विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
अब और मत सोओ
मेरा आदर्श अवश्य ही थोड़े से शब्दों में कहा जा सकता है, और वह है - मनुष्य-जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना।
एक विचार जो मैं सूर्य के प्रकाश की तरह स्पष्ट देखता हूँ, वह यह कि अज्ञान ही दुःख का कारण है और कुछ नहीं। जगत् को प्रकाश कौन देगा? बलिदान भूतकाल से नियम रहा है और हाय! युगों तक इसे रहना है। संसार के वीरों को और सर्वश्रेष्ठों को 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' अपना बलिदान करना होगा। असीम दया और प्रेम से परिपूर्ण सैकड़ों बुद्धों की आवश्यकता है।
संसार के धर्म प्राणहीन परिहास की वस्तु हो गये हैं। जगत् को जिस वस्तु की आवश्यकता है, वह है चरित्र। संसार को ऐसे लोग चाहिएँ, जिनका जीवन स्वार्थहीन ज्वलन्त प्रेम का उदाहरण है। वह प्रेम एक एक शब्द को वज्र के समान प्रभावशाली बना देगा।
साहसी शब्द और उससे अधिक साहसी कर्मों की हमें आवश्यकता है। जागो, जागो, महामानवो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? (४.४०७-४०८)
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