विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
निर्जनता से समाज की ओर ज्ञानप्रवाह
स्वामीजी - श्रीशंकर इस अद्वैतवाद को जंगलों और पहाड़ों में रख गये हैं; मैं अब उसे वहाँ से लाकर संसार और समाज में प्रसारित करने के लिए आया हूँ। घर घर में, घाट-मैदान में जंगल-पहाड़ों में इस अद्वैतवाद का गम्भीर नाद उठाना होगा। तुम लोग मेरे सहायक बनकर काम में लग जाओ।
शिष्य - महाराज, ध्यान की सहायता से उस भाव का अनुभव करने में ही मानो मुझे अच्छा लगता है। इसे कर्म में अभिव्यक्त करने की इच्छा नहीं होती।
स्वामीजी - यह तो नशा करके बेहोश पड़े रहने की तरह हुआ केवल ऐसे रहकर क्या होगा? अद्वैतवाद की प्रेरणा से कभी ताण्डव नृत्य कर तो कभी स्थिर होकर रह। अच्छी चीज़ पाने पर क्या उसे अकेले खाकर ही सुख होता है? दस आदमियों को देकर खाना चाहिए। आत्मानुभूति प्राप्त करके यदि तू मुक्त हो गया तो इससे दुनिया को क्या लाभ होगा? शरीरत्याग से पहले त्रिजगत् को मुक्त करना होगा। तभी नित्य-सत्य में प्रतिष्ठित होगा। उस आनन्द की क्या कोई तुलना है? (६.१२३-१२४)
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