विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
ईश्वर तुम्हारा है
तुम क्या किसी दूसरे के लिए हृदय से अनुभव करते हो? यदि करते हो तो एकत्व के भाव में तुम विकास कर रहे हो। यदि नहीं, तो तुम भूतो न भविष्यति एक बौद्धिक महामानव भले ही हो, तुम कुछ हो नहीं सकोगे, केवल शुष्क बुद्धि हो और वही बने रहोगे। यदि तुम हृदय से अनुभव करते हो, तो एक भी पुस्तक न पढ़ सकने पर, कोई भाषा न जानने पर भी, तुम ठीक रास्ते पर चल रहे हो। ईश्वर तुम्हारा है। (८.१७-१८)
क्या विश्व के इतिहास से तुम यह नहीं जानते कि पैगम्बरों की शक्ति कहाँ निहित थी? यह कहाँ थी? बुद्धि में? उनमें से क्या कोई दर्शन सम्बन्धी सुन्दर पुस्तक लिखकर छोड़ गया है; अथवा न्याय के कूट विचार लेकर कोई पुस्तक लिख गया है? किसीने ऐसा नहीं किया। वे केवल कुछ थोड़ी सी बातें कह गये हैं। ईसा की भाँति भावना करो, तुम भी ईसा हो जाओगे; बुद्ध के समान भावना करो, तुम भी बुद्ध बन जाओगे। भावना ही जीवन है, भावना ही बल है, भावना ही तेज है - भावना के बिना कितनी ही बुद्धि क्यों न लगाओ, ईश्वर-प्राप्ति नहीं होगी। (८.१८) हृदय के द्वारा ही भगवत्साक्षात्कार होता है, बुद्धि के द्वारा नहीं। (८.१७)
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