विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
माया और मुक्ति
इस बार हम बन्धन में न पड़ें। माया ने अनेक बार हमें पकड़ा है, अनेक बार हमने अपनी स्वतन्त्रता का विनिमय उन चीनी की गुड़ियों से किया है जो पानी में डालते ही घुल गयीं।
धोखे में मत आओ। माया महाठगनी है। इस से बाहर आओ। इस बार स्वयं को उसके चङ्गुल में मत आने दो। इन भ्रमों के लिये अपनी अमूल्य धरोहर की बिक्री मत करो। उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत।
अपने धन को मात्र उसी का संरक्षक समझो जो ईश्वर का है। इसके लिये लगाव मत रखो। नाम, यश और धन को जाने दो, वे भयङ्कर बन्धन हैं। मुक्ति के अद्भुत परिवेश का अनुभव करो। तुम मुक्त हो, मुक्त हो, मुक्त हो! ओह, मैं धन्य हूँ, मैं मुक्तिस्वरूप हूँ! मैं अनन्त हूँ! मैं अपनी आत्मा का कोई आदि-अन्त नहीं पाता। सभी आत्मरूप है। इसे निरन्तर कहो।
(रिमिनिसेन्सिज़ ऑफ स्वामी विवेकानन्द [अंग्रेजी]; पृ. १८५, १८० में से अनूदन)..
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