विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
विज्ञातारमरे केन विजानीयात्?
शिष्य – यदि मैं ब्रह्म ही हूँ तो सर्वदा इस विषय की अनुभूति क्यों नहीं होती?
स्वामीजी - यदि 'मैं-तुम' के द्वैतमूलक चेतन स्तर पर इस बात का अनुभव करना हो तो एक करण की आवश्यकता है। मन ही हमारा वह करण है, परन्तु मन पदार्थ तो जड़ है। उसके पीछे जो आत्मा है उसकी प्रभा से मन चैतन्यवत् केवल प्रतीत होता है। अतः यह निश्चित है कि मन के द्वारा शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मा को नहीं जान सकते। मन के परे पहुँचना है। इसका निचोड़ यह है कि द्वैतमूलक चेतन के ऊपर ऐसी एक अवस्था है जहाँ कर्ता, कर्म, करणादि में कोई द्वैतभाव नहीं है। मन के निरोध होने से वह प्रत्यक्ष होती है। इस अवस्था को प्रकाशित करने के लिए कोई भाषा नहीं। (६.१०१)
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