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विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ

ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : रामकृष्ण मठ प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5917
आईएसबीएन :9789383751914

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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।

हम जो सोचते हैं, वही हो जाते हैं

विचार बहुत महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि 'हम जो कुछ सोचते हैं, वही हो जाते हैं।' एक समय एक संन्यासी एक पेड़ के नीचे बैठता था और लोगों को पढ़ाया करता था। वह केवल दूध पीता था और फल खाता था और असंख्य प्राणायाम किया करता था। फलतः अपने को बहुत पवित्र समझता था।

उसी गाँव में एक कुलटा स्त्री रहती थी। प्रतिदिन संन्यासी उसके पास जाता था और उसे चेतावनी देता था कि उसकी दुष्टता उसे नरक में ले जायगी। बेचारी स्त्री अपने जीवन का ढंग नहीं बदल पाती थी, क्योंकि वही उसकी जीविका का एकमात्र उपाय था, फिर भी वह उस भयंकर भविष्य की कल्पना से सहम जाती थी, जिसे संन्यासी ने उसके समक्ष चित्रित किया था। वह रोती थी और प्रभु से प्रार्थना करती थी कि वे उसे क्षमा करें क्योंकि वह असहाय थी।

कालान्तर में कुलटा स्त्री और संन्यासी दोनों ही मरे। स्वर्ग-दूत आये और उसे स्वर्ग ले गये, जब कि संन्यासी की आत्मा को यमदूतों ने पकड़ा। वह चिल्लाया, "ऐसा क्यों? क्या मैंने पवित्रतम जीवन नहीं बिताया है और प्रत्येक मनुष्य को पवित्र होने की शिक्षा नहीं दी है? मैं नरक में क्यों ले जाया जाऊँ, जब कि यह कुलटा स्त्री स्वर्ग ले जायी जा रही है।"

यमदूतों ने उत्तर दिया, "क्योंकि जब वह अपवित्र कार्य करने को विवश थी, उसका मन सदैव भगवान में लगा रहता था और वह मुक्ति माँगती थी, जो अब उसे मिली है। किन्तु इसके विपरीत तुम यद्यपि पवित्र कार्य ही करते थे, परन्तु अपना मन सदैव दूसरों की दुष्टता पर ही रखते थे, तुम केवल पाप देखते थे और केवल पाप का ही विचार करते थे और इसलिए अब तुम्हें उस स्थान को जाना पड़ रहा है, जहाँ केवल पाप ही पाप है। (६.२६८-२६९)

 

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