विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
आम खाओ, आनन्द मनाओ
सारा संसार ही बाइबिल, वेद और कुरान पढ़ता है; पर वे तो केवल शब्द हैं - विन्यास, व्युत्पत्ति, भाषाविज्ञान - धर्म की शुष्क अस्थियाँ मात्र। जो गुरु शब्दाडम्बर के चक्कर में पड़ जाते हैं, जिनका मन शब्दों की शक्ति में बह जाता है, वे भीतर का मर्म खो बैठते हैं। शास्त्रों का शब्दजाल एक सघन वन के सदृश है, जिसमें मनुष्य का मन भटक जाता है, और रास्ता ढूँढ़े भी नहीं पाता। (४.२१)
भगवान् श्रीरामकृष्ण एक कहानी कहा करते थे, कि "एक बार कुछ आदमी किसी बगीचे में घूमने गये। बगीचे में घुसते ही हिसाब लगाने लगे कितने पेड़ आम के हैं, किस पेड़ में कितने आम हैं, एक एक डाली में कितनी पत्तियाँ हैं, बगीचे की कीमत कितनी हो सकती है - आदि आदि।'
उनमें से एक उनसे अधिक समझदार था, वह इन सब बातों की परवाह न करते हुए आम खाने लगा।
क्या वह बुद्धिमान नहीं था? आम खाओ, तो पेट भी भरे, केवल पत्ते गिनने और यह सब हिसाब लगाने से क्या लाभ?"
ये पत्तियाँ और डालें गिनना तथा दूसरों को यह सब बताने का भाव बिल्कुल छोड़ दो। यह बात नहीं कि इन सबकी कोई उपयोगिता नहीं; है - पर अध्यात्म के क्षेत्र में नहीं। इन 'पत्तियाँ गिननेवालों' में तुम एक भी आध्यात्मिक महापुरुष नहीं पाओगे। (४.२१-२२)
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