़ न हो जाय, तब तक उसे चारों ओर से रुँध रखना आवश्यक है। आध्यात्मिकता का यह छोटा पौधा यदि आरम्भिक, अपरिपक्व दशा में ही भावों और आदर्शों से सतत परिवर्तन के लिए खुला रहे, तो वह मर जायगा। बहुत से लोग 'धार्मिक उदारता' के नाम पर अपने आदर्शों को अनवरत बदलते रहते हैं और इस प्रकार अपनी निरर्थक उत्सुकता तृप्त करते रहते हैं। सदा नयी बातें सुनने के लिए लालायित रहने से उनके लिए एक बीमारी- सी, एक नशा-सा हो जाता है। क्षणिक स्नायविक उत्तेजना के लिए ही वे नयी नयी बातें सुनना चाहते हैं, और जब इस प्रकार की उत्तेजना देनेवाली एक बात का असर उनके मन पर से चला जाता है, तब वे दूसरी बात सुनने को तैयार हो जाते हैं। उनके लिए धर्म एक प्रकार से बौद्धिक अफीम के नशे के समान है और बस, उसका वहीं अन्त हो जाता है। साधक के लिए आरम्भिक दशा में यह एकनिष्ठा नितान्त आवश्यक है। (४.३५,३६,३७)
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